विचार / लेख

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-ध्रुव गुप्त
अभी-अभी एक शोध के बारे में पढ़ा जिसमें दावा किया गया है कि बिना जिम, दवाओं और योग के भी मोटापा भगाना संभव है। आपको करना इतना है कि रोज़ कुछ देर रोने की आदत डाल लीजिए। रोने से शरीर में कार्टिसोन नाम का हार्मोन बनता है। देह में इस हार्मोन का स्तर जैसे-जैसे बढ़ता है, वज़न घटने लगता है। विचित्र यह है कि यह हार्मोन शाम के समय ज्यादा बनता है। अब पता चला कि हमारे कवियों और शायरों की देह पर कभी चर्बी क्यों नहीं चढ़ती। बेचारों के जीवन का ज्यादातर हिस्सा रोने में ही गुज़रता है।
खासकर शाम को विगत प्रेम की स्मृतियां जवान होते ही उनके आंसुओं के बांध टूट पड़ते हैं। आमतौर पर लोग किशोरावस्था और जवानी के शुरूआती सालों में मोटे नहीं होते। इसीलिए कि वे रोते बहुत है - परीक्षा में रिजल्ट के लिए, नौकरी के लिए, प्रेम सफल हुआ तो मिलन के लिए और नाक़ाम हुआ तो रिजेक्शन के दुख में। शादी और कामधंधे में लगने के बाद उनका रोना बंद हुआ कि देह पर मांस चढ़ने लगता है।
शादीशुदा औरतों की स्थिति भिन्न है। वे सबसे ज्यादा रोती हैं। कभी गहनों-कपड़ों के लिए, कभी पति के विवाहेत्तर संबंधों के संदेह पर, कभी सास-बहू के सीरियल देखकर। यहां तक कि गोलगप्पे के लिए भी। इतना रोने के बावजूद शादी के कुछ ही साल बाद मुटाने वाली औरतों की संख्या प्रचंड है। इस विरोधाभास का जवाब शोध के उस हिस्से में है जहां लिखा है कि रोना स्वाभाविक होना चाहिए। रोने की नौटंकी करने से न तो कोई हार्मोन-वॉर्मोन बनता बनता है और न वज़न में कमी आती है।
शोध का छुपा हुआ अर्थ कहीं यह तो नहीं कि कुछ मामलों को छोड़कर विवाहित औरतों का रोना-धोना ज्यादातर बनावटी ही होता है जिसका उद्देश्य है पति की इमोशनल ब्लैकमेलिंग।