संपादकीय

पढ़े-लिखे लोग चाहे मामूली ही हों, टेक्नालॉजी, सोशल मीडिया, और मुफ्त के मैसेंजरों की मेहरबानी से लोगों की सक्रियता देखते ही बनती है। कोई भी घटना कहीं भी होती है, किसी का एक बयान आता है, तो उस पर हजारों लाखों प्रतिक्रियाएं आने लगती हैं। अब अभी ट्विटर पर जाने-पहचाने, नामी-गिरामी लोगों को मिले हुए ब्ल्यूटिक नीले निशान को खत्म किया गया, और उसे सिर्फ माहवारी भाड़ा देने वाले लोगों के लिए रखा गया, तो बड़ा बवाल हुआ। अमिताभ बच्चन तक ट्विटर के सामने गिड़गिड़ाते रहे, और हाथ-पैर जोडक़र ब्ल्यूटिक चालू रखने की मांग करते रहे। इस मांग का समर्थन करते हुए अमिताभ को टैग करते एक ने लिखा-और अगर ई एलन मस्कवा फिर भी ना सुनी, तो एकरे दफ्तर के पिछवाड़े बमबाजी भी होय सकत है, अभी ओका समझ में नै आवा कि हम इलाहाबादी कुछ भी कर सकित है। यह धमकी अमिताभ बच्चन की मजाकिया गिड़गिड़ाहट में की गई एक गंभीर मांग के समर्थन में दी गई थी, और एलन मस्क मानो देवनागरी न समझ पाए, तो इसी बात को रोमन हिज्जों में भी लिखा गया था, और उसमें एलन मस्क को दो शब्द जरूर समझ में आए होंगे, एक तो खुद का नाम, और दूसरा उसके ऑफिस के पीछे बम्बार्डमेंट। नतीजा यह हुआ कि ऐसे इलाहाबादी अभिषेक उपाध्याय का ट्विटर अकाऊंट सस्पेंड कर दिया गया। अब उनके लाख से अधिक फॉलोअर हैं, लेकिन इस बात का भी कोई रूतबा एलन मस्क पर नहीं पड़ा क्योंकि उसे यह कारोबार भी चलाना है, इलाहाबादी अमरूद नहीं बेचने हैं।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के तौर-तरीकों से असहमत लोग भी बढ़ते चल रहे हैं। बहुत से लोगों को बार-बार फेसबुक या ट्विटर पर ब्लॉक भी कर दिया जाता है, किसी को टिप्पणी करने से रोका जाता है, किसी की पोस्ट हटा दी जाती है, क्योंकि ये प्लेटफॉर्म उनकी बातों को, उनकी पोस्ट की गई फोटो को अपने नियमों और पैमानों के खिलाफ पाते हैं। फिर जब हर घंटे करोड़ों पोस्ट होनी है, और हिंसा बढ़ाने, नफरत फैलाने की तोहमत लगनी है, तो जाहिर है कि इन्हें कुछ तो सावधानी बरतनी ही है। यह एक अलग बात है कि इनकी सावधानी के तौर-तरीके बहुत काम के नहीं हैं क्योंकि नफरत की अधिकतर बातें तो इन तमाम प्लेटफॉर्म पर राज कर रही हैं, हिंसा की धमकियां तैर रही हैं, लेकिन कुछ लोगों के अकाऊंट ब्लॉक हो रहे हैं, और उनकी पहुंच भी कहा जाता है कि सीमित कर दी जा रही है। इस बात को समझने की जरूरत है क्योंकि जब तक भी, जिस हद तक भी सोशल मीडिया लोकतांत्रिक आवाज को जगह देंगे, तब तक उसका इस्तेमाल करने में ही समझदारी है।
बहुत से लोगों का यह मानना है कि फेसबुक या ट्विटर पर उनकी पोस्ट की पहुंच को घटा दिया जा रहा है। ऐसा कहने वाले अधिकतर लोग साम्प्रदायिकता विरोधी, धर्मान्धता, और कट्टरता के विरोधी दिखते हैं। और जब ऐसे लोगों को अपनी पहुंच कम होने का अहसास होता है, तो यह जाहिर है कि इसके पीछे कैसी सोच की दिलचस्पी हो सकती है। अब वह सोच फेसबुक या ट्विटर, या इंस्टाग्राम पर किस तरह का असर खरीद सकती है, यह एक अलग कल्पना और जांच का मुद्दा है। दुनिया की बहुत सी लोकतांत्रिक