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पश्चिम बंगाल में कैसे सियासत का हथियार बन गया है रामनवमी का त्योहार?
30-Mar-2023 9:20 AM
पश्चिम बंगाल में कैसे सियासत का हथियार बन गया है रामनवमी का त्योहार?

रामनवमीइमेज स्रोत,SANJAY DAS

-प्रभाकर मणि तिवारी

पश्चिम बंगाल में कोई एक दशक पहले तक रामनवमी का त्योहार चुनिंदा मंदिरों और आम लोगों के घरों तक ही सीमित था, लेकिन वहाँ अब सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के बीच यह पर्व सियासत का प्रमुख अस्त्र बन गया है.

रामनवमी के मौके पर विश्व हिंदू परिषद और उसके सहयोगी संगठनों की ओर से सैकड़ों की तादाद में आयोजित रैलियां और हथियारों के साथ जुलूस निकालने के मुद्दे पर सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के साथ लगातार टकराव होता रहा है.

वर्ष 2018 में इसी रामनवमी के जुलूस पर कथित पथराव के बाद आसनसोल में दो समुदायों के बीच बड़े पैमाने पर हिंसा और आगज़नी हुई थी.

पश्चिम बंगाल में अब तक दुर्गा पूजा और काली पूजा के त्योहारों का ही बड़े पैमाने पर आयोजन किया जाता रहा है.

लेकिन वर्ष 2014 में राज्य में भाजपा के उभार के बाद से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद और उससे जुड़े संगठन रामनवमी को भी उसके मुकाबले खड़ा करने की क़वायद में जुटे हैं.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि दरअसल, रामनवमी और हनुमान जयंती उत्सवों के बहाने विहिप और संघ ने वर्ष 2014 से ही राज्य में पांव जमाने की क़वायद शुरू कर दी थी.

और हर बीतते साल के साथ आयोजनों का स्वरूप बदला और इन संगठनों के पैरों तले की ज़मीन भी मज़बूत होती रही.

क्या है योजना?
जानकारों का मानना है कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने अगर तमाम राजनीतिक पंडितों के अनुमानों को झुठलाते हुए 42 में से 18 सीटें जीत लीं तो इसमें इन आयोजनों की अहम भूमिका रही है.

उसके बाद साल दर साल इस मौके पर आयोजन और उसकी भव्यता बढ़ती ही जा रही है. बीते लोकसभा चुनावों में बीजेपी के मज़बूत प्रदर्शन के बाद इस त्योहार पर सियासत का रंग और गहरा हुआ है.

अब जल्दी ही होने वाले पंचायत चुनावों को ध्यान में रखते हुए विहिप और हिंदू जागरण मंच जैसे सहयोगी संगठनों ने इस साल भी बड़े पैमाने पर रैलियां निकालने और राम महोत्सव मनाने का एलान किया है.

विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके सहयोगी संगठनों ने इस साल रामनवमी यानी 30 मार्च से हनुमान जयंती (छह अप्रैल) तक पूरे राज्य में सप्ताह भर चलने वाले राम महोत्सव के आयोजन का एलान किया है.

संघ की ओर से क़रीब दो हज़ार इलाकों में रामनवमी के मौके पर समारोह आयोजित किए जाएंगे.

विहिप के दक्षिण बंगाल के प्रवक्ता सौरीष मुखर्जी बताते हैं, "इस साल विहिप की स्थापना का 60वां साल है. इसके अलावा अयोध्या के मंदिर में राम लला भी इस साल के आख़िर या अगले साल की शुरुआत में अपने आसन पर बैठेंगे.

इससे देश भर के रामभक्त बेहद उत्साहित हैं. हम रामनवमी के मौके पर राम और राम राज्य की बात घर-घर पहुंचाना चाहते हैं.

इसी वजह से सप्ताह भर चलने वाला राम महोत्सव आयोजित किया जा रहा है. इसके तहत उत्तर बंगाल के क़रीब पांच सौ और दक्षिण बंगाल के पंद्रह सौ इलाकों में कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे."

विहिप का कहना है कि संगठन रामनवमी के मौके पर शस्त्र जुलूस नहीं निकालता है. लेकिन कुछ इलाकों में लोग ख़ुद शस्त्र लेकर जुलूस में शामिल हो जाते हैं.

