संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पवार घरेलू खींचतान से उबरे हों तो देश के विपक्ष को एक करने में लगें...
08-May-2023 4:15 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  पवार घरेलू खींचतान से  उबरे हों तो देश के विपक्ष को एक करने में लगें...

cartoon with credit, cartoonist mika aziz

पहले पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने, और फिर इस्तीफा वापिस लेने से कुछ दिन लगातार खबरों में बने रहे एनसीपी के शरद पवार ने अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में हैरानी जाहिर की है कि उन्होंने कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान धार्मिक नारे लगाए। उन्होने कहा कि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है, और जब किसी चुनाव में किसी धर्म या धार्मिक मुद्दे को उठाया जाता है तो इससे एक अलग तरह का माहौल बनता है, और यह अच्छी बात नहीं है। उन्होंने कहा चुनाव लडऩे के समय हम लोकतांत्रिक मूल्यों और धर्मनिरपेक्षता की शपथ लेते हैं। शरद पवार ने इस चुनाव और प्रधानमंत्री के बयान से परे भी कुछ बातें कहीं जिनका आज राजनीतिक वजन अधिक इसलिए है कि पिछले कुछ दिनों से उनकी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी टूटने और उनके भतीजे अजीत पवार के भाजपा के साथ जाने की अफवाहें बनी हुई थीं जो कि अभी भी खत्म नहीं हुई हैं। ऐसे में उन्होंने प्रधानमंत्री की आलोचना करके अपना रूख साफ किया है, और उन्होंने भाजपा के खिलाफ और कांग्रेस के पक्ष में कुछ और बातें भी कही हैं जो कि उनका रूख बताती हैं। 

एक क्षेत्रीय समाचार चैनल से बात करते हुए पवार ने कहा कि भाजपा कुल पांच-छह राज्यों में सत्ता में है, जबकि बाकी राज्यों में गैरभाजपा सरकारें हैं। जहां तक पूरे देश की बात है तो बीजेपी कहां है? न केरल में, न तमिलनाडु में, न तेलंगाना में, न आन्ध्र में। राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, उत्तराखंड, और बंगाल में भाजपा नहीं है। और महाराष्ट्र में भी सिर्फ एकनाथ शिंदे के पाला बदलने की वजह से वह सत्ता में है। उन्होंने कहा कि उन्हें जानकारी मिली है कि कर्नाटक में कांग्रेस जीतेगी। उन्होंने याद दिलाया कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस के कमलनाथ के मुख्यमंत्री रहते हुए कुछ विधायकों की खरीद-फरोख्त करके बीजेपी ने सत्ता हथियाई। 

आज जब पांच राज्यों में चुनाव को कुछ महीने बाकी हैं, तब देश के विपक्ष की एक बड़ी पार्टी, और एक सबसे बड़े नेता का रूख साफ रहना जरूरी है। पवार के इस्तीफे ने देश में एक असमंजस पैदा कर दिया था कि अजीत पवार अगर पिछली बार की तरह किसी सुबह पांच बजे भाजपा के साथ राजभवन चले जाएंगे, तो पवार की एनसीपी का क्या होगा? ऐसे में उन्होंने लोगों के सामने अपना रूख रखा है तो उससे विपक्ष की बाकी पार्टियां राहत की सांस ले सकती हैं। अब यह हिसाब लगाना कुछ मुश्किल है कि उनके इस बयान के बाद भी क्या अजीत पवार एनसीपी के भीतर कोई ऐसी फूट डाल सकते हैं जैसी कि एकनाथ शिंदे ने किले की तरह मजबूत दिखने वाली शिवसेना में डाल दी, और पार्टी पर काबिज हो गए, सरकार पर भी। लोगों को सत्ता में रहते हुए मजबूती की जितनी जरूरत रहती है, उससे अधिक जरूरत विपक्ष में रहते हुए चुनाव के पहले के गठबंधन में रहती है, जहां दांव पर सब कुछ लगे रहता है, लेकिन हाथ में कुछ नहीं रहता। सत्ता में तो कमाई और सहूलियतें इतनी रहती हैं कि लोग उसके मोह में एक-दूसरे से बंधे रहते हैं, लेकिन विपक्ष पर अधिक संघर्ष का वक्त रहता है, और ऐसे में शरद पवार और उनके भतीजे के बीच लंबे समय से चर्चा में चले आ रहा सत्ता संघर्ष महाराष्ट्र और देश की विपक्षी राजनीति को विचलित कर रहा था। फिलहाल अगले किसी बागी तेवर तक पवार परिवार में पावर संघर्ष थमा दिखता है। 

