संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : चहकते अमरीका में भी इतना अकेलापन कि बड़ी बीमारी जैसी नौबत
07-May-2023 3:28 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : चहकते अमरीका में भी  इतना अकेलापन कि  बड़ी बीमारी जैसी नौबत

अमरीकी सरकार के स्वास्थ्य सेवा प्रमुख, सर्जन जनरल डॉ.विवेक मूर्ति ने देश को आगाह किया है कि अमरीकी आबादी अकेलेपन और एकांतवास की ऐसी बुरी शिकार हो गई है कि यह जनस्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है। एक सरकारी रिपोर्ट जारी करते हुए उन्होंने कहा कि तकरीबन आधे अमरीकी बालिग लोग रोजाना की जिंदगी में अकेलेपन को झेलते हैं। उन्होंने कहा कि सामाजिक संबंधों की कमी सेहत के लिए बहुत बड़ा खतरा है, और अकेलेपन से समय पूर्व मौत का खतरा 26 फीसदी अधिक दिखता है, और एकांतवास से 29 फीसदी अधिक मौतों के खतरे का अनुमान है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि नाकाफी सामाजिक रिश्तों से दिल की बीमारी, दिल के दौरे, बेचैनी, डिप्रेशन, और याददाश्त खत्म होने की बीमारियां भी जुड़ी हुई हैं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अकेलेपन की वजह से अपने आपको नुकसान पहुंचाने की हिंसा बढऩे के भी संकेत हैं। कुल मिलाकर डॉ.विवेक मूर्ति ने यह हालत सामने रखी है कि अकेलेपन और एकांतवास की वजह से नौबत जितनी खतरनाक हो गई है कि जिस तरह तम्बाखू और मोटापे के खिलाफ एक अभियान चलाया जाता है, उसी तरह लोगों के अकेलेपन को खत्म करने के लिए भी समाज और सरकार को कुछ करने की जरूरत है। 

यह बात चूंकि अमरीकी सरकार के सबसे ऊंचे स्तर से आई है, इसलिए इसमें तो कुछ तो वजन माना ही जाना चाहिए। अब पिछले एक-दो दशक में ही जिस तरह जिंदगी ऑनलाईन बढ़ी है, उससे लोगों के संबंध भी असल जिंदगी की जमीन पर होने के बजाय ऑनलाईन होने लगे हैं, और उससे लोगों को एक किस्म की भावनात्मक हिफाजत भी लगने लगी है, क्योंकि उनमें रिश्ते टूटने की जटिलताएं कम रहती हैं, खतरे कम रहते हैं। लोग ऑनलाईन दोस्ती और संबंध में अपना सबसे अच्छा चेहरा सामने रखते हैं, और उनमें बिगाड़ का खतरा कम रहता है। दूसरी तरफ असल जिंदगी में लोगों की रोजमर्रा की दिक्कतें इतनी रहती हैं कि घरों के भीतर या काम की जगह पर, स्कूल-कॉलेज में, या दोस्तों के बीच कई किस्म के नकारात्मक मुकाबले हो जाते हैं, तनाव होता है, और हिन्दुस्तान जैसे देश में तो राजनीतिक और सामाजिक कारणों से इतना टकराव आपस के लोगों के बीच भी होने लगा है कि रिश्ते टूटने लगे हैं। अभी-अभी इस अखबार के यूट्यूब चैनल पर देश के एक सबसे धारदार कार्टूनिस्ट राजेन्द्र धोड़पकर का एक इंटरव्यू पोस्ट हुआ था जिसमें उन्होंने बड़ी तकलीफ के साथ कहा था कि आसपास के इतने लोग इतने साम्प्रदायिक हो गए हैं कि अब घर-परिवार के भीतर भी किसी से सद्भाव की बात करना आसान नहीं रह गया है, और उनके आसपास के लोगों से भी उनकी तनातनी होने लगी है। वे एक हौसलामंद कार्टूनिस्ट हैं, इसलिए उन्होंने अपनी इस हकीकत को खुलकर सामने रखा, जो कि बहुत से और लोगों की भी नौबत है, यह एक अलग बात है कि बाकी लोगों में उसे कहने की हिम्मत नहीं है। 

आज वक्त ऐसा आ गया है कि यह समझ नहीं पड़ता कि लोगों से अधिक वास्ता रखना अपने दिल-दिमाग की सेहत के लिए बेहतर है, या कि असल जिंदगी में अलग-थलग रहना, और सोशल मीडिया पर हमख्याल लोगों के सुरक्षित दायरे में रहना। सोशल मीडिया पर भी अनचाहे लोगों के हमले कम नहीं रहते, लेकिन उनको रोक देना आसान रहता है। असल जिंदगी में आप चाहें न चाहें, आपको आसपास के लोगों को झेलना ही पड़ता है। इसलिए ऐसा लगता है कि करीबी लोगों की सांस की बदबू से बचने की तरह लोग उनकी सोच से भी बचना बेहतर समझते हैं, और इसलिए भी कई लोग असल जिंदगी में अलग-थलग रहते होंगे। लेकिन यह अकेली बात नहीं है। आज इंटरनेट, और ऑनलाईन शॉपिंग ने, घर तक सामानों की डिलीवरी ने एक ऐसी सहूलियत दे दी है कि लोग घर के बाहर निकले बिना भी महीनों गुजार सकते हैं। और यह रिपोर्ट तो अमरीकी लोगों के बारे में है, जापान में तो अकेलेपन की आदत पिछले कुछ दशकों में लगातार दर्ज की जा रही है, और वहां लोग अब शादी भी करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते क्योंकि इंटरनेट और ऑनलाईन जिंदगी में जो सुरक्षा हासिल है, वह असल जिंदगी में तो हो नहीं सकती, जहां हजार किस्म के टकराव हो सकते हैं, तनातनी हो सकती है। इसलिए लोग शादियां नहीं कर रहे, असल जिंदगी में दोस्ती नहीं कर रहे, और तो और जिंदगी से सेक्स घटते जा रहा है, आबादी घटती चली जा रही है। लोग जापान में ऐसे मशीनी पंछी और पालतू जानवर पालने लगे हैं जो कि असल जिंदगी के लोगों की कमी को कुछ हद तक दूर करते हैं। पिछले कुछ सालों के आंकड़े देखें तो जापान की आबादी लगातार गिरती चली जा रही है, और लोगों ने अकेले रहने की आदत ऐसी डाल ली है कि अब यह आबादी बढ़ते नहीं दिख रही। 

हिन्दुस्तान जैसा देश अभी अकेलेपन के खतरों से तो बहुत दूर है, क्योंकि अभी वह सामूहिक हिंसा और नफरत के शगल में लगा हुआ है। लेकिन दुनिया के दूसरे देशों के तजुर्बों को देखकर लोगों को अपने बारे में भी सोचना चाहिए कि क्या आगे ऐसी कोई नौबत आ सकती है, और ऐसी नौबत से बचने के लिए क्या किया जा सकता है? अगर अमरीका जैसा विकसित, कामयाब, और संपन्न देश जहां लोगों के सामाजिक संबंध बहुत दिखते हैं, वहां भी अगर लोगों में इतना अकेलापन है, तो बाकी देश भी अपनी तरफ एक नजर डाल सकते हैं कि वहां नारे लगाते लोग भी किसी अकेलेपन के शिकार तो नहीं हैं?  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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