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छग लोक सेवा आयोग की प्रतिष्ठा और कार्यशैली एक बार फिर सवालों के घेरे में
18-May-2023 4:25 PM
छग लोक सेवा आयोग की प्रतिष्ठा और कार्यशैली एक बार फिर सवालों के घेरे में

 डॉ. लखन चौधरी

छत्तीसगढ़ में लोक सेवा आयोग यानि पीएससी की प्रतिष्ठा एक बार फिर दांव पर लग चुकी है या लगती दिखती है। आरक्षण की पेंच की वजह से कोर्ट में फंसे होने के कारण परीक्षा परिणाम जारी करने में लगभग दो साल का विलंब हुआ है, और इसके बाद जब परिणाम जारी किया गया तो मामला विवादित होता दिख रहा है। परीक्षा परणिाम को लेकर जिस तरह से आरोप-प्रत्यारोप लगाये जा रहे हैं, उससे तो लगता है कि कहीं पूरा परीक्षा परिणाम फिर से लटक न जाए ? खबर तो यहां तक है कि मामले का कोर्ट जाना तय है और जारी परिणाम का कुछ महिनों/सालों के लिए लटकना भी तय है।

राज्य सेवा परीक्षा-2021 के अंतर्गत विभिन्न 20 सेवाओं हेतु 171 पदों के लिए विज्ञापित मुख्य परीक्षा परिणामों, जिसमें 170 पदों की चयन/अनुपूरक सूची जारी की गई है, को लेकर राज्य में कोहराम मच गया है। दरअसल में 2021 की यह सूची दो साल बाद सूची घोषित हुई है, और परिणामों को लेकर जिस तरह से संदेह का वातावरण उत्पन्न हुआ है, वह लोक सेवा आयोग के लिए कतई उचित नहीं है। कहा जा रहा है कि सूची के शीर्ष के 15 में अधिकतर चयनित अभ्यार्थियों का संबंध कहीं न कहीं प्रदेश के शीर्षस्थ अधिकारियों या सत्ता के करीबियों से है। इसे लेकर ही प्रदेश के राजनीतिक एवं अकादमिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। परीक्षा परिणामों को लेकर आरोप-प्रत्यारोप के बीच अब धरना-प्रदर्शन और घेराव तक की स्थिति निर्मित हो गई है।

इधर छत्तीसगढ़ राज्य सेवा आयोग के चयन पर उठ रहे सवाल के बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि चयनित उम्मीदवारों में से किसी के नौकरशाहों और राजनीतिक परिवारों से संबंधित होना कोई अपराध नहीं है। पूर्व यानि बीजेपी के समय में भी इस तरह के चयन हुए हैं। सीएम ने कहा कि भाजपा, प्रदेश में माहौल खराब करने में लगी है। यदि उनके पास कोई तथ्यात्मक जानकारी है, या चयन में कोई गड़बड़ी हुई है, तो इसे प्रमाणित करें, इसकी जांच कराएंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि सोशल मीडिया में जो बातें उठायी जा रही हैं, वो दुर्भाग्यजनक हैं। उनका तर्क है कि भाजपा नेताओं के बच्चों को अगर विधानसभा या लोकसभा में टिकट दिया जाता है, तब कहा जाता है कि योग्यता के आधार पर दिया गया है, लेकिन जब अधिकारियों और नेताओं के बच्चों का पीएससी की परीक्षा में सिलेक्शन हो रहा है, तब सवाल उठाए जा रहे हैं। यह बीजेपी का दोहरा चरित्र है।

दरअसल में मुद्दे की बात यह है कि क्या चयन सूची में वाकई विसंगतियां हैं ? क्या चयन सूची में जारी उम्मीदवारों के नामों को लेकर जो सवाल उठाए जा रहे हैं, उनमें दम है ? इधर मुख्यमंत्री की बातों को गौर करने से लगता है कि उनकी बातें भी आधारहीन नहीं हैं ? तो क्या 2023 में 2003 की विसंगतियों या कहें कि गलतियों की एक बार पुन: पुनरावृत्ति हुई है ? 20 साल बाद छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग फिर उसी तरह के कारनामें करता क्यों दिख रहा है ? कहीं यह मामला भी 2003 की तरह ही ना हो जाए ? यदि इस बार के परीक्षा परिणाम निरस्त होते हैं, जो कि 2003 के नहीं हुए थे, तो फिर क्या होगा ? कई तरह के सवाल हैं।

