संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : हर 24 घंटे में अमरीका में गन से सवा सौ मौतें, कारोबार-माफिया हावी
28-Mar-2023 3:04 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : हर 24 घंटे में अमरीका  में गन से सवा सौ मौतें, कारोबार-माफिया हावी

photo : twitter

अमरीका में अब अंधाधुंध गोलीबारी से लोगों को मारना औसतन हर महीने होने वाली वारदात है। आज भी एक छोटी स्कूल में एक महिला हमलावर ने पहुंचकर अंधाधुंध गोलियां चलाईं, उनमें बच्चे-बड़े सात लोग मारे गए। अभी दो दिन पहले इतवार को ही कैलिफोर्निया के गुरुद्वारे में वहीं के दो लोगों के बीच आपस में गोलियां चलीं जिनमें दो लोग बुरी तरह जख्मी हुए। अब अगर अमरीका में होने वाली ऐसी गोलीबारी की खबरें ढूंढें तो इनका कोई अंत नहीं है, और न ही ऐसे हमलों का कोई अंत है। दरअसल वहां पर हथियारों की खरीदी इतनी आसान है कि कोई भी नागरिक दर्जनों हथियार खरीदकर अपने घर पर एक नुमाइश सी लगा सकते हैं, और ऐसे ही लोग कानूनी खरीदे गए हथियारों से सार्वजनिक जगहों पर लोगों को थोक में मार रहे हैं। अमरीका में हथियार बनाने वाले कारखानेदारों की लॉबी इतनी मजबूत है, और वहां की दो में से एक प्रमुख पार्टी, रिपब्लिकन, हथियार खरीदने और रखने की आजादी की इतनी बड़ी वकील है कि वह संसद में निजी हथियारों में कटौती की किसी बात को मंजूरी ही नहीं पाने देती। मौजूदा डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति जो बाइडन लगातार ऐसी हर गोलीबारी के बाद संसद और देश से अपील कर रहे हैं कि हथियारों में कटौती के संविधान संशोधन का साथ दें, लेकिन कारोबारी माफिया इस बात को आगे ही नहीं बढऩे देता। यह पूंजीवादी दुनिया के लिए एक मिसाल है कि कोई कारोबार किस हद तक मतलबपरस्त और जनविरोधी हो सकता है, कि उसके चेहरे पर हर बरस ऐसी हजारों मौतों  से भी कोई शिकन न पड़ती हो। 

जब तक अमरीका में निजी हथियारों की आजादी की कुछ तस्वीरें न देखें, बाहर के लोगों को यह भरोसा ही नहीं हो सकता कि एक-एक अमरीकी नागरिक किस तरह अपने घर को फौजी बंदूकखाना बनाकर रख सकते हैं। वे ऐसे फौजी दर्जे के हथियार खरीद सकते हैं जो कि निजी सुरक्षा के लिए तभी जरूरी हो सकते हैं, जब किसी दूसरे देश की फौज किसी अमरीकी के घर में घुस जाएं। उससे कम किसी नौबत में ऐसे घातक ऑटोमेटिक हथियारों की जरूरत किसी को नहीं पड़ सकती जो एक मिनट में सैकड़ों गोलियां दागते हों। अमरीका की पूंजीवादी व्यवस्था को लेकर यह बात भी बार-बार लिखी जाती है कि वहां हथियारों के कारखानेदार अमरीकी फिल्मों के मार्फत एक ऐसी हथियार-संस्कृति को बढ़ावा देते हैं जिसे कि आम अमरीकी अपने स्वाभिमान से जोडक़र देखने लगते हैं। हालत यह है कि अमरीका में एक बड़े तबके की सोच को इस तर ढाल दिया गया है कि अधिक से अधिक नागरिकों के पास जब हथियार रहेंगे, तब अमरीका में कोई सत्तापलट नहीं हो सकेगा क्योंकि फौज नागरिकों के हथियारों के सामने टिक नहीं सकेगी। अमरीका जैसे बड़े देश में जब लोगों को देशभक्ति के नाम पर, आजादी को बचाने के नाम पर हथियार बेचने में कामयाबी मिल रही है, तो यह कारोबार इससे अधिक और क्या उम्मीद कर सकता है। दुनिया भर में जहां-जहां लोग अमरीकी फिल्में देखते हैं, उन्हें मालूम है कि वहां की बहुत सारी एक्शन फिल्मों में हथियारों का कैसा ग्लैमर स्थापित किया जाता है, और जब उन्हें खरीदने की पूरी तरह आजादी होती है, तो फिर हॉलीवुड और हथियार, ये दोनों कारोबार एक-दूसरे को बढ़ाते चलते हैं।