शरद पवार ने अपनी जिस उम्र का तकाजा देकर, और शायद जिस सेहत की वजह से पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ा था, उसे देखें तो ये दोनों बातें उन्हें प्रधानमंत्री पद का अगला दावेदार नहीं बना पाती हैं। उनसे परे तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चन्द्रशेखर राव ने पिछले एक बरस में कई राजनीतिक हलचल ऐसी पैदा की हैं जो कि कांग्रेस से परे के विपक्षी गठबंधन के लिए कोशिश दिखती हैं। उनसे भी अलग बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा को छुपाए बिना कांग्रेस से परे-परे चल रही हैं। उत्तरप्रदेश की एक बड़ी पार्टी, सपा भी कांग्रेस से अलग दिख रही है। दो राज्यों में सरकार चलाने वाली एक ताजा-ताजा राष्ट्रीय पार्टी बनी आम आदमी पार्टी कांग्रेस से परले दर्जे के परहेज वाली है। लेकिन बिहार के नीतीश कुमार और महाराष्ट्र के शरद पवार कांग्रेस के साथ तालमेल करते दिख रहे हैं। पवार तो महाराष्ट्र में गठबंधन में साथ ही हैं। इस तरह गैरभाजपा-गैरएनडीए विपक्ष आज तो कई खेमों में बंटा हुआ दिख रहा है जिसके बहुत से लोगों को एक-दूसरे से गंभीर परहेज भी है। ऐसे में विपक्ष का भविष्य और अंधेरे में डूब जाता अगर एनसीपी में फूट पड़ जाती, और अजीत पवार पार्टी विधायकों का बहुमत लेकर भाजपा के साथ सरकार में शामिल हो जाते। 

जहां तक कांग्रेस की बात है, तो हम पहले भी एक बात लिख चुके हैं कि राजनीति बहुत सन्यास जैसा काम नहीं हो सकती, इसलिए यह लिखना फिजूल है कि कांग्रेस प्रधानमंत्री पद पर दावा किए बिना सिर्फ विपक्ष को एकजुट करने का काम करे। लेकिन विपक्ष की एकजुटता किए और हुए बिना अगर लोग अपनी पीएम-उम्मीदवारी पर अड़े रहेंगे, तो वह विपक्ष को किसी किनारे नहीं पहुंचा पाएगा। इसलिए विपक्ष के कम से कम कुछ लोगों को अपनी निजी महत्वाकांक्षा, और निजी संभावना को किनारे रखकर मोदी का विकल्प बनने के बारे में सोचना चाहिए जिसमें त्याग तो कई लोगों का लगेगा ही। किसी बड़े काम के पहले बलि देने की परंपरा पहले रहती थी, और उस वक्त मानव बलि दी जाती थी, बाद में वह पशुओं की बलि पर आ गई, और अब वह भी घटती चल रही है। लेकिन किसी बड़े काम के लिए महत्वाकांक्षा की बलि अब भी लग सकती है, और लोगों को उस बारे में सोचना चाहिए। अगर पवार का घर का खतरा टल गया हो, तो वे विपक्षी एकता के बारे में अधिक कोशिश कर सकते हैं। उन्हें इसके लिए पूरा देश भटकने की जरूरत नहीं होगी, उनका कद ऐसा है कि तमाम विपक्षी नेता मुम्बई आकर उनसे मिल सकते हैं, और कांग्रेस में भी सोनिया गांधी के स्तर पर उनकी बात का खासा वजन है, देखें कि वे क्या कर पाते हैं, क्या करना चाहते हैं। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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