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हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर मांगा जवाब
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 30 मार्च। कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में कुलपति के पद पर बल्देव भाई शर्मा की नियम विरुद्ध नियुक्ति के खिलाफ डॉ शाहिद अली की याचिका पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ शासन, यूजीसी और कुलपति को नोटिस कर जवाब मांगा है।
विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. अली ने कुलपति शर्मा के पास न्यूनतम योग्यता पूरी न करने तथा नियुक्ति में यूजीसी रेगुलेशन 2018 के अनिवार्य प्रावधानों का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए इस नियुक्ति को रद्द करने याचिका दाखिल की है। याचिका के अनुसार शर्मा को कुलपति के पद पर बैठने का अधिकार नहीं है और वे इस पद पर नियम विरुद्ध कार्य कर रहे हैं।
याचिका में कहा गया है कि उनके पास किसी भी विषय की न तो पीजी डिग्री है और न ही पीएचडी की वैध उपाधि है। वे विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने की न्यूनतम योग्यता भी नहीं रखते। उनकी विश्वविद्यालय में कुलपति के पद पर नियुक्ति एक बड़ा सवाल है। याचिकाकर्ता के अनुसार वे स्वयं भी कुलपति पद के दावेदार थे तथा अनेक ऐसे दावेदार थे जिनके पास कुलपति पद के लिए उच्चतम अर्हताएं थीं। कुलाधिपति की ओर से कुलपति पद के लिए नियुक्त तीन सदस्यीय सर्च कमेटी में चेयरमैन प्रो. कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री थे, जो यूजीसी की ओर से नामिनी थे। अन्य दो सदस्यों में विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद की ओर से हरिदेव जोशी, पत्रकारिता विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति ओम थानवी तथा राज्य शासन की ओर से तत्कालीन वन संरक्षक एवं योजना आयोग के सदस्य डॉ के.सुब्रमण्यम की उपस्थिति रही। चेयरमैन प्रो. अग्निहोत्री उस दौरान हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय में कुलपति थे। उन्होंने यूजीसी के नियमों को ताक में रखकर केवल स्नातक दो वर्षीय बीए पास बल्देव भाई शर्मा को हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के पत्रकारिता विभाग में वर्ष 2017 में एमिनेंट प्रोफेसर मानद के पद पर नियुक्ति देकर विभागाध्यक्ष भी बना दिया। जब प्रो. अग्निहोत्री कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में कुलपति पद के लिए 12 सितंबर 2019 को बनाईं गई सर्च कमेटी में चेयरमैन नियुक्त हो गए तो उन्होंने शर्मा को कुलपति पद के पैनल में अनुशंसा कर दी।
डा. शाहिद अली ने आरटीआई में प्राप्त दस्तावेजों से यह भी सवाल उठाया कि शर्मा ने वर्ष 2017 में ही इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय, रेवाड़ी से डाक्ट्रेट की मानद उपाधि प्राप्त की, जिसका उपयोग किसी अकादमिक कार्य में नहीं किया जा सकता। इन्होंने कुलपति पद के आवेदन में इसका दुरुपयोग किया। याचिका में कुलपति नियुक्ति में सांठगांठ और गड़बड़ी पर उच्च स्तरीय जांच और दोषियों पर कार्रवाई की भी अपील की है।
