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सरकार की ताकत के सामने पहलवानों के डट जाने के मायने
09-May-2023 4:23 PM
सरकार की ताकत के सामने पहलवानों के डट जाने के मायने

(Photo:IANS)

 शारदा उगरा

मुख्य बातें

दिल्ली के जंतर-मंतर पर देश के लिए पदक लाने वाले पहलवान धरने पर बैठे हैं।

विनेश फोगाट, बजरंग पुनिया और साक्षी मलिक की अगुवाई में चल रहा है धरना-प्रदर्शन।

बीजेपी सांसद और भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण का आरोप है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दिल्ली पुलिस ने बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की है

पहलवानों का कहना है कि बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ  शिकायत किए तीन महीने बीते फिर भी न्याय नहीं मिला, इसलिए उन्हें दोबारा धरने पर बैठना पड़ा है।

रविवार को दिल्ली के जंतर-मंतर का नजारा, विरोध करने वाले पहलवानों के समर्थन में पहुँचे हजारों किसान।

भारतीय खेल के इतिहास में ये एक असाधारण घटना है।

हमारी याद में इससे पहले कभी जाने-माने एथलीटों का एक ग्रुप अपने शीर्ष अधिकारियों के आचरण के विरोध में सडक़ों पर नहीं उतरा।

भारत के एथलीट, चाहे वो समाज के किसी भी हिस्से से ताल्लुक रखते हैं, आमतौर पर उनकी प्रवृत्ति सत्ता के आगे झुकने वाली होती है।

किसी भी तरह के विरोध या तो दफ़्तरों की बातचीत या फिर प्रेस कॉन्फ्रेंस या मीडिया में खबर लीक करने तक सीमित रहती है।

सिर्फ कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष और छह बार के सांसद बृजभूषण सिंह को ही नहीं, बल्कि पूरी सरकार और बीजेपी को खुले तौर पर और लगातार चैलेंज देना, ये बहुत हिम्मत वाला काम है। खेलों के मामले में भारत में राजनीतिक ताक़त की एक ही दिशा है।

नेता खेल का इस्तेमाल अपने साम्राज्य और अपने एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए करते हैं और इसके बदले उन्हें एक फायदा मिलता है कि वो अपने पक्ष में एक इकोसिस्टम तैयार करते हैं, जो उनके प्रति वफ़ादार और उदार होते हैं।

परदे के पीछे की बातें सामने आने लगी हैं

पहलवानों का ये पहला विरोध है, जब एथलीटों ने सिस्टम को हिलाने की कोशिश की है।

वो अपने खेल में सबसे ताकतवर राजनेता पर आरोप लगाकर और देश के सबसे ताकतवर राजनेता से अपने वादों पर कायम रहने की अपील कर रहे हैं।

दूसरी कोशिश रविवार को दिखाई दी, जब पहलवानों के समर्थन में हजारों की संख्या में लोग खड़े हो गए हैं, जिन्हें किसान आंदोलन के सफल नेतृत्व का अनुभव है।

खेल में राजनीति को लेकर आमतौर पर परदे के पीछे होने वाली बातें अब खुलकर हो रही हैं।

हाई प्रोफाइल एथलीटों में ओलंपिक और वल्र्ड चैम्पियनशिप में मेडल जीतने वाले शामिल हैं।

उन्होंने हमें भारतीय कुश्ती के हर पहलू पर नजऱ डालने और बड़े स्तर पर खेलों के प्रशासन और उनकी कमियों को उजागर करने का मौक़ा दिया है।

पहलवानों ने जनवरी में ही विरोध-प्रदर्शन शुरू किया था क्योंकि उन्हें लग रहा था कि खेलों की संस्था के अंदर कोई तरीक़ा नहीं बचा था।

खेल संघों का क्या है हाल

अगस्त 2010, नेशनल स्पोर्ट्स डिवेलेपमेंट कोड के तहत स्पोर्ट्स फेडरेशन के कामकाज के तरीके का फ्रेमवर्क तैयार किया गया।

इसमें कहा गया कि हर खेल संगठन में खिलाडिय़ों का यौन शोषण रोकने के लिए कदम उठाने होंगे।

कोड में कहा गया कि खेल संघों में एक शिकायत समिति बनानी होगी और इसकी अध्यक्ष एक महिला होंगी।

इस कमिटी में कम से कम 50 प्रतिशत महिलाओं का होना जरूरी है।

साथ ही एक स्वतंत्र सदस्य को रखने का भी प्रावधान है, जो किसी एनजीओ या फिर ऐसी संस्था से हो, जो ‘यौन शोषण मामले को समझती हो।’

भारतीय कुश्ती संघ में यौन उत्पीडऩ से संबंधित मामलों को देखने वाली समिति में पाँच लोग हैं और इसकी अध्यक्षता एक पुरुष करते हैं और वो हैं सेक्रेटरी वीएन प्रसूद।

इस कमिटी में सिर्फ एक ही महिला हैं साक्षी मलिक। इसके अलावा समिति में तीन जॉइंट सेक्रेटरी और दो कार्यकारी सदस्य हैं।

फेडरेशन में एक ग्रिवांस रिड्रेसल कमिटी भी है, जिसका काम प्रशासनिक कुप्रबंधन से जुड़े मामलों को देखना है।

इसमें चार सदस्य हैं- कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह, इसके कोषाध्यक्ष, एक जॉइंट सेक्रेटरी और एक कार्यकारी सदस्य।

ऐसे सुनी जाएगी शिकायत?