ताकतों का यह मानना है कि सोशल मीडिया आज पूरी तरह बिकाऊ है, तरह-तरह की साजिशों में भागीदार है, वह किसी देश में जनमत को प्रभावित करने के लिए ठेके पर काम करने के अंदाज में अपने कम्प्यूटरों का इस्तेमाल करता है। इन बातों को बाहर बैठे हमारे सरीखे लोग साबित नहीं कर सकते, लेकिन इन कंपनियों से निकले हुए जो कर्मचारी हैं वे कई बार लोकतंत्र के हित में भीतर की साजिशों के खिलाफ बयान देते हैं जिन पर अमरीका जैसे देश में जांच भी चल रही है। अब जब तक ऐसी किसी जांच का कोई नतीजा निकले, तब तक तो ऐसी साजिशें अगर हैं, तो वे जारी रहेंगी, और हो सकता है कि इसकी नई तरकीबें भी बनती चल रही हों।
दुनिया में सोशल मीडिया को लोकतंत्र के एक सबसे बड़े औजार की तरह देखा जा रहा था। अधिकतर लोगों के लिए यह आज भी है। यह एक अलग बात है कि ताकतवर तबकों की सोच के खिलाफ चलने वाले लोगों को किनारे करने के लिए सरकार और कारोबार की ताकत पर्दे के पीछे से काम जरूर करती होगी। हो सकता है कि यह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के मैनेजमेंट को खरीदने के स्तर पर हो, या यह भी हो सकता है कि वहां पर शिकायत दर्ज कराने के जो तरीके हैं, उनका इस्तेमाल करते हुए भाड़े के साइबर-सैनिक अगर कुछ लोगों के खिलाफ लगातार शिकायत दर्ज करते होंगे, तो भी सोशल मीडिया मैनेजमेंट ऐसे लोगों की पहुंच को कम करता होगा। यही वजह है कि हिन्दुस्तान में साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ लिखने वाले लोगों की पहुंच कम होते रहती है, उन्हें ब्लॉक किया जाता है। हो सकता है कि साम्प्रदायिक ताकतों की फौज लगातार इनके खिलाफ झूठी शिकायतें करती हों, और उसके असर में इन्हें ब्लॉक किया जाता हो, इनकी पहुंच घटाई जाती हो। यह तो हम बहुत जाहिर तौर पर दिखने वाले तरीकों की बात कर रहे हैं, इससे परे भी बहुत से ऐसे तरीके इंटरनेट और ऑनलाईन दुनिया पर हो सकते हैं जो कि किसी की साख को घटा सकें, किसी की विश्वसनीयता को कम कर सकें, और फिर सोशल मीडिया के कम्प्यूटर इंटरनेट पर लिखी ऐसी बातों, ऐसी तोहमतों का नोटिस लेकर खुद ही कुछ लोगों का दायरा बांधते हों।
फेसबुक और ट्विटर पर पहुंच घटा देने की शिकायत आम हैं, लेकिन इस कंपनी का मालिक मार्क जुकरबर्ग खुद टेलीफोन कॉल पर सुनकर एक-एक की पहुंच नहीं घटाता, यह कम्प्यूटरों के जिम्मे का काम है जिसमें इंसानी दखल रहता जरूर है, लेकिन इन दोनों को प्रभावित करने के लिए पर्दे के पीछे से बहुत बड़ी-बड़ी साजिशें होती होंगी, उसके बारे में भी सोचना चाहिए। जो बहुत जाहिर तौर पर दिखता है, आज के वक्त में उससे बहुत अलग भी बहुत कुछ पर्दे के पीछे होता है। सोशल मीडिया नाम के कारोबार में सोशल सिर्फ दिखावे का है, और जो शब्द कारोबार दिखता भी नहीं है, वही असली खिलाड़ी है, और उसी के हाथों में कठपुतलियों के धागे हैं। हो सकता है कि ऐसी कंपनियों से निकले हुए कुछ लोग आगे सुबूतों के साथ इनकी नीयत का भांडाफोड़ करें, लेकिन जब तक सोशल मीडिया नाम का यह कारोबार रहेगा, तब तक उसमें कारोबारी साजिश का खतरा बने ही रहेगा।