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सडक़ हादसे छीन रही है जिंदगी की डोर
15-May-2023 4:18 PM
सडक़ हादसे छीन रही है जिंदगी की डोर

(Photo:IANS/Twitter)

 डॉ. संजय शुक्ला

छत्तीसगढ़ में इन दिनों लगातार सडक़ हादसों से हो रहे मौत की खबरें मीडिया की सुर्खियां बन रही है। पिछले पखवाड़े धमतरी के पास सडक़ दुघर्टना में 11 लोगों की मौत के बाद एक ही दिन कोरबा के जिले में कार और ट्रक के बीच भिड़ंत से कार सवार पुलिस सब इंस्पेक्टर और उनकी पत्नी सहित दो बच्चों की मौत और सूरजपुर के सोनगरा में ट्रक और बोलेरो के भिड़ंत में 4 लोगों की मौत और 9 लोगों के गंभीर रूप से घायल होने की खबर ने  सरकार, प्रशासन और समाज को सडक़ सुरक्षा पर गंभीरता पूर्वक विचार करने के लिए विवश कर दिया है।

गौरतलब है कि सडक़ दुर्घटनाओं के मामले में भारत दुनिया भर के शीर्ष तीन देशों में शामिल है। देश में प्रत्येक वर्ष अमूमन 5 लाख सडक़ हादसे होते हैं जिसमें 1 लाख 5 हजार लोगों की मौत हो जाती है। छत्तीसगढ़ सडक़ हादसों में देश के शीर्ष राज्यों में शामिल है। छत्तीसगढ़ एक औद्योगिक राज्य है जहां उद्योग-धंधों से लेकर खनिज परिवहन और अधोभूत संरचना व शहरीकरण के चलते सडक़ों पर यातायात का भारी दबाव है फलस्वरूप यहां सडक़ दुर्घटनाएं लगातार बढ़ रही है।

आंकड़ों के मुताबिक राज्य में बीते वर्ष 13279 सडक़ दुघर्टनाएं हुई जिसमें 5834 लोगों की मौत हुई और 11695 लोग घायल हुए जिसमें अनेक लोग स्थायी और पार्शियल अपंगता के शिकार हुए हैं। राज्य की बात करें तो इन दुर्घटनाओं में तकरीबन 70 फीसदी मौतें दोपहिया वाहन की हुई जिसमें बिना हेलमेट पहने वाहन चालकों की संख्या ज्यादा है। इसी तरह चार पहिया वाहन दुर्घटनाओं के लिए प्रमुख तौर पर तेज गति से वाहन चालन, मालवाहकों से भिड़ंत और सीट बेल्ट नहीं लगाने जैसे कारण जिम्मेदार हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ‘एनसीआरबी’ के सडक़ हादसों पर जारी रिपोर्ट चिंताजनक और निराश करने वाली है। सडक़ हादसों को लेकर राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ‘एनसीआरबी’ के रिपोर्ट मुताबिक साल 2021 में कुल 4,03,116 सडक़ दुघर्टनाओं में डेढ़ लाख से अधिक लोगों की जान गई।एनसीआरबी के मुताबिक तेज रफ्तार और लापरवाही से वाहन चलाना सडक़ दुघर्टनाओं के सबसे प्रमुख कारण हैं। बीते साल 59.7 फीसदी सडक़ हादसे तेज गति से वाहन चलाने के कारण हुई। आंकड़ों के अनुसार  तेज रफ्तार वाहन चलाने से 87,050 लोगों की तथा लापरवाहीपूर्वक वाहन चालन से 42,853 लोगों की मौत हुई। नशे में वाहन चलाना सडक़ हादसों की प्रमुख वजह है रिपोर्ट में बताया गया है कि 1.9 फीसदी दुर्घटनाओं का का कारण शराब या मादक पदार्थों का सेवन है। नशीले पदार्थों के सेवन के बाद ड्राइविंग के कारण 2,935 लोगों की जानें गईं जबकि 7,235 लोग घायल हुए। सरकार के आंकड़े के अनुसार साल 2021 में सीट बेल्ट नहीं लगाने वाले 16397 लोगों की मौतें सडक़ हादसे में हुई, इसमें 8438 ड्राइवर थे और 7959 यात्री थे।

बहरहाल यह आंकड़े उस देश के हैं जहां हर साल ‘सडक़ सुरक्षा सप्ताह’ मनाया जाता है तथा तमाम संचार माध्यमों में यातायात नियमों के पालन करने के लिए हजारों करोड़ रूपयों के विज्ञापन प्रसारित और प्रकाशित किया जाते हैं। एनसीआरबी के ताजा आंकड़े यह बताते हैं कि उक्त सरकारी आयोजन और प्रयास सडक़ हादसों को रोकने में नाकाम हो रहे हैं क्योंकि कुछ साल पहले तक सडक़ दुर्घटनाओं में मरने वालों के आंकड़े तकरीबन एक लाख थी। आश्चर्यजनक तौर पर भारत में बीमारी से ज्यादा मौतें सडक़ दुघर्टनाओं में होती है और इन मौतों में उत्पादक युवा वर्ग की संख्या लगभग 69 फीसदी है। रिपोर्ट के मुताबिक सडक़ दुघर्टनाओं में दोपहिया वाहन चालकों की संख्या ज्यादा है। देश में अपंगता के लिए सडक़ दुघर्टना प्रमुख कारण है।

