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राहुल गांधी: सियासत के मैदान में जूझती पांचवीं पीढ़ी के योद्धा
26-Mar-2023 11:18 AM
राहुल गांधी: सियासत के मैदान में जूझती पांचवीं पीढ़ी के योद्धा

-रशीद किदवई

प्रसिद्ध इतिहासकार और समाजशास्त्री इब्न ख़लदून से तैमूर ने राजवंशों के भाग्य के बारे में पूछा था. ख़लदून ने जवाब दिया कि राजवंश का वैभव शायद ही कभी चार पीढ़ियों से आगे बढ़ पाता है.

पहली पीढ़ी विजय की ओर जाती है जबकि दूसरी प्रशासन संभालती है. तीसरी पीढ़ी जीत या प्रशासन की ज़रूरत से मुक्त होती है जिनके पास अपने पूर्वजों की संपत्ति ख़र्च करने का एक सुखद कार्य होता है.

इसके फलस्वरूप एक राजवंश की चौथी पीढ़ी अपनी संपत्ति के साथ-साथ मानव ऊर्जा भी ख़र्च करती है. इसलिए, हर राज घराने का पतन उसके उदय की प्रक्रिया के साथ ही शुरू हो जाता है.

ख़लदून के अनुसार, यह एक प्राकृतिक घटना है और इससे बचा नहीं जा सकता है.

नेहरू-गांधी परिवार और कांग्रेस
समकालीन भारतीय इतिहास की लोकतांत्रिक दुनिया के परिपेक्ष्य में महान नेहरू-गांधी परिवार के उत्थान और पतन को देखें तो ये इब्न ख़लदून की बात की ओर ही इशारा करता दिखता है.

ब्रिटिश साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ महात्मा गांधी के क़रीबी सहयोगी के तौर पर जवाहरलाल नेहरू (1889-1964) ने देश की स्वतंत्रता के लिए जंग लड़ी वो निर्माता थे, उनकी बेटी इंदिरा गांधी (1917-1984) ने इसे विस्तार दिया.. जंग जीती (पाकिस्तान के ख़िलाफ़ और भारतीय उपमहाद्वीप में बांग्लादेश बनाया) और 20वीं सदी की सबसे शक्तिशाली शख़्सियत के तौर पर उभरीं.

इंदिरा के बेटे राजीव (1944-1991) भी भारत के प्रधानमंत्री बने, उन्होंने भी कई प्रयोग किए और उसका भारी भुगतान किया. सोनिया गांधी के नाम भी एक अनूठा गौरव है वो 138 साल पुरानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रही हैं.

नेहरू-गांधी परिवार की पांचवीं पीढ़ी का नेतृत्व राहुल गांधी करते हैं, वो परिवार के छठे सदस्य हैं जिन्होंने कांग्रेस संगठन की अध्यक्षता की है. 138 साल की कांग्रेस में नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य 51 साल तक अध्यक्ष रहे हैं जिसमें सोनिया गांधी सबसे लंबे समय तक 22 सालों तक अध्यक्ष रहीं.

जवाहरलाल नेहरू 11 सालों तक एआईसीसी के प्रमुख रहे, इंदिरा गांधी सात साल, राजीव गांधी छह साल और मोतीलाल नेहरू दो सालों तक इसके अध्यक्ष रहे. राहुल एआईसीसी के 87वें अध्यक्ष थे जिनका कार्यकाल 16 महीनों से भी कम था, वो दिसंबर 2017 से लेकर मई 2019 तक इसके प्रमुख रहे.

2004 के आम चुनाव से पहले राहुल गांधी ने राजनीति में एंट्री की, वो अपनी मां से काफ़ी अलग और कुछ हद तक अपरंपरागत राजनेता बने रहे. सोनिया गांधी को बहुत सोच-विचार के बाद 1998 में खंडित कांग्रेस विरासत में मिली थी. वो अपने विदेशी मूल को लेकर बहुत सचेत रहीं और उन्होंने कांग्रेस नेताओं को एकजुट करके काफ़ी संतुष्टि हासिल की.

उन्होंने एक कुलमाता के तौर पर जापानी प्रणाली के आधार पर पार्टी चलाई (1998-2017 और 2019-2022 तक कांग्रेस की अंतरिम प्रमुख) जिसमें अधिकतम परामर्श और न्यूनतम अनुशासनात्मक कार्रवाई होती थी. सोनिया गांधी ने कांग्रेस के वर्गीकरण के ढांचे को हासिल करने को अधिक महत्व दिया.

इसकी तुलना में 53 साल के राहुल गांधी ने स्पष्ट और साहस से बोलना जारी रखा हुआ है जिसमें वो राजनीतिक परिणामों की चिंता नहीं करते हैं.

लंदन और कैम्ब्रिज में हाल में उन्होंने जो बयान दिए उनसे ख़ासा विवाद खड़ा हुआ है और बीजेपी को उनकी मां और कांग्रेस नेता सोनिया गांधी से कहना पड़ा कि वो 'अपने बेटे को नियंत्रित करें.'

