संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : साम्प्रदायिक-नफरती बातें अनसुनी करने का कोई हक शासन-प्रशासन को नहीं
15-Apr-2023 4:04 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : साम्प्रदायिक-नफरती बातें अनसुनी करने का कोई  हक शासन-प्रशासन को नहीं

छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में बिरनपुर में हुई साम्प्रदायिक हत्याओं के बाद प्रदेश में नफरती बयानों का सैलाब आ गया है। पहली हत्या एक हिन्दू की हुई, तो जाहिर है कि विश्व हिन्दू परिषद और भाजपा के करवाए गए प्रदेश बंद के दौरान दर्जनों भाजपा और हिन्दूवादी नेताओं के बड़े आक्रामक बयान आए, और छत्तीसगढ़ के हालात को पाकिस्तान से लेकर तालिबान जैसा बताया गया, इस राज्य में मुस्लिमों के एक तबके को म्यांमार से आए रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थी कहा गया, और इसके अलावा भी बहुत सी और बातें बयानों, भाषणों में, और सोशल मीडिया पर कही गईं। भाजपा के राष्ट्रीय संगठन के छत्तीसगढ़ प्रभारी ने भी यहां आने पर मीडिया में एक ऐसा बयान दिया कि मदरसों में बम, गोली, बारूद, और आतंकवाद की शिक्षा दी जाती है। अब राज्य में प्रियंका गांधी का कार्यक्रम निपट जाने के बाद कांग्रेस ने पुलिस में शिकायत की है कि ये सारे बयान सुप्रीम कोर्ट की भाषा में हेट-स्पीच के तहत आते हैं, और इन पर कार्रवाई की जाए। इस शिकायत के पहले भी मुस्लिम समाज के लोगों ने मदरसों के बारे में कही गई बात के खिलाफ पुलिस में शिकायत की थी। 

यह बात सही है कि छत्तीसगढ़ के इस ताजा साम्प्रदायिक तनाव में पहली मौत एक हिन्दू की हुई, और उसी से आगे आंदोलन शुरू करने का मौका हिन्दू संगठनों को मिला। लेकिन उस मामले में सरकार ने आनन-फानन आधा दर्जन से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया था, और बाद में और गिरफ्तारियां हुईं। लेकिन छत्तीसगढ़ बंद के सिलसिले में जितने तरह की हमलावर और नफरती बातें की गईं, उनमें से बहुत सी नाजायज थीं, बेबुनियाद थीं, और सुप्रीम कोर्ट के बड़े साफ-साफ निर्देशों की रौशनी में वे हेट-स्पीच थीं। अब अगर कांग्रेस ने यह रिपोर्ट लिखाई है, तो इसकी कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए थी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने जिस इलाके में ऐसी बयानबाजी होती है, उस इलाके के पुलिस अफसरों को सीधे-सीधे जवाबदेह बनाया है, और खुद होकर रिपोर्ट दर्ज करने के लिए कहा है। हम इसलिए यह बात तो साफ है कि छत्तीसगढ़ में अगर पुलिस मुस्लिम समाज और कांग्रेस की शिकायत पर एफआईआर करती है, तो वह न सिर्फ उसके लिए जरूरी है, बल्कि उससे बचने का कोई रास्ता भी पुलिस के पास नहीं है। 

हम कभी पल भर की उत्तेजना में मुंह से निकल गए कुछ शब्दों को अनसुना करने के हिमायती हैं, लेकिन जब एक तबका लगातार, सोच-समझकर, संगठित रूप से, मीडिया और सोशल मीडिया में लगातार ऐसा अभियान चलाए, तो फिर उसे न तो गलती से कहा गया माना जा सकता, और न ही अनदेखा किया जा सकता। यह गलती नहीं गलत काम के दर्जे की बात है। और इस बार तो जिस तरह मुस्लिम और ईसाई समाज के आर्थिक बहिष्कार की खुली कसम राम के नाम पर खाई गई है, वह हेट-स्पीच होने के साथ-साथ परले दर्जे की साम्प्रदायिक बात भी है। कहां तो एक राम थे जिन्होंने रास्ते में आने वाले किसी भी तरह के न सिर्फ इंसानों, बल्कि वानरों से भी प्यार किया, उनका भी सहयोग लिया। और दूसरी तरफ आज राम की जय-जयकार के नारे लगाते हुए लोगों को साम्प्रदायिक नफरत की कसम दिलाई जा रही है। यह घटना कानूनी कार्रवाई के लायक है, और राज्य सरकार के पास कार्रवाई न करने का कोई विकल्प नहीं होना चाहिए। चाहे जितने बरस लगें, साम्प्रदायिकता, नफरत, और हिंसा के फतवों पर कार्रवाई होनी ही चाहिए, और आज सहूलियत यह है कि वीडियो सुबूतों, सोशल मीडिया पोस्ट, और लिखित बयानों की वजह से पुलिस के पास सुबूत भी बहुत रहते हैं। और अब तो हिन्दुस्तान में कुछ अदालतें अपने अधिकार क्षेत्र से परे के मामलों में भी फैसले देने लगी हैं, इसलिए कम से कम स्थानीय पुलिस और स्थानीय अदालत को तो अपने इलाकों के मामलों पर कार्रवाई करनी चाहिए। यह जरूरी इसलिए है क्योंकि भलमनसाहत की बातें बहुत से लोगों और संगठनों पर कोई असर नहीं कर रही हैं। लोग संविधान को अनदेखा करते हुए इस खुशफहमी में जी रहे हैं कि यह देश अब हिन्दू राष्ट्र बन ही चुका है, यहां पर गैरहिन्दुओं को रहने का हक नहीं है, और उन्हें पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, और अफगानिस्तान भेज देना चाहिए। यह बात किसी पार्टी को या कुछ संगठनों को चुनाव जीतने के लिए फायदे की लग सकती है, लेकिन यह इस देश को एक बनाए रखने वाली नहीं है। ऐसे बयान चाहे जिस पार्टी या संगठन के लोग दें, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी ही चाहिए। छत्तीसगढ़ में जिस तरह से साम्प्रदायिक तनाव बढ़ रहा है, और बढ़ाया जा रहा है, उससे यहां का गौरवशाली इतिहास खत्म हो जाएगा, वर्तमान जलने लगेगा, और यही सिलसिला जारी रहा तो भविष्य राख हो जाएगा। इसलिए  राजनीतिक शिष्टाचार को छोडक़र नफरती बातों पर कानूनी कार्रवाई होनी ही चाहिए। हो सकता है कि कुछ लोगों को पहली बार यह समझ में आए कि उनकी बातें गैरकानूनी थीं, और सजा के लायक थीं, लेकिन ऐसी मिसाल कभी न कभी तो पेश करनी ही होती है, अब उसका वक्त आ गया है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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