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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : आम आदमी के सीएम बंगले पर खास आदमी के बंगले से भी बड़ा खर्च
26-Apr-2023 5:33 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : आम आदमी के सीएम बंगले पर खास आदमी के बंगले से भी बड़ा खर्च

फोटो : सोशल मीडिया

इस अखबार के यूट्यूब चैनल पर कल ही इसके संपादक ने सरकारी और संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की फिजूलखर्ची के खिलाफ तल्ख जुबान में कई बातें कही थीं, और गांधी के इस गरीब देश में किफायत बरतने की नसीहत दी थी। अब आज सुबह के इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक आम आदमी पार्टी के चर्चित मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री निवास पर 45 करोड़ रूपये खर्च किए हैं। उनकी पार्टी की सफाई यह है कि मकान 80 साल पुराना है, इसलिए इसे दुबारा बनवाने की जरूरत थी। लेकिन बीजेपी ने याद दिलाया है कि केजरीवाल ने 2013 में दावा किया था कि वे सरकारी घर, हिफाजत, और सरकारी कार नहीं लेंगे, लेकिन उन्होंने बने-बनाए घर पर 45 करोड़ खर्च किए। आम आदमी पार्टी की सफाई यह है कि यह तो सरकारी निवास है जिस पर सरकारी खर्च किया गया है। पार्टी ने बयान जारी किया है कि 1942 का बना हुआ मकान है, और सरकारी इंजीनियरों ने इसकी जगह नया घर बनाने की सलाह दी थी। इस 45 करोड़ में से 30 करोड़ ही मकान पर लगाए गए हैं, और 15 करोड़ से अहाते में बंगला-ऑफिस बनाया गया है। आम आदमी पार्टी का यह भी कहना है कि प्रधानमंत्री के लिए बन रहे नए घर पर 467 करोड़ रूपये खर्च किए जा रहे हैं, प्रधानमंत्री के मौजूदा घर की मरम्मत-सजावट पर 89 करोड़ लगाए गए थे। पार्टी ने यह भी बताया है कि दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने पिछले कुछ महीनों में अपने घर की मरम्मत और साज-सज्जा पर 15 करोड़ खर्च किए हैं। 

झारखंड के राज्यपाल की किफायत की खबरों को देखते हुए कल इस संपादक ने अपने न्यूजरूम वीडियो में नेताओं और दूसरे ओहदों पर बैठे हुए लोगों की जनता के पैसों की फिजूलखर्ची के खिलाफ कहा था, और अब यह खबर आ गई जो कि हक्का-बक्का करती है। एक मुख्यमंत्री का परिवार आखिर कितना बड़ा होता है, उस पर जनता के कितने पैसे खर्च होने चाहिए? जो व्यक्ति अपनी पार्टी को आम आदमी का नाम देता है, जो नाप से अधिक बड़े कपड़े पहनकर अपने आपको गरीब की तरह दिखाता है, जो हजार किस्म की किफायत और त्याग की बात करते आया है, वह अपने सरकारी मकान पर अगर इस तरह 45 करोड़ खर्च कर रहा है, तो वह हक्का-बक्का करने वाली बात है। केजरीवाल और उनकी पत्नी दोनों ही केन्द्र सरकार के बड़े अफसर रहे हुए हैं, वे चाहते तो अपनी पिछली तनख्वाह से भी अपनी जरूरत का कोई मकान ले सकते थे, लेकिन पुराने मकान की ऐसी मरम्मत और सजावट तो एक जुर्म की तरह लग रही है। दिल्ली बहुत महंगा शहर होगा, लेकिन जनता का पैसा नेता पर इतना क्यों बर्बाद किया जाना चाहिए? 

छत्तीसगढ़ में जब पिछले मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह के समय नई राजधानी की योजना बनी, बड़ा सा मंत्रालय बना, और दफ्तर बने, और मंत्री-मुख्यमंत्री के लिए बंगले की योजना बनी, तब भी हमने इस बात को एक से अधिक बार लिखा था कि छत्तीसगढ़ में चूंकि यह सब कुछ पहली बार बन रहा है, इसलिए सरकार के पास किफायत बरतने का एक अनोखा मौका है, और मंत्री-अफसर के बड़े-बड़े दफ्तर बनाने के बजाय, छोटे-छोटे दफ्तर बनाने चाहिए, और हर मंजिल पर मीटिंग के कुछ कमरे बना देने चाहिए जिनका अलग-अलग समय पर अलग-अलग लोग इस्तेमाल कर सकें। लेकिन आज मंत्री और सबसे बड़े अफसरों के कमरे ही ऐसे बनाए गए हैं जिनमें दर्जनों लोगों की बैठक हो सकती है, और उतने बड़े कमरों का रख-रखाव, उनकी एयरकंडीशनिंग बर्बाद होते रहती है। छत्तीसगढ़ के मंत्री-मुख्यमंत्री बंगलों के आंकड़े तो अभी सामने नहीं है, लेकिन वहां भी इसी तरह की बर्बादी हो रही होगी, क्योंकि नेता-अफसर-ठेकेदार को बड़े-बड़े निर्माण सुहाते हैं। अकेली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ऐसी दिखती है जो कि एक घनी बस्ती के बीच अपने निजी पारिवारिक मकान में रहती हैं, खपरैल के छत का मकान है, और घर के सामने की गली बारिश में पानी से भर जाती है, जिसमें ईटें रखकर ममता अपने घर आती-जाती हैं। अभी पिछले बरस इस घर में दीवाल फांदकर एक विचलित आदमी घुस आया था, वह रात भर वहां एक कोने में दुबके बैठे रहा, और सुबह पुलिस ने उसे पकड़ा था। ममता बैनर्जी शहर के बदबूदार नाले के पास की इस बस्ती में 50 बरस से रह रही हैं, और उनके रेलमंत्री रहते हुए उस वक्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जब उनके इस घर पर आए थे, तो इसे देखकर हक्का-बक्का रह गए थे। 

