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जी-20 बैठक से पहले श्रीनगर में क्या बदला और अब क्या बदलेगा
26-May-2023 4:41 PM
जी-20 बैठक से पहले श्रीनगर में क्या बदला और अब क्या बदलेगा

नितिन श्रीवास्तव

श्रीनगर में जी-20 टूरिज़्म वर्किंग ग्रुप की बैठक का दूसरा दिन था और सुबह ग्यारह बजे सहयोगी देवाशीष कुमार के साथ हम राजबाग इलाके में थे।

देवाशीष कैमरे को सेट करके बीबीसी लंदन के स्टूडियोज में लाइन भी चेक कर चुके थे क्योंकि आधे घंटे बाद हमें टीवी लाइव करना था। जिस कोने में हम खड़े थे वो हमारे होटल की बगल में ही था जो एक चलती हुई सडक़ है।

तभी दो बख्तरबंद गाडिय़ाँ बगल में रुकीं, एके-56 से लैस करीब पांच कमांडो उतरे और फिर उतरे उनके इंचार्ज जो जम्मू-कश्मीर पुलिस की वर्दी में थे।

पूछा, ‘क्या कर रहे हैं?’, हमने कहा, ‘मीडिया से हैं, ये हमारा आईकार्ड है और लाइव करने वाले हैं’।

जवाब मिला, ‘इतने सेंसिटिव जोन से आप लाइव नहीं कर सकते। यहां आस-पास आला अफसरों के घर हैं। कभी भी कुछ भी हो सकता है’।

आनन-फानन में हम समान समेट, कंधों पर लाद उनकी बताई हुई एक दूसरी जगह के लिए भागे। लाइव तो करना ही था।

छावनी में बदला शहर

श्रीनगर का ये मंजर पिछले रविवार से है और तकरीबन सारा शहर किसी फौजी छावनी-सा ही दिखता है।

क्योंकि राजबाग जैसे ‘पॉश’ माने जाने वाले इलाके में कई लोगों ने कैमरे पर आकर बात करने से मना कर दिया तो हमारे स्थानीय सहयोगी माजिद जहांगीर ने श्रीनगर के पुराने इलाके जाने का आइडिया दिया।

अगला पड़ाव था, श्रीनगर की सबसे मशहूर इमारतों में से एक, हजरतबल दरगाह।

शहर के इस सबसे पुराने इलाके की रिहाइश को छोड़ कर कर लोग बमुश्किल ही जाते हैं।

दरगाह के ठीक बगल वाली सडक़ पर एक बड़ी-सी मेज़ के किनारे बैठे 71 साल के एक बुजुर्ग, मोहम्मद यासीन बाबा, कपड़े तह कर रहे थे। पिछले 28 सालों से वे यहां गर्म कपड़े बेचते रहे हैं, लेकिन उन्हें लगता है कुछ बदला जरूर है और अब यहां गुज़ारा नहीं।

सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय आयोजन

उन्होंने बताया, ‘तब्दीली ये हुई कि जितनी बिक्री पहले थी वो आज नहीं है। संडे को हम बैठते हैं वीकेंड बाजार में। पहले 40-50 कपड़ों की बिक्री हो जाती थी, अब 10-12 की ही होती है। हालात बदल गया, आपको तो सब मालूम है। महंगाई भी बहुत हो गई, जो गैस पहले 800 रुपए की थी वो आज 1200-1300 की हो गई है। हम फुटपाथ में बैठते हैं, कहाँ से निकलेगा? जैसा हमारा हाल है वैसा सबका होता है।’

इस जी-20 बैठक से कश्मीर फिर सुर्खियों में है। यूरोपीय संघ, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश हैं जो भाग ले रहे हैं और चीन, तुर्की और सउदी अरब जैसे देश शामिल नहीं हुए हैं।

दरअसल, 2019 में केंद्र सरकार ने राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 को खत्म किया था और उसके बाद अब तक का ये सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय आयोजन है।

हो सकता है भारत श्रीनगर में जी-20 की बैठक के ज़रिए दुनिया को यह संदेश दे रहा है कि यहां सब कुछ सामान्य है।

इस बीच श्रीनगर में सुरक्षा का ये आलम है कि जिस जगह बैठक हो रही है उससे कई किलोमीटर दूर ट्रैफिक अकसर रोक दिया जाता है, हर आधे घंटे में रोड्स ब्लॉक कर दी जाती है जिससे कोई सिक्योरिटी का मुद्दा न उठे।

कुछ जानकरों की राय है कि चीजों को पूरे परिवेश में देखने की जरूरत है। वरिष्ठ पत्रकार और ‘चट्टान’ अखबार के सम्पादक ताहिर मोहिउद्दीन को लगता है, ‘वैसे तो अभी बहुत करने को बाकी है, लेकिन जो भी शुरुआत हुई है उसे भी समझना उतना ही जरूरी है।’

‘एक समय में लगा अब कुछ बचेगा नहीं यहां’