ऐसी स्थिति में कोई पहलवान अध्यक्ष के ख़िलाफ़ या किसी कुप्रबंधन के मामले में इन समितियों में शिकायत कैसे दर्ज करा पाएगा या फिर निष्पक्ष कार्रवाई की उम्मीद करेगा।

दोनों में से किसी भी समिति में स्वतंत्र सदस्य नहीं है।

कुश्ती फ़ेडरेशन की शिकायत समिति इसी कारण कठघरे में है। ये इस बात का इशारा भी है कि ज्यादातर खेल संघों की हालत क्या होगी।

पिछले दिनों इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट में बताया कि उन्होंने 30 खेल संघों की जाँच की और इनमें आधे से ज्यादा खेल संघों में शिकायत समिति नहीं है या नियमों के मुताबिक नहीं बनाई गई है।

इनमें कुश्ती के साथ-साथ तीरंदाज़ी, बैडमिंटन, बास्केटबॉल, बिलियर्ड्स और स्नूकर, जिम्नास्टिक, हैंडबॉल, जिम्नास्टिक, जूडो, कबड्डी, कयाकिंग-कैनोइंग, टेबल टेनिस, ट्रायथलॉन, वॉलीबॉल, नौकायन और भारोत्तोलन हैं।

जिन खेलों में कमिटी सही तरीके से बनाई गई है, उनमें एथलेटिक्स, मुक्केबाजी, साइकिलिंग, घुड़सवारी, तलवारबाजी, फुटबॉल, गोल्फ, हॉकी, रोइंग, निशानेबाजी, तैराकी, टेनिस और वुशु शामिल हैं।

कहाँ जाएँ खिलाड़ी?

अख़बार के मुताबिक़ 13 संघों में सही तरीक़े से कमिटियाँ बनी थीं और 16 में नहीं थीं। बोलिंग के संघ से जानकारी नहीं मिली।

शिकायत समिति का मौजूद होना किसी भी संघ के प्रभावी और पेशेवर प्रबंधन का संकेत नहीं देता है।

यह अपने एथलीटों को व्यक्तिगत सुरक्षा की न्यूनतम गारंटी देता है।

किसी भी शिकायत को सुनने के लिए एक स्वतंत्र सदस्य की मौजूदगी और उचित सुझाव की गारंटी मिलती है।

लेकिन ऐसी व्यवस्था का नहीं होना दिखाता है कि हमारे खिलाडिय़ों के पास उत्पीडऩ और भेदभाव की शिकायत के लिए कोई सुरक्षित जगह नहीं है।

पहलवानों का विरोध खेल मंत्रालय के लिए सबसे अच्छा समय है कि वह बिना उचित शिकायत पैनल वाले संघों को इसके लिए काम करने के लिए कहे।

लेकिन 2010 की तरह उनके सिफऱ् पूछा न जाए बल्कि इन संघों के सालाना रजिस्ट्रेशन के दौरान इनका फॉलोअप किया जाए और उचित कार्रवाई की जाए।

कुछ ऐसी टिप्पणियाँ भी की जा रही हैं कि अब जब बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गई है, तो पहलवानों को अपना विरोध बंद कर देना चाहिए और ट्रेनिंग पर लौट जाना चाहिए।

लेकिन ये पहलवानों की मंशा की गलत व्याख्या है। विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया, किसी और से ज्यादा, ख़ुद जानते हैं कि यह उनके खेल के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण साल है।

वो जानते हैं कि प्रदर्शन में बिताया गया हर दिन उनके खेल के लिए नुक़सानदेह है।

वो वॉर्म अप तो कर लेते हैं, लेकिन फिटनेस को सही लेवल पर रखने और प्रदर्शन को सही रखने के लिए कम से कम हफ्ते में चार से पाँच दिन पूरी तरह से ट्रेनिंग को देने होंगे।

कुश्ती फेडरेशन के खिलाफ चल रही जाँच के कारण एशियन चैम्पियनशिप का ट्रायल दिल्ली के बजाय कज़ाख़स्तान में शिफ्ट किया गया और विनेश, साक्षी और बजरंग को ट्रायल छोडऩा पड़ा।

16 से 24 सितंबर तक सर्बिया के बेलग्रेड में वर्ल्ड रेसलिंग चैम्पियनशिप का आयोजन होना है।

2024 के पेरिस ओलंपिक में सर्बिया के पदक विजेताओं के लिए 90 कोटा स्पॉट हैं।

इसके बाद 23 सितंबर से 9 अक्तूबर तक चीन में एशियन गेम्स होंगे। वहाँ इन तीनों से मेडल की उम्मीदें हैं, उन्हें ये सब पता है।

आंदोलन चाहे सफल हो या असफल, आंदोलन जितने ज्यादा दिन चलेगा, इन पहलवानों की फिटनेस और फ़ॉर्म पर उतना ही बुरा असर पड़ेगा। लेकिन अब ऐसा लगता है कि पहलवानों ने ख़ुद को इस लड़ाई में झोंक दिया है। वो अपने सबसे कड़े प्रतिद्वंद्वी के सामने हैं और वो है सरकार की ताकत।

ये प्रशंसनीय भी है और डराने वाला भी।

इस आंदोलन में हर दिन नई रुकावटें आ रही हैं। आप उनके आँसू देख सकते हैं, थकान देख सकते हैं।

लेकिन एक चीज जो इनकी आँखों में नहीं दिख रही है, वो है- डर। (bbc.com/hindi/)

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