निर्भीक राहुल गांधी भारतीय लोकतंत्र की ख़राब गुणवत्ता को लेकर बोले और उन्होंने 'पेगासस विवाद', 'चीन के ख़तरे' आदि पर बात की.

राहुल गांधी दो भारत के सिद्धांतों को लेकर काफ़ी जुनूनी दिखते हैं, जिसमें पहला 'भारत राज्यों का संघ है' और दूसरा जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कथित तौर पर कूटनीति में विफल हुए हैं, इनमें चीन-पाकिस्तान गठजोड़, पेगासस जासूसी आदि जैसे मामले शामिल हैं.

लेकिन चुनावी लिहाज़ से देखे तो कांग्रेस के अंदर कई लोगों का मानना है कि ये मुद्दे कई चुनावी राज्यों में वोट शेयर को अपनी तरफ़ खींचने में नाकाम हैं.

राहुल की राजनीतिक प्रवृत्ति का अपरंपरागत स्वभाव उन भारतीय मतदाताओं को अपनी ओर ख़ींचने में नाकाम रहा है जो ऐतिहासिक और स्वभाव से विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में वर्तमान सत्ता के ख़िलाफ़ नहीं जाना चाहते हैं.

चाहे वो 1962 का भारत-चीन संघर्ष हो, 1965 का भारत-पाक युद्ध या 1999 का कारगिल संघर्ष हो, इन सभी मामलों में सरकार की ओर से कमियां रहीं लेकिन मतदान के दौरान मतदाताओं ने इन्हें ख़ारिज किया. सरकार के ख़िलाफ़ कभी कोई फ़ैसला नहीं आया.

चीन कांग्रेस के गले की हड्डी रहा है. चीन का कोई भी ज़िक्र उसे 1962 की हार की याद दिला देता है. वायनाड के पूर्व सांसद (क्योंकि लोकसभा से उनकी सदस्यता रद्द हो गई है) को 1971 के युद्ध पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी जानी चाहिए थी कि कैसे उनकी दादी इंदिरा गांधी ने चीन के अघोषित समर्थन के बावजूद पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांट दिया था.

मशहूर अर्थशास्त्री ने की तारीफ़
राहुल गांधी अक्टूबर 1994 से लेकर जुलाई 1995 तक ट्रिनिटी के छात्र थे और डेवलपमेंट स्टडीज़ में उन्होंने एम.फ़िल किया.

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉक्टर अमर्त्य सेन जिन्हें 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने भारत रत्न दिया था. उन्होंने कहा था कि राहुल गांधी की प्रधानमंत्री की संभावना को ख़ारिज नहीं किया जा सकता है.

अगस्त 2009 में आउटलुक पत्रिका के विनोद मेहता और अंजलि पुरी को दिए इंटरव्यू में सेन ने राहुल को 'काबिल' बताते हुए कहा कि वो ऐसे शख़्स हैं जिनमें भारत के नुक़सान को लेकर काफ़ी चिंताएं हैं और वो बदलाव चाहते हैं.

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री सेन ने कहा, "मैं उन्हें (राहुल) थोड़ा ही जानता हूं. वो ट्रिनिटी में जब मुझसे मिलने आए थे तब मैंने उनके साथ पूरा दिन गुज़ारा था और मैं उनसे बहुत प्रभावित हुआ था. वो जो करने की योजना बना रहे थे हमने इस पर बात की. उस समय राजनीति उनकी योजना में नहीं थी और उन्होंने मुझे यह बताया था. मेरा मानना है कि यह उनका वास्तविक विचार था और बाद में उन्होंने इसे बदल दिया. यह मेरे लिए बहुत साफ़ था कि वो भारत के विकास के लिए बेहद प्रतिबद्ध हैं."

सेन ने बताया कि उन्होंने राहुल से कहा था कि वो जो पैसा बनाते हैं उससे दुनिया को चमकाने के लिए उनके पास कई रास्ते हैं.

राहुल गांधी की आर्थिक और राजनीतिक सोच सेंटर लेफ़्ट से काफ़ी प्रभावित नज़र आती है, अक्सर वो अपने राजनीतिक निर्णयों को रंग देते हैं और इसके कारण पार्टी नेताओं के उनसे मतभेद भी रहे हैं. साल 2010 में कैम्ब्रिज में बोलते हुए राहुल गांधी ने ख़ुद को 'अर्थशास्त्री' बताया था.

राहुल की जीवनीकार आरती रामचंद्रन ने इंटरव्यूर मैरो गोल्डन और एशले लैमिंग को बताया था, "उन्होंने (राहुल) आर्थिक भाषा में चीज़ों पर बात की, उन्होंने 'सप्लाई और डिमांड' की दिक़्क़त पर सकारात्मक कार्रवाई के तौर पर बात की और कहा कि सूचनाओं पर शिक्षकों का 'एकाधिकार' नहीं होना चाहिए."

