विचार / लेख

जिहादी अफीम पर सिसकता-सुलगता पाकिस्तान क्या सामंती जंजाल
23-May-2023 4:03 PM
जिहादी अफीम पर सिसकता-सुलगता पाकिस्तान क्या सामंती जंजाल

इमरान खान की गिरफ्तारी और फिर रिहाई के बाद से ही पाकिस्तान में अस्थिरता चरम पर है। क्या अपना अस्तित्व बचा पाएगा पाकिस्तान!

धर्म और सामंतवाद- दोनों ही आज के संसार में अतीत हैं। किसी भी देश की सुई यदि अतीत में ही अटकी रहेगी, तो उस देश को आए दिन अस्तित्व के संकट का सामना करना ही पड़ेगा। जनता तो हर देश में तरक्की चाहती है। आज के पाकिस्तान की समस्या की जड़ यही है।

  जफर आगा

जब किसी देश का आधार ही गलत हो, तो वह देश घड़ी-घड़ी संकट से जूझता रहता है। जाहिर है, उसका खामियाजा उस देश की जनता को ही भुगतना पड़ता है। पाकिस्तान भी ऐसा ही देश है जो बार-बार संकट में घिर जाता है और जनता को उस संकट की कीमत चुकानी पड़ती है। यही कारण है कि पाकिस्तान एक बार फिर गहरे संकट में फंस चुका है और इससे निपटारे के लिए जनता सडक़ों पर है।  

पिछले कुछ महीनों से पाकिस्तान ऐसे गहरे आर्थिक संकट में डूबा हुआ है कि देशवासियों को रोटी-दाल के लाले हैं। बड़ी मिन्नत-समाजत के बाद आईएमएफ ने कुछ कर्ज दिया, तो थोड़ा-बहुत काम चलना आरंभ हुआ। अभी आर्थिक संकट निपटा भी नहीं था कि देश ऐसे राजनीतिक संकट में डूब गया जिसका हल अभी तो किसी की समझ में नहीं आ रहा है।

पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को पहले जेल हुई, फिर सुप्रीम कोर्ट ने उनको जमानत पर रिहा किया। इस बीच इमरान की गिरफ्तारी से जनता भडक़ उठी और सडक़ों पर आग लग गई। हद तो उस समय हुई जब जनता ने रावलपिंडी स्थित आर्मी हेडक्वार्टर पर हमला बोल दिया। लाहौर में फौजी कोर कमांडर के घर पर कब्जा कर लिया।

फौज के खिलाफ कोई भी कदम पाकिस्तान में सबसे बड़ा पाप समझा जाता है। फिर भी ऐसा हुआ। उधर, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस उमर अता बंदियाल ने हुक्म दिया कि इमरान को फौरन अदालत में पेश करो, और फिर पूरी पाकिस्तानी व्यवस्था की मर्जी के खिलाफ इमरान को जमानत पर रिहा कर दिया गया।

पाकिस्तान एक सामंती समाज है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से फौज एवं इमरान विरोधी तमाम राजनीतिक दलों की नाक कट गई। जाहिर है कि अब सुप्रीम कोर्ट एवं शहबाज शरीफ सरकार में ठन गई है। देश की संसद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को हटाने के लिए प्रस्ताव पास कर चुकी है। उधर, इमरान के सहयोगी और विरोधी दल एक दूसरे के खिलाफ सडक़ों पर हैं। 

कुल मिलाकर यह कि देश का पूरा सामंजस्य टूट चुका है। फौज, न्यायपालिका और राजनीतिक व्यवस्था के बीच जंग छिड़ चुकी है। संकट इतना गहरा हो चुका है कि राजनीतिक जानकार इसको पाकिस्तान के लिए एक तरह के अस्तित्व का संकट बता रहे हैं। पाकिस्तान बचे या फिर सन् 1971 के समान एक बार फिर टूटे, यह तो समय ही तय करेगा लेकिन समस्या कुछ वैसा ही रूप ले रही है जैसी सन् 1970 के दशक में उस समय के पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच बन गई थी।

उस समय पंजाबी और बंगाली समुदायों के बीच लड़ाई थी। पंजाबियों ने पूर्वी पाकिस्तान के मुजीबुर रहमान के साथ कुछ वैसा ही सुलूक किया था जैसा कि इस समय फौज इमरान के खिलाफ कर रही है। सन 1970-71 में फौज ने बंगालियों का संहार किया था और अंतत: पूर्वी पाकिस्तान ने बांग्लादेश के रूप में एक नए देश का स्वरूप लेकर पंजाबी फौजी व्यवस्था से दामन छुड़ा लिया था।

अभी इमरान और फौज तथा पंजाबी राजनीतिक व्यवस्था के बीच चल रहा संकट उतना गहरा नहीं है जैसा कि बंगाली-पंजाबी के बीच ठनी स्थिति थी। लेकिन धीरे-धीरे पाकिस्तान की समस्या इस समय पंजाबी एवं कुछ और सामाजिक ग्रुप तथा पख्तून पठानों के बीच चल रही रस्साकशी भी कुछ वैसी ही दिशा ले रही है। अब पाकिस्तान सन 1970 के दशक के समान एक बार फिर टूटता है अथवा रगड़-रगड़ कर किसी प्रकार चलता रहता है, यह तो समय और अंतरराष्ट्रीय स्थितियां ही बताएंगी। लेकिन यह तय है कि पाकिस्तान एक बार फिर टूटने की कगार पर है और इस समस्या का हल कहीं नजर नहीं आ रहा है। 