बीते लोकसभा चुनाव में रामनवमी के आयोजन का फ़ायदा भले भाजपा को मिला था. पर सौरीष का दावा है कि इन आयोजनों का चुनावी राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है.

पिछले लोकसभा और वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में उत्तर बंगाल में भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहा था. इसलिए विहिप उस इलाके पर ख़ास ध्यान दे रही है.

चुनावी प्रदर्शन और रामनवमी की रैली
विहिप के उत्तर बंगाल के संगठन सचिव अनूप कुमार मंडल बताते हैं, "इलाके में रामनवमी के मौके पर सैकड़ों रैलियां आयोजित की जाएंगी."

हालांकि वे मानते हैं कि वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा के बेहतर प्रदर्शन के पीछे रामनवमी की रैलियां भी एक वजह थी.

वह कहते हैं, "आगे भी इसका फ़ायदा मिलेगा. लेकिन हम शस्त्र जुलूस नहीं निकालेंगे."

विहिप भले ही शस्त्र जुलूस नहीं निकालने का दावा करे, उसके सहयोगी संगठन हिंदू जागरण मंच ने राज्य में कम से कम बीस इलाकों में शस्त्र जुलूस निकालने का एलान किया है.

मंच के प्रवक्ता पारिजात चक्रवर्ती कहते हैं, "वर्ष 2018 में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि जिन इलाकों में रामनवमी के जुलूसों की परंपरा रही है, वहीं जुलूस निकालना होगा. हम उन इलाकों में ही जुलूस निकालने की तैयारी कर रहे हैं."

ध्यान रहे कि ममता ने वर्ष 2018 के पंचायत चुनाव से पहले कहा था कि 'रामनवमी के मौके पर जुलूस या रैलियां निकाली जा सकती हैं. लेकिन शस्त्र लेकर जुलूस निकालने की अनुमति नहीं दी जाएगी. किसी तरह की हिंसा भी बर्दाश्त नहीं की जाएगी.'

पारिजात कहते हैं, "कहीं हिंसा नहीं होगी. लेकिन शस्त्र जुलूस तो निकलेगा ही. मंच की ओर से पांच सौ रैलियों की योजना है. इनमें से 20 शस्त्र रैलियां होंगी."

ममता की चिंता
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि रामनवमी मनाने पर उनको कोई एतराज़ नहीं है, लेकिन इससे राज्य के सांप्रदायिक ढांचे को नुक़सान नहीं पहुंचना चाहिए.

ममता केंद्र की कथित उपेक्षा के विरोध में 29 और 30 मार्च को दो-दिवसीय धरने पर बैठी हैं.

तृणमूल के प्रदेश महासचिव व प्रवक्ता कुणाल घोष कहते हैं, "जिनको नरेंद्र मोदी या प्रदेश के नेताओं की छवि से कोई फ़ायदा नहीं मिल रहा है, वे तो भगवान की छवि लेकर सड़क पर उतरेंगे ही. हम भगवान की पूजा करते हैं, उनको वोट के लिए सड़कों पर नहीं उतारते."

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बीते कुछ वर्षों के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भड़काऊ टिप्पणियों और रामनवमी के आयोजनों के विरोध की वजह से संघ और उसके सहयोगी संगठनों को अपना पांव जमाने में सहायता मिली है.

इसके अलावा चुनाव के समय कई जगह 'जय श्री राम' का नारा लगाने वालों के ख़िलाफ़ ममता जिस तरह भड़कीं और ऐसा करने वालों की गिरफ़्तारियां हुईं, उससे भी उनकी छवि ख़राब हुई. बीजेपी को लोकसभा चुनावों में इसका फ़ायदा मिला.

राजनीतिक विश्लेषक प्रोफ़ेसर समीरन पाल कहते हैं, "मुर्शिदाबाद ज़िले में सागरदिघी उपचुनाव के नतीजों ने तमाम दलों को अपनी रणनीति में बदलाव पर मजबूर कर दिया है.

भाजपा को लग रहा है कि वहां अल्पसंख्यक वोट कांग्रेस और सीपीएम के पाले में लौट रहे हैं. ऐसे में उसके लिए हिंदू वोटरों का धुव्रीकरण ज़रूरी हो गया है. राम महोत्सव मनाने की जड़ें इसी में छिपी हैं." (bbc.com/hindi)

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