विशेष रिपोर्ट

प्रोजेक्ट टाइगर के 50 वर्ष पूरे, एशिया का सबसे बड़ा टाइगर कॉरिडोर बनने की ओर...
31-Mar-2023 12:31 PM
प्रोजेक्ट टाइगर के 50 वर्ष पूरे, एशिया का सबसे बड़ा टाइगर कॉरिडोर बनने की ओर...

चंद्रकांत पारगीर
बैकुंठपुर (कोरिया), 31 मार्च (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)।
एक अप्रैल को प्रोजेक्ट टाइगर के 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं। काफी विरोध के बाद देश की आयरन लेडी कही जाने वाली पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1 अप्रैल 1973 को इसकी आधारशीला रखी थी, 50 साल बाद कोरिया के गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान को राज्य सरकार ने टाइगर रिजर्व बनाने की घोषणा तो कि परन्तु अब तक यह अधर में लटका हुआ है। एनटीसीए की अनुमति के बाद राज्य सरकार इसे अधिसूचित नहीं कर पाई है, जबकि यहां बढ़ते टाइगर यहां के उनके हिसाब की आबोहवा के परिचायक साबित हो रहे है। मप्र के सीधी जिले से सटे होने के साथ अब यह झारख्ंाड के पलामू जिले तक टाइगर के लिए बेहद लंबा कॉरिडोर साबित हो रहा है।

इस संबंध में गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान के संचालक रामाकृष्णन का कहना है कि पार्क में बाघों की उपस्थित दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, जो यहां निवासरत है। उसके अलावा मप्र से बाघ यहां आकर आगे तक विचरण कर रहे है, उन्हें यहां खाने के लिए शाकाहारी जानवरों के साथ रहने के लिए घने जंगल के साथ पानी की सुविधा भी है। एशिया का सबसे बड़ा टाइगर कॉरिडोर बनता हुआ दिख रहा है।

पूर्व में संजय पार्क का हिस्सा रहा, बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व और तमोर पिंगला अभ्यारण से लगा हुआ गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान अब नया रूप ले चुका है। 2301.57 वर्ग कि मी में फैला हुआ यह उद्यान अब तमोर पिंगला अभ्यारण के साथ जोड़ एशिया का सबसे बड़ा टाइगर कॉरिडोर बनने जा रहा है। इसमें संजय टाइगर रिजर्व मप्र का 1774 वर्ग किमी और 483 वर्ग किमी बगदरा को जोडक़र बाघों के आने जाने के लिए एशिया का सबसे बडा टाइगर कॉरिडोर कहलाने लगा है, जो कि अब तक का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर सबसे 209 किमी लंबा होगा। इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा प्राकृतिक जल स्त्रोत मौजूद है, जिसके कारण आसपास के क्षेत्रों से वन्य जीव यहां चले आते हंै। 

कोरिया जिले मेें स्थित गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान में दुर्लभ वन्य जीवों के लिए अब सबसे सुरक्षित आरामगाह बन चुका है। वन्य प्राणियों के संरक्षण संवर्धन के लिए अच्छी जगह साबित हो रही है। 

बांधवगढ़ से पलामू टाइगर कॉरिडोर
मनेंन्द्रगढ़ वनमंडल के केल्हारी परिक्षेत्र में एक व्यक्ति की जान लेने वाला बाघ झारखंड के पलामू में देखा गया, इससे पहले वो गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान के बाद तमोर पिंगला अभ्यारण्य उसके बाद बलरामपुर वनमंडल में काफी समय तक लोगों को दिखा, बाद में वो झारखंड की सीमा में प्रवेश कर गया, पहले गढ़वा और फिर बाद में पलामू जिले में देखा गया। वन विभाग के अधिकारी इसे एक बाघों के लिए शानदार कोरिडोर मानते है। गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान की सीमा संजय टाइगर रिजर्व से लगी हुई है, जिससे ये बाघ पार्क क्षेत्र में आया और फिर यहां से विचरण करता वो झारखंड में पहुंच गया।

रानी या कोई और ...
गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान कोरिया, सूरजपुर और बलरामपुर जिले में फैला हुआ है। कोरिया में 2019 को एक शावक को जन्म देने वाली रानी कुछ महिनों से सामने नहीं आई है, वहीं सूरजपुर जिले में बाघिन ने दो लोगों को मार डाला, उसे भी गंभीर चोटें आई, जिसके बाद उसका इलाज जंगल सफारी रायपुर में जारी है। अभी यह तय नहीं हो पाया है कि वो बाघिन रानी है या कोई और। पार्क प्रबंधन इसे लेकर संजीदगी से पता लगा रहा है कि आखिर सूरजपुर में मिली बाघिन कहां की है।

सैंपल भेजे जा रहे दिल्ली
बाघ से जुड़ी हर जानकारी समय समय पर दिल्ली भेजी जा रही है। पार्क अधिकारियों की माने तो बाघ के मल को टेस्ट के लिए दिल्ली भेजा जा रहा है, जीपीएस ट्रेकिंग भी जा रही है। उन्होंने बताया कि बाघ एक ही बार में 15 दिन तक का भोजन खा लेता है, हर दिन वो 15 से 20 किमी चलता है, ऐसे में उसे आम लोगों से दूर रखना बेहद जरूरी है।

26 प्रकार के है जीव जन्तु
पार्क क्षेत्र में कई बाघ बाघिन के अलावा तेंदुआ, चीतल, सांभर, कुटरी, चौरसिंगा, नीलगाय, गौर, जंगली सुअर, चिंकारा, माउस डियर, भालू, जंगली बिल्ली, सियार, लोमड़ी, पैगोलिन, साही, पाम सिवेट, छोटा सिवेट, बुश रेट, काले बंदर, लाल बंदर, बड़ी गिलहरी के साथ दुर्लभ उदबिलाव, कवर बिज्जू, ट्री शिओ भी यहां मौजूद है। इसके अलावा जंगली हाथियों का झुंड का आना-जाना लगा रहता है। इसके अलावा गुरूघासीदास राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में नीलगाय व तेंदुओं की संख्या भी काफी तादात में है।

बारहमासी नदियों के उद्गम का है केन्द्र
गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान कई बड़ी बाहरमासी नदियों के उद्गम का केन्द्र है, यहां पूरे क्षेत्र में नदियों के साथ उसकी सहायक नदियों का जाल बिछा हुआ है, यही कारण है कि अन्य टाइगर रिजर्व से अलग है, और इसे जंगली जीव-जन्तुओं के रहने के लिए सबसे अच्छी जगह मानी गई। यहां से पैरी, गोपद, रांपा, दौना, महान, जगिया, बैरंगा, लोधार, झांगा, नेउर और खारून जैसे नदियां पूरे साल भर बहती रहती है।  

 

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