इस परिप्रेक्ष्य में यह सवाल तो उठता ही है कि आखिर पाकिस्तान आए दिन ऐसे गहरे संकट में क्यों फंस जाता है। मेरी अपनी राय में तमाम पाकिस्तानी समस्याओं का कारण स्वयं उसके आधार में निहित हैं। सन 1940-50 के दशक में जब अधिकांश एशियाई देश अपनी स्वतंत्रता के पश्चात धर्म की राजनीति से छुटकारा हासिल कर आधुनिकता पर आधारित राष्ट्र निर्माण कर रहे थे, उस समय पाकिस्तान ने अपना आधार धर्म एवं भारत विरोध चुना। अर्थात पाकिस्तान अपने निर्माण के समय भविष्य नहीं बल्कि अपने अतीत की ओर देख रहा था। इसका मुख्य कारण था कि मुख्यत: पाकिस्तान का निर्माण भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम जमींदारों का हित बचाने के लिए हुआ था।

भारतीय आजादी के संघर्ष के समय इस देश की मुस्लिम व्यवस्था को दो डर उत्पन्न हुए थे। पहला यह कि क्या आजादी के बाद भारत एक हिन्दू बहुसंख्यावादी देश बन जाएगा। दूसरा भय यह था कि कांग्रेस पार्टी जिस जमींदारी व्यवस्था को आजादी के बाद समाप्त करने की बात कर रही है, उससे मुस्लिम समाज की आर्थिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो सकती है। इन्हीं भय के कारण मोहम्मद अली जिन्ना ने धर्म के आधार पर देश के बंटवारे की मांग की और वह बंटवारा कराने में सफल रहे। अत: जब सन 1947 में पाकिस्तान का निर्माण हो गया, तो वहां और भारत से गए मुस्लिम सामंतों और पंजाब एवं अन्य प्रदेशों के सामंतों ने मिलकर पाकिस्तान में एक ऐसी सामंती व्यवस्था को जन्म दिया जो अभी तक चल रही है। पाकिस्तानी फौज उसी पंजाबी-सामंती व्यवस्था की निगहबानी करती है। 

धर्म और सामंतवाद- दोनों ही आज के संसार में अतीत हैं। किसी भी देश की सुई यदि अतीत में ही अटकी रहेगी, तो उस देश को आए दिन अस्तित्व के संकट का सामना करना ही पड़ेगा। जनता तो हर देश में तरक्की चाहती है। उसके लिए आज के संसार में लोकतंत्र प्रणाली आवश्यक है। पाकिस्तान में जब कभी संकट गहरा होता है, तो फौज दो कदम पीछे हटकर लोकतंत्र का चोला पहन लेती है।

फिर जब लोकतंत्र अपना रंग दिखाता है, तो पाकिस्तानी पंजाबी सामंती व्यवस्था को अपने अस्तित्व का खतरा नजर आने लगता है। बस, फिर फौज का आतंक टूट पड़ता है और लोकतंत्र का खोखला ढांचा तितर-बितर हो जाता है।  

सन् 1970 के दशक में मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में बंगालियों ने लोकतंत्र के माध्यम से एक आधुनिक प्रणाली की बात उठाई, तो फौज ने बंगालियों का ऐसा दमन किया कि वे पाकिस्तान का दामन छुड़ाकर बांग्लादेश के रूप में अलग हो गए। फिर, सन 1970 के दशक के अंत में जब जुल्फिकार अली भुट्टो के नेतृत्व में सामंतवाद तोडऩे की बात आई, तो फौज ने भुट्टो को फांसी पर चढ़ाकर फिर पंजाबी सामंतवादी व्यवस्था को जिया उल हक के नेतृत्व में जिहादी धर्म का कवच चढ़ा दिया।

देश सिसक-सिसक कर जिहादी अफीम पर चलता रहा। लेकिन विदेशी कर्जों पर चलने वाली आर्थिक व्यवस्था अंतत: चरमरा गई। इधर, इमरान खान ने फौज से लड़ाई के बाद फौज के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। जाहिर है कि यदि सही लोकतंत्र पनपा तो फौज और सामंती पंजाबी व्यवस्था को खतरा बढ़ जाएगा। इसलिए इस समय पाकिस्तानी संकट पंजाबी एवं अन्य सामंती ग्रुप एवं पख्तून पठानों के बीच एक संघर्ष का रूप ले रहा है। यह कुछ वैसी ही स्थिति है जैसी कि बंगालियों एवं पंजाबियों के बीच छिड़े संघर्ष की थी। इस संकट से घिरा पाकिस्तान फिर टूटता है अथवा रो-रोकर चलता रहेगा, यह तो अब अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां ही तय करेंगी। लेकिन यह तय है कि पाकिस्तान फिर अस्तित्व के संकट में फंस चुका है। (navjivanindia.com)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news