उनके मुताबिक, ‘इस इवेंट की अहमियत है, दूसरा इसमें टूरिज़्म का बड़ा पहलू है। हालात यहां काबू में है, मिसाल के तौर पर यहां लंबी हड़तालें होती थीं, मिलिटेंट अटैक होते थे, पथराव होते थे। हमने हमेशा कहा है कि ये ठीक नहीं है कि छह महीने तक सब कुछ बंद रखना, ये इकॉनमी को तबाह कर देगा, तालीम को तबाह कर देगा। तो अगर मौजूदा हालात की बात करें तो शांति ज़रूर है। बच्चे स्कूल जा रहे हैं, ऑफिस खुले हैं और काम चल रहा है।’

केंद्र सरकार का कहना है कि पिछले चार सालों में जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए 40,000 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा इस्तेमाल किए जा चुके हैं और अब सुरक्षा चिंताजनक नहीं रही। जम्मू-कश्मीर प्रशासन के मुताबिक, पिछले साल यहां आने वाले सैलानियों ने पौने दो करोड़ से ज़्यादा का रिकॉर्ड भी तोड़ा।

श्रीनगर की डल झील पर पिछले 40 सालों से शिकारा चलाने वाले ग़ुलाम नबी से बात हुई तो पता चला कि उनके जीवन में इस दौरान इतने उतार-चढ़ाव आए कि ‘एक समय में लगा अब कुछ बचेगा नहीं यहां।’

अपने शिकारे पर बुलाकर बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘कश्मीर तो सारा बदल गया, पहले टूरिस्ट था फिर यहां की अफरा-तफरी के माहौल में उनका आना बंद हो गया। इसलिए सब बिल्कुल बैठ गया था। अब जाकर टूरिस्ट फिर आना शुरू हुआ है। अब जाकर काम शुरू हुआ है। रहा सवाल पिछले चार साल के बदलाव का तो हम क्या ही कहें। हमें तो मजदूरी करनी है, शाम को खाना खाने के लिए।’

कैमरे पर आने से हिचक रहे थे लोग

श्रीनगर और आसपास के इलाकों में ये देखने-समझने के लिए कि क्या बदला, क्या नहीं बदला जब आप आम लोगों से बात करते हैं तब समझ में आता है कि ज़्यादातर कैमरे पर आने से हिचकते हैं, वो बात नहीं करना चाहते। वैसे श्रीनगर और आसपास के इलाकों में कुछ बदलाव जरूर दिखता है।

सडक़ें पहले से चौड़ी हो गई हैं, नई इमारतों का आगाज हो रहा है, बाहर के लोग यहां पर रोजगार के लिए भी आ रहे हैं और सबसे ज़्यादा अहम बात ये कि पर्यटक बड़ी तादाद में दिख रहे हैं। अब कितना बदलाव चाहिए था और कितना है इसका सही आकलन लगाने के लिए कुछ साल, मुझे लगता है, और चाहिए।

पुराने श्रीनगर इलाके में मुलाकात एक चने की दाल बेचने वाले गुलजार से हुई जिनके मुताबिक, ‘शुक्र है अल्लाह का कि दिहाड़ी बन रही है। हालात पहले से बेहतर हैं। काम थोड़ा बहुत अच्छा चला है इसलिए उसकी वजह से हालात ठीक हैं।’

हालांकि ये भी कहना जल्दबाजी होगी कि पूरे जम्मू-कश्मीर में चरमपंथी हमले बड़ी तेजी से घटे हैं। अगर कश्मीर घाटी में कमी दिखी है तो जम्मू के कुछ सीमावर्ती इलाकों में इजाफा भी हुआ है, जो कश्मीर से ज़्यादा है। साथ ही सवाल इस पर भी उठे हैं कि इस पूर्व राज्य में एक चुनी हुई सरकार कब लौटेगी। राजनीतिक विश्लेषक और पूर्व प्रोफेसर नूर अहमद बाबा के अनुसार, ‘मान लेते हैं कि जो बीत गया सो बीत गया, लेकिन एक बड़ा सवाल अभी भी है।’

उन्होंने आगे बताया, ‘2019 में जब कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म हुआ तो केंद्र सरकार ने कहा था कि हालात ठीक हैं अब सब अच्छा होगा, डिमॉक्रेसी को पूरी तरह से बहाल किया जाएगा। डिमॉक्रेसी उससे पहले ही सस्पेंड थी यहां। वैसे इस बीच यहां पंचायत स्तर के चुनाव किए गए हैं लेकिन अभी भी प्रशासन दिल्ली का है। वास्तविक टेस्ट तभी होगा जब यहां पूरी तरह से डिमॉक्रेसी रेस्टोर हो जाएगी’। 

फिलहाल तो सरकार की मंशा इस अहम बैठक को कश्मीर घाटी में सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने की है और आज इसका आखिरी दिन है। इसके बाद का क़दम शायद स्थानीय लोगों का ज्यादा भरोसा जीतने की कोशिश भी हो सकती है। (bbc.com/hindi)

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