यह भी समझने की जरूरत है कि अमरीका में धार्मिक आजादी, विचारों की आजादी, दुनिया भर से आए हुए अलग-अलग नस्लों के लोगों के लिए जितनी जगह है, उसमें स्वाभाविक रूप से कई किस्म का तनाव बने रहता है। ऐसे सामाजिक तनाव से परे एक तनाव यह भी रहता है कि अमरीकी लोग, खासकर नौजवान, परिवार और समाज के खिलाफ कई किस्म की नफरत से भी घिरे रहते हैं, और स्कूल-कॉलेज में होने वाले अधिकतर हमलों के पीछे नस्लवादी, या फिर निजी नफरत का हाथ मिलता है। एक तरफ तो देश के लोग इतने तनावग्रस्त हैं, देश का हाल इतने किस्म के नस्लभेदी और अंतरराष्ट्रीय समुदायों के तनाव से घिरा हुआ है, और फिर घर-घर में अंधाधुंध संख्या में बंदूक-पिस्तौल हैं। 2020 में अमरीका में 45 हजार से अधिक लोग गन की गोलियों से मरे हैं। इनमें 54 फीसदी खुदकुशी में, और 43 फीसदी हत्याओं में मरे हैं। हर दिन अमरीका में गन की गोलियों से औसतन 123 से अधिक लोग मारे गए हैं। इसके बावजूद सरकार कारोबार-माफिया के सामने बेबस है जिसने कि संसद में एक बहुत बड़ा समर्थन जुटा रखा है। हालत यह है कि रिपब्लिकन पार्टी के सम्मेलन देश में जहां कहीं होते हैं, वहां पर हथियारों की प्रदर्शनी लगती है, और उनकी बिक्री होती है। पिछले राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की यह पार्टी हथियार के सौदागर सरीखे काम करती है। 

अमरीका की इस घरेलू हिंसा से हिन्दुस्तान का कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि जिस दिन अमरीकी फौजों से किसी भी तरह की प्रत्यक्ष या परोक्ष लड़ाई की नौबत आएगी, आम अमरीकी नागरिक अपने निजी हथियारों को लेकर मोर्चे पर नहीं रहेंगे, लेकिन इससे हिन्दुस्तान समेत तमाम देशों को यह सबक लेने की जरूरत जरूर है कि कोई कारोबार किस तरह राष्ट्रीय हितों को बंधक बनाकर रख सकते हैं। देश के हित एक तरफ धरे रह गए, और नागरिकों को हथियारों का ग्राहक बनाकर यह कारोबार हर दिन करीब सवा सौ मौतें देश में पेश कर रहा है। हर लोकतंत्र को यह देखना चाहिए कि उसके कौन से कारोबार संसद और सरकार को प्रभावित करके, अदालतों में जजों को प्रभावित करके, और मीडिया को खरीदकर जनता की सोच बदल सकते हैं? अगर लोग ठंडे दिल से बैठकर बारीकी से देखेंगे, तो उन्हें हर लोकतंत्र में ऐसे कुछ धंधे दिखाई पड़ेंगे जो कि जनहित के खिलाफ हैं, लेकिन जिनका कोई विरोध नहीं हो सकता है। ऐसे धंधे हर राजनीतिक दल की सरकार को प्रभावित करके चलते हैं, संवैधानिक संस्थाओं को जेब में रखकर चलते हैं, और मीडिया तो अब ऐसे कई धंधे सीधे-सीधे खरीद चुके हैं। बात महज अमरीका की गन लॉबी की नहीं है, बात माफिया अंदाज में काम करने वाले कारोबार की है, और सभी को इसके खतरे समझना चाहिए।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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