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हेट स्पीच से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि हेट स्पीच इसलिए होती है क्योंकि "राष्ट्र इस मामले में नपुंसक हो गया है, वो निष्क्रिय भूमिका अपना रहा है और समय पर काम नहीं करता."
कोर्ट ने कहा कि जब तक राजनीति में धर्म का समावेश होता रहेगा, ऐसे नफरती भाषणों पर अंकुश लगाना संभव नहीं होगा.
दिल्ली से छपने वाले कई अख़बारों ने इस ख़बर को अपने पहले पन्ने पर जगह दी है.
इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि जस्टिस केएम जोसेफ़ की अध्यक्षता वाली एक बेंच ने सवाल किया कि "अगर यही सब होना है तो राष्ट्र की ज़रूरत ही क्या है?"
अदालत केरल के एक पत्रकार शाहीन अब्दुल्लाह की एक याचिका की सुनवाई कर रही थी जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र पुलिस के ख़िलाफ़ अदालत की अवमानना करने का आरोप लगाया था.
उनका कहना था कि कोर्ट के आदेशों के बावजूद महाराष्ट्र में कुछ हिंदू संगठनों ने रैलियों में भड़काऊ बयान दिए जिसके ख़िलाफ़ पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की.
अख़बार लिखता है कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट की टिप्पणी पर तुरंत प्रतिक्रिया दी और कहा कि ''केंद्र इस मामले में ख़ामोश नहीं है.
लेकिन केरल जैसे राज्यों में पीएफ़आई की रैली में मई 2022 को हिंदुओं और ईसाइयों के ख़िलाफ़ बयान दिए गए थे. पर वहां की सरकार इस मामले में ख़ामोश है. उन्होंने सवाल किया कि अदालत ने उस मामले में स्वत:संज्ञान क्यों नहीं लिया.''
सॉलिसिटर जनरल ने केरल में हुई पीएफ़आई की रैली का वीडियो चलाने के लिए कोर्ट से इजाज़त मांगी जिसमें एक बच्चा स्लोगन देता दिखता है. कोर्ट ने उसकी इजाज़त नहीं दी.
इसके बाद जस्टिस केएम जोसेफ़ ने कहा कि इसका नाता राजनीति से नहीं बल्कि साफ़ तौर पर धर्म से जुड़ी हेट स्पीच से है.
इसी ख़बर को लेकर टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने एक रिपोर्ट छापी है जिसमें लिखा है, "इसका नाता राजनीति से है, नफ़रत एक तरह की कभी न ख़त्म होने वाली खाई है.
इसे रोकने के लिए सरकार को क़दम उठाना पड़ेगा. अगर राजनीति और धर्म को अलग कर दिया जाएगा तो ये सब रुक जाएगा. हम ये बात आपको कह सकते हैं, आप इसे गंभीरता से लें या न लें ये आपकी मर्ज़ी है."
वहीं जनसत्ता ने अपने संपादकीय में इस मामले का ज़िक्र किया है और लिखा है कि ''ख़ुद सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अदालतें समय-समय पर हेट स्पीच को लेकर सख़्त संदेश देती रही हैं.
लेकिन राजनीतिक दलों को अदालती आदेशों-निर्देशों की कोई परवाह नहीं है. टीवी चैनलों पर आए दिन राजनीतिक दलों के प्रवक्ता सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाले वक्तव्य देते रहते हैं.''
अख़बार आगे लिखता है कि सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी से स्पष्ट है कि इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए सरकारों को संजीदगी दिखाने की ज़रूरत है. (bbc.com/hindi)