उल्लेखनीय है कि कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में कुलपति पद के लिए 20 सितंबर 2019 को विज्ञापन जारी कर अंतिम तिथि 11 अक्टूबर 2019 तक योग्य उम्मीदवारों से आवेदन मंगाए गए थे। इसके बाद सर्च कमेटी की बैठक राजभवन में 11 नवंबर 2019 को हुई। बैठक में सर्च कमेटी ने छह नामों का पैनल प्रस्तुत किया जिनमें सबसे ऊपर बल्देव भाई शर्मा थे। उसके बाद क्रमशः दिलीप चंद मंडल, जगदीश उपासने, लव कुमार मिश्रा, डॉ मुकेश कुमार और उर्मिलेश के नाम पैनल में रखे गए।
यूजीसी रेगुलेशन 2018 का अनिवार्य प्रावधान है कि विश्वविद्यालय में कम से कम 10 वर्षों के लिए प्रोफेसर के पद का अनुभव अथवा एक प्रतिष्ठित अनुसंधान या शैक्षणिक प्रशासनिक संगठन में शैक्षणिक नेतृत्व के साक्ष्य के साथ 10 वर्षों के अनुभव के साथ एक विशिष्ट शिक्षाविद् होना चाहिए।
राज्यपाल के अवर सचिव के हस्ताक्षर से जारी 20 सितंबर 2019 के पत्र में कहा गया कि ऐसे व्यावसायिक व्यक्ति, जो या तो पत्रकारिता अथवा संचार मीडिया क्षेत्र की शाखा से हो, जिसके पास सार्वजनिक या निजी क्षेत्र में वरिष्ठ स्तर में 20 वर्ष का अनुभव हो, आवेदन कर सकते हैं। याचिकाकर्ता ने राज्यपाल के अवर सचिव द्वारा जारी कुलपति पद के लिए यूजीसी के प्रावधानों के विरुद्ध शैक्षणिक अर्हता को भी चुनौती दी है और कहा है कि यूजीसी के मापदंडों को किसी भी प्रकार से बदला नहीं जा सकता।
याचिकाकर्ता ने बताया कि विश्वविद्यालयों में स्नातक, स्नातकोत्तर एवं पीएचडी स्तर की पढ़ाई एवं परीक्षाएं होती है। असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर तथा प्रोफेसर की चयन प्रक्रिया होती है। विश्वविद्यालय के प्रशासनिक एवं अकादमिक विभागों के नेतृत्व, विद्यापरिषद , कार्यपरिषद तथा दीक्षांत समारोह का संचालन होता है। अतः ऐसा व्यक्ति जिसके पास न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता भी नहीं है, केवल बीए स्नातक है। कोई अनुसंधान अथवा शैक्षणिक प्रशासनिक नेतृत्व का अनुभव नहीं है वह विश्वविद्यालय का कुलपति कैसे नियुक्त हो सकता है? शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता पर ऐसी नियुक्तियों से गंभीर चिंता और चुनौती उत्पन्न होती है।
याचिकाकर्ता के अनुसार बल्देव भाई शर्मा ने 5 मार्च 2020 को कुलपति का पदभार ग्रहण किया और उसके दो हफ्ते बाद लाकडाऊन हो गया। लगभग दो वर्ष कोरोना काल रहा। विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर कुलपति ने अपनी शैक्षणिक प्रोफ़ाइल अपलोड नहीं की, इसलिए योग्यता और नियुक्ति की सांठगांठ का पता नहीं चला। लेकिन पिछले एक वर्ष से जब ऑफलाइन और कार्यालय सामान्य होने लगे तो कार्यशैली से आशंका हुई और आरटीआई के माध्यम से तथ्यों का पता चला।
याचिकाकर्ता के अनुसार पत्रकारिता विश्वविद्यालय में पिछले तीन सालों में ऐसा कोई अकादमिक उपलब्धि हासिल नहीं हुई है जिसमें शासन करोड़ों रुपए खर्च कर रहा है। कुलपति महीने में 15 -20 दिन बिना छुट्टियों के गायब रहते हैं। कार्यालय में मात्र दो से तीन घंटे ही रहते हैं। विद्यार्थियों और शिक्षकों से उनका कोई संवाद नहीं है। इस दौरान कोई भी स्तरीय संगोष्ठी नहीं हुई। वर्षों से लंबित शिक्षकों की भर्तियां,पदोन्नतियां भी नहीं हुई। नैक का आवेदन तक नहीं हुआ। विद्यार्थियों की परीक्षा कभी भी समय से नहीं हुई। छात्रों के लिए बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं। वर्षों से कार्यरत दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को सेवा से हटाया गया है। शिक्षकों कर्मचारियों के बीच सद्भावना खत्म कर दी गई है। कुलपति की नियुक्ति में हुई अनियमितता का दंड पूरे विश्वविद्यालय को मिल रहा है।