बात जहां तक 2003 की विसंगतियों की है, तो वह प्रकरण आज भी सुप्रीमकोर्ट में लंबित है। स्केलिंग की खामियों की वजह से चयन सूची की विसंगतियों को लेकर आज तक कोई निर्णय नहीं आया है। लिहाजा कम नंबर वाले अभ्यर्थी डिप्टी कलेक्टर एवं डीएसपी जैसे बड़े पदों पर काबिज हो गये। अब तो इन अधिकारियों को आईएएस एवं आईपीएस भी अवार्ड हो चुके हैं। अब उच्चतम न्यायालय का कोई भी निर्णय इनकी सेवाएं खा नहीं सकता है, क्योंकि इनकी सेवाएं इतनी अधिक या सेवा अवधि इतनी लंबी हो चुकी है कि इस पर कोर्ट या सरकार द्वारा निर्णय लेना ही असंभव लगता है। यदि इस प्रकरण में इनके विरूद्ध कोई निर्णय लिया जाता भी है तो दूसरी अन्य विसंगतियां पैदा होगीं। इसका तात्पर्य है कि 2003 के जिन अभ्यर्थियों के साथ अन्याय हुआ था उनके साथ न्याय होना भी असंभव लगता है।

सवाल उठता है कि क्या इस बार इस पर कोई ठोस निर्णय हो सकेगा ? यानि 2023 के जारी परीक्षा परिणाम निरस्त किये जायेंगे ? क्या पीएससी अपनी गलती कबूलेगी ? जैसा कि 2003 के मामले में पीएससी ने अपनी गलती कार्ट में कबूली थी। क्या 2021 के जारी परीक्षा परिणाम में सुधार किया जायेगा ? योग्य उम्मीदवारों को क्या इस बार भी न्याय मिल सकेगा ? क्या कुछ दिनों बाद यह मामला भी पहले की तरह ही रफ़ादफ़ा हो जायेगा ? चूंकि कुछ महिनों बाद राज्य में विधानसभा और उसके बाद लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं, लिहाजा इस बार का मामला इतना आसानी से सुलझने वाला दिखता नहीं है। कांग्रेस, भाजपा को 2003 के मामले की याद दिला रही है, तो भाजपा को लगता है कि सरकार के विरूद्ध बड़ा मुद्दा मिल गया है।

इस बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि राज्य के लाखों बेरोजगार युवाओं एवं योग्य उम्मीदवारों की मानसिक स्थिति पर क्या गुजरेगी या क्या गुजर रही होगी? पिछले मामले में तमाम गड़बडिय़ों के लिए पीएससी के परीक्षा नियंत्रक को जिम्मेदार पाया गया था। क्या इस बार भी कुछ इसी तरह की बात सामने आयेगी ? हालांकि इस बार भी पीएससी के अध्यक्ष पर उंगलियां उठ रहीं हैं, क्योंकि एक चयनित अभ्यर्थी तो उनका दत्तक पुत्र बताया जा रहा है। जबकि पिछली बार के अध्यक्ष के उपर इस तरह के व्यक्तिगत आरोप कतई नहीं थे। मामले को लेकर सरकार और राजभवन पर भी सवाल खड़े किये जा रहे हैं। राज्य के नौकरशाहों पर सवाल तो उठते रहे हैं।

बहरहाल, सरकार को इस प्रकरण को गंभीरता से लेना चाहिए। सवाल केवल पीएससी या सरकार की साख का नहीं है, अपितु पिछले साढ़े चार साल में बनी सरकार की पहचान एवं इमेज का है। चुनाव के ऐन पहले विपक्ष यदि मामले को तूल देने में कामयाब हो जाता है तो इससे सरकार की छवि पर भी असर पडऩा तय है। वहीं इस प्रकरण से राज्य के युवाओं के बीच भी सरकार की नकारात्म्क इमेज बनने की आशंका बनती दिख सकती है ? इसलिए सरकार को तत्काल इसकी निष्पक्ष जांच करानी चाहिए।

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