केजरीवाल की तरह पुराने सरकारी मकान की मरम्मत और सजावट पर बर्बादी करने वाले लोग हों, या छत्तीसगढ़ जैसे नए राज्य में बनी अंधाधुंध गैरजरूरी बड़ी राजधानी में बनते अंधाधुंध बड़े बंगलों की बात हो, इन सब पर जनता का पैसा खर्च होता है, और इसका हक किसी को नहीं होना चाहिए। दुनिया के कई बहुत संपन्न देशों में वहां के सत्तारूढ़ नेता बड़ी किफायत से रहते हैं, साइकिल पर चलते हैं। कुछ यूरोपीय देशों में तो राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री एक फ्लैट में रहते हैं जिसकी इमारत में और भी बहुत से लोग रहते हैं। अभी कुछ बरस पहले ईरान के राष्ट्रपति अहमदीनिजाद तेहरान की एक बड़ी इमारत के एक फ्लैट में रहते थे। 

जनता के पैसों पर जीने वाले लोगों को अंधाधुंध सुख-सुविधाओं का मोह छोडऩा चाहिए। लेकिन ऐसा होता नहीं है। लोग अपनी सहूलियतों पर अंधाधुंध खर्च करते हैं, और फिर उनके आदी होकर किसी भी कीमत पर उस सत्ता पर बने रहना चाहते हैं। हिन्दुस्तान में अगर ऐसे सत्तामोह को खत्म करना है, और गरीबों के साथ इंसाफ करना है तो सरकारी बंगलों की परंपरा को खत्म कर देना चाहिए। इनको नीलाम करके वहां पर बहुमंजिली इमारत बनानी चाहिए, जिसमें लोग सरकारी कर्मचारियों की फौज के बिना गिने-चुने घरेलू कामगारों के साथ रह सकें। लेकिन देश की कोई बड़ी पार्टी, कोई बड़े नेता ऐसा करना नहीं चाहते। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहने के लिए बिना परिवार के हैं, न पत्नी साथ रहती, न मां, न परिवार का कोई और। लेकिन अंधाधुंध बड़े प्रधानमंत्री निवास में रहते हुए भी उन्हें करीब पांच सौ करोड़ का नया प्रधानमंत्री निवास बनवाने से कोई परहेज नहीं रहा। जबकि उन्हीं की तस्वीरों वाली थैलियों में गरीबों को मुफ्त या रियायती अनाज बांटकर प्रचार भी किया जाता है। ऐसे गरीब देश में प्रधानमंत्री को पांच सौ करोड़ का नया घर क्यों चाहिए? देश के तमाम सरकारी बंगलों को नीलाम करके सबको एक किराया-भत्ता दे दिया जाए, और वे अपनी पसंद और क्षमता के मकान किराए से लेकर रहें, इससे छोटे-छोटे प्रदेशों में भी सैकड़ों करोड़ रूपये साल की बचत होगी, और दिल्ली जैसे शहर में तो हजारों करोड़ रूपये साल की बचत होगी। लेकिन आज अगर कोई ऐसी जनहित याचिका लेकर अदालत जाए, तो उसे बाहर फेंक दिया जाएगा क्योंकि जज खुद ही अंग्रेजों के वक्त के बड़े-बड़े बंगले छोडऩा नहीं चाहते, और रिटायर होने के बाद भी उनमें बने रहने की जुगत करते रहते हैं। इसलिए यह लोकतंत्र सही मायनों में एक सामंती तंत्र है, और इसमें कोई सुधार तभी हो सकता है जब ममता बैनर्जी जैसी फक्कड़ जिंदगी जीने वाले कोई प्रधानमंत्री बनें, और जिनमें देश के गरीबों के लिए दर्द भी हो।  

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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