इंटरव्यू के दौरान डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स में एम.फ़िल करने वाले राहुल ने कहा था कि उन्हें कैम्ब्रिज में जो कुछ सिखाया गया उसमें बहुत सी चीज़ों को लेकर वो असहमत हैं. उन्होंने कहा था कि वो अब बहुत कम लेफ़्ट-विंग के व्यक्ति हैं जितने वो पहले थे.

राहुल के लेफ़्ट के प्रति झुकाव को उनके क़रीब सलाहकार भी मानते रहे हैं जिसमें से कुछ जेएनयू से हैं और उनका एआईएसए-लेफ़्ट का बैकग्राउंड रहा है.

साल 2013 में दुनिया ने देखा था कि कैसे राहुल ने मनमोहन सिंह के अध्यादेश की कॉपी को फाड़ा था जो राजनीति में दोषी और भ्रष्ट व्यक्ति को सुरक्षा देती थी. कुछ दिनों के बाद राहुल ने मनमोहन से माफ़ी मांग ली.

विडंबना देखिए कि 10 साल पहले जो अध्यादेश उन्होंने फाड़ा और उसे क़ानून बनने से रोका, वो उन्हें लोकसभा से निष्कासित होने से बचा सकता था.

दादी इंदिरा गांधी कैसे देखती थीं राहुल को?
संयोग से इंदिरा गांधी जिन्हें किसी व्यक्तित्व की पहचान का पारखी माना जाता है वो एक बालक के रूप में राहुल गांधी के आचरण और दृढ़ता को बहुत महत्व देती थीं.

अक्टूबर 1984 में जब इंदिरा गांधी की मौत हुई तब राहुल 14 साल के थे लेकिन तब वो उनसे उन मुद्दों पर बात करती थीं जिस पर वो राजीव या सोनिया से बात करने पर बचती थीं.

उदाहरण के तौर पर देखें तो 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' के बाद इंदिरा गांधी को अपनी हत्या का डर था और उन्होंने राहुल से कहा था कि वो 'चार्ज लें' और उनकी मौत पर रोएं नहीं.

जून 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद जब भारतीय सेना पंजाब के स्वर्ण मंदिर से चरमपंथियों के शव बाहर निकाल रही थी तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को यह यक़ीन हो चला था कि उनकी मौत होने जा रही है.

वो चुपचाप राहुल से बात करती थीं, उस वक़्त 14 साल के बच्चे से उन्होंने अपने अंतिम संस्कार की तैयारियों की बात की और कहा कि वो अपनी ज़िंदगी जी चुकी हैं. शायद राहुल उस समय यह सब समझने के लिए बहुत युवा थे लेकिन इंदिरा ने अपनी सोच को साझा करने के लिए उन्हें अपना एक आदर्श साथी समझा जिसके फ़ैसले पर उन्हें भरोसा था.

39 साल बाद राहुल गांधी भारी बाधाओं का सामना कर रहे हैं. कुछ लोग राहुल के अपने राजनीतिक अभियान में धर्म को शामिल करने की कोशिश को एक समस्या मानते हैं जो कि धर्मनिरपेक्षता के नेहरूवादी विचार के विपरीत चलती है.

धर्मनिरपेक्षता को लेकर जवाहरलाल नेहरू की परिभाषा साफ़ थी जिसका अर्थ था कि धर्म राजनीति, आर्थिक, सामाजिक और जीवन के सांस्कृतिक पहलू से अलग है. नेहरू की सोच में धर्म किसी व्यक्ति का निजी मामला है जिसमें राज्य को हर क़ीमत पर ख़ुद को अलग रखना चाहिए.

नेहरू ने अपने गृह मंत्री कैलाशनाथ काटजू को 1953 में एक पत्र में लिखा था, "भारत का भाग्य काफ़ी हद तक हिंदू दृष्टिकोण से जुड़ा हुआ है. अगर वर्तमान हिंदू दृष्टिकोण मौलिक रूप से नहीं बदलता है तो मुझे पूरा यक़ीन है कि भारत बर्बाद होने जा रहा है."

नेहरू ने लगातार देखा कि बहुसंख्यक समुदाय की सांप्रदायिकता में राष्ट्रवाद के समान होने की अपार क्षमता है.

एक दूसरे स्तर पर राहुल ख़ुद को सत्ताधारी के रूप में नहीं देखते हैं बल्कि सत्ता के ट्रस्टी के रूप में देखते हैं जैसे कि उनकी मां सोनिया गांधी रही हैं. हालांकि सोनिया से अलग वो उम्मीद करते हैं कि उनकी पार्टी के अधिकतर सहयोगी सत्ता और कार्यालयों के जाल से दूर रहेंगे.

इस उम्मीद के परिणामस्वरूप उनके कुछ क़रीब सहयोगी दूसरे राजनीतिक दलों में चले गए हैं उनमें से भी उनके वैचारिक विरोधी बीजेपी में गए हैं.

राहुल या तो समझे नहीं हैं या फिर वो समझना नहीं चाहते हैं कि राजनीतिक वफ़ादारी बहुत अधिक लेन-देन वाली होती है. (bbc.com/hindi)

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