संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बिहार से दिल्ली के रास्ते गुजरात तक सत्ता की गुंडागर्दी खत्म करे अदालत
09-May-2023 4:26 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बिहार से दिल्ली के रास्ते गुजरात तक सत्ता की गुंडागर्दी खत्म करे अदालत

बिहार की नीतीश सरकार जिस कुख्यात सजायाफ्ता अपराधी भूतपूर्व सांसद आनंद मोहन को उम्रकैद से नाजायज तरीके से बरी करने की तोहमत झेल रही है, उसकी रिहाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका मंजूर की है, और बिहार सरकार से दो हफ्ते में जवाब-तलब किया है। यह याचिका उस मृत कलेक्टर जी.कृष्णैय्या की पत्नी ने की है जिसकी हत्या करने के जुर्म में आनंद मोहन को उम्रकैद हुई थी, और फिर नीतीश कुमार ने जेल नियमों को बदलकर उसे वक्त के पहले रिहा किया। इसे लेकर देश के आईएएस एसोसिएशन ने भी विरोध किया था, और बहुत से राजनीतिक दलों ने भी, जिनकी राजनीति नीतीश कुमार के साथ मिलकर चलने की मोहताज नहीं थी। सोशल मीडिया पर भी लोगों ने यह तोहमत लगाई थी कि राजपूत वोटों के लालच में नीतीश ने यह रिहाई की है क्योंकि आनंद मोहन और उसकी पत्नी लवली मोहन दबदबे वाले निर्वाचित नेता रहे हैं, और जातिवाद में डूबे हुए बिहार में एक बाहुबली राजपूत को साथ रखना नीतीश के लिए चुनावी फायदे का समीकरण दिखता है। 

यह बहुत अच्छा मामला है, और याद रखने की बात यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट एक दूसरे मामले में भी सुनवाई कर रहा है जिसमें गुजरात सरकार ने बिल्किस बानो के सामूहिक बलात्कारियों, और हत्यारों के एक पूरे गिरोह को सजा में छूट देकर वक्त के पहले रिहा किया था क्योंकि गुजरात में चुनाव सामने था। दिलचस्प बात यह भी है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने अदालत में खड़े गुजरात और केन्द्र के वकीलों से इन रिहाई के कागजात मांगे, तो दोनों ही सरकारों ने इससे साफ इंकार कर दिया था, और कहा था कि वे अदालत की इस मांग के खिलाफ अलग से पिटीशन दाखिल कर रहे हैं। लेकिन इसके बाद किसी वजह से इन दोनों सरकारों का हृदय परिवर्तन हुआ है, और दोनों ने अदालत को कहा है कि वे ये फाईलें दिखाने को तैयार हैं। हाल के बरसों में यह लगातार हो रहा है कि केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट को बहुत से मामलों की फाईल दिखाने या जानकारी देने से इंकार कर रही है, इनमें पेगासस जैसे घुसपैठिया फौजी सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल पर खुलासे की बात भी शामिल थी, और जजों की नियुक्ति में खुफिया रिपोर्ट की आड़ लेकर बचने की बात भी थी जिसमें केन्द्र सरकार ने इस बात पर गहरी असहमति जताई थी कि सुप्रीम कोर्ट ने खुफिया रिपोर्ट उजागर कर दी। आज के माहौल में एक तरफ तो सुप्रीम कोर्ट अधिक से अधिक पारदर्शिता की बात कर रहा है, और बंद लिफाफे में कोई भी जानकारी लेने की संस्कृति के खिलाफ लगातार बोल रहा है, दूसरी तरफ सरकार अधिक से अधिक जानकारी को छुपाने की कोशिश कर रही है। ऐसे माहौल में पहले गुजरात में सत्ता के पसंदीदा बलात्कारियों और हत्यारों को रियायत देने के खिलाफ बिल्किस बानो सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी, और अब बिहार के कत्ल के शिकार एक दलित और ईमानदार कहे जाने वाले आईएएस की पत्नी पहुंची है। 

यह बहुत शर्मनाक नौबत है कि देश की अदालत को ऐसे मामले देखने पड़ रहे हैं जिनमें सरकारें अपने हक का परले दर्जे का बेजा इस्तेमाल करते हुए जनता के खिलाफ फैसले ले रही है, अपने पसंदीदा मुजरिमों को रियायत दे रही है। बिहार का यह मामला तो उस सुशासन बाबू कहे जाने वाले मुख्यमंत्री के मुंह पर कालिख सरीखा है क्योंकि एक अफसर को माफिया की भीड़ ने मार डाला था, और सरकार ने जेल नियमों में फेरबदल करके यह शर्त हटाई कि सरकारी कर्मचारी को मारने वाले को सजा में कोई छूट नहीं मिल पाएगी। सरकार ने जिस दिन जेल नियमों में यह तब्दीली की, उसके पहले से ऐसी खबरें आ चुकी थीं कि आनंद मोहन के घर शादी के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहले ही यह कह दिया था कि जल्दी ही उसकी रिहाई हो जाएगी। नियम बदलने के पहले मुख्यमंत्री का ऐसा जुबानी वायदा उस सरकार की विश्वसनीयता को मिट्टी में मिला देता है, फिर चाहे विपक्षी समीकरणों के चलते अधिकतर पार्टियों ने इसके खिलाफ मुंह नहीं खोला। जिस दिन नीतीश सरकार ने आनंद मोहन की रिहाई का रास्ता खोला, उसी दिन हमने इसी जगह लिखा था कि सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ आईएएस एसोसिएशन को जाना चाहिए, और अदालत से यह सरकारी फैसला खारिज होगा। अभी भी हमारा मानना है कि गुजरात के बलात्कारी-हत्यारों से लेकर बिहार के इस हत्यारे तक तमाम लोगों की समय पूर्व रिहाई सुप्रीम कोर्ट से खारिज होगी। लोकतंत्र में किसी सरकार को ऐसी मनमानी की गुंडागर्दी करने की छूट नहीं रहनी चाहिए जिससे कि सरकार के पसंदीदा, और सरकार के नापसंद लोगों के बीच इतना बड़ा फर्क किया जा सके। यह बात लोकतंत्र के लिए बहुत ही शर्मनाक है, और सुप्रीम कोर्ट को दो-चार सुनवाई से अधिक नहीं लगना चाहिए, और उसके बाद हमारी उम्मीद यही है कि ये तमाम लोग वापिस जेल जाएंगे, और सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अगर केन्द्र सरकार कोई संविधान संशोधन करेगी, या नया कानून बनाएगी, तो उसका नाम भी इतिहास में काले पन्नों पर दर्ज होगा। यह बात न सिर्फ लोकतंत्र के खिलाफ है, हिन्दुस्तानी संविधान के खिलाफ है, बल्कि इंसानियत कही जाने वाली उस सोच के भी खिलाफ है जिसके तहत हत्यारों के हक, हत्या के शिकार लोगों के ऊपर नहीं हो सकते। सत्ता की गुंडागर्दी का यह सिलसिला चाहे वह किसी भी राज्य में हो, केन्द्र सरकार का हो, साम्प्रदायिक सरकार का हो, या धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करने वाली सरकार का हो, खत्म होना चाहिए।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news