भारत में सडक़ हादसों के लिए सीधे तौर पर तेज रफ्तार वाहन चालन, असावधानी पूर्वक ओवरटेकिंग, नशे के हालत में वाहन चालन, वाहन चलाते समय ट्रैफिक रूल्स का उल्लंघन, सडक़ों की जर्जर हालत, सडक़ों पर वाहन पार्किंग, वाहनों के फिटनेस परीक्षण में अनियमितता या भ्रष्टाचार, वाहन चालकों के नियमित स्वास्थ्य परीक्षण नहीं होना, चालक को नींद की झपकी लगना, यात्री बसों और भारी वाहनों में ओवरलोडिंग, सडक़ और पुल-पुलिया निर्माण में तकनीकी त्रुटि, पुल पर बाढ़ होने के बावजूद वाहन पार, वाहन चालन के समय मोबाइल फोन पर बात करने जैसी प्रवृत्ति और मौसम की खराबी जैसे कारण जिम्मेदार हैं। हादसों के लिए सडक़ों की गुणवत्ता भी मुख्य वजह है गुणवत्ता के मामले में भारतीय सडक़ें पूरी दुनिया में 46 वें पायदान पर है।

 देश में सडक़ हादसों को रोकने के लिए मोटर व्हीकल एक्ट के साथ ही तमाम तरह के यातायात नियम लागू हैं तथा इन कानूनों व नियमों के पालन सुनिश्चित कराने के लिए सभी राज्यों में भारीभरकम अमला है बावजूद सडक़ दुघर्टनाएं तथा यातायात नियमों के उल्लंघन के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इन दुर्घटनाओं के लिए व्यवस्थागत खामियों के साथ आम लोगों में यातायात नियमों के पालन के प्रति स्व अनुशासन में कमी भी समान रूप से जवाबदेह हैं। प्राय: यह देखने में आ रहा है कि लोगों में यातायात नियमों के पालन की जगह इनके अवहेलना पर जुर्माना पटाने या रिश्वत देने की मानसिकता होती है। शहरों में सिग्नल जंपिंग करना तो आम बात है।

दोपहिया और कार चालन के दौरान हेलमेट और सीट बेल्ट लगाना अनिवार्य है परंतु आम लोगों द्वारा इसके प्रति लगातार लापरवाही बरती जाती है।अनेक हादसों में यह पता चला है कि दुर्घटनाओं के वक्त यदि वाहन चालक हेलमेट या सीट बेल्ट लगाया होता तो मौत से बचा जा सकता था। हालांकि प्रशासन द्वारा इनके उपयोग के लिए बीच बीच में सख्ती दिखाई जाती है लेकिन बाद में फिर ढाक के तीन पात जैसी स्थिति बन जाती है। राष्ट्रीय राजमार्गो और अन्य सडक़ों में बिना पार्किंग लाइट के भारी वाहनों के पार्किंग से भी हादसे हो रहे हैं। आजकल हाईस्पीड कार और बाइक का चलन बढ़ा है जिसे युवा वर्ग बड़ी तेजी से चला रहे हैं फलस्वरूप हादसे हो रहे हैं। शहरों में बाइकर्स ग्रुप बने हुए हैं जो सडक़ों पर तेज रफ्तार से धमाल मचा रहे हैं इनकी वजह से आम राहगीर हादसों की चपेट में आ रहे हैं। इन बाइकर्स गैंग पर अंकुश लगाने में यातायात पुलिस पूरी तरह से नाकाम है अथवा रसूखदारों के सामने आत्मसमर्पण की मुद्रा में है।

बहरहाल सडक़ हादसों के कारण परिवार के कमाऊ सदस्यों की मौत या अपंगता ही नहीं हो रही है बल्कि इससे देश की प्रतिमाएं भी छीन रही है और अर्थव्यवस्था का भी नुकसान हो रहा है। गौरतलब है कि भारत में सडक़ दुघर्टनाओं के चलते हर साल 5.96 लाख करोड़ यानि कुल जीडीपी के 3.14 फीसदी के बराबर नुकसान होता है। इसके अलावा इन हादसों में देश के नामचीन उद्योगपतियों, डॉक्टरों, इंजीनियरों, पत्रकारों, साहित्यकारों, कलाकारों एवं संस्कृति कर्मियों, खिलाडिय़ों, राजनेताओं सहित प्रतिभा संपन्न युवाओं की मौत हो रही है जो बौद्धिक संपदा के नुकसान के साथ-साथ समाज के लिए अपूरणीय क्षति है। बहरहाल भारत में बढ़ती वाहनों की संख्या के साथ सडक़ हादसों को रोकना सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। यातायात नियमों के स्व-अनुपालन और प्रशासनिक अमले के निरंतर सजगता से सडक़ हादसों में अंकुश लगाया जा सकता है। इसके लिए  सरकार, प्रशासन और आम नागरिकों को अपनी-अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन पूरी ईमानदारी से करना होगा आखिरकार ‘जान है तो जहान है’।

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