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कनक तिवारी लिखते हैं-ऐसी थी भारतीय संसद की शुरूआत
28-May-2023 4:23 PM
कनक तिवारी लिखते हैं-ऐसी थी भारतीय संसद की शुरूआत

28 मई 2023 को संसद के नये भवन का सेन्ट्रल विस्टा के नाम से उद्घाटन हो रहा है। लोकसभा और राज्यसभा सहेजती संसद की कार्यवाही का पहला दिन 9 दिसंबर 1946 को था। 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के पहले ही संविधान सभा का गठन हो चुका था। पहली बैठक नई दिल्ली के कान्स्टीट्यूशन हॉल में सुबह 11 बजे शुरू हुई।

सबसे पहले स्वतंत्रता संग्राम सैनिक तथा कांग्रेस अध्यक्ष रहे आचार्य  जे. बी. कृपालानी ने सदन के सबसे उम्र दराज सदस्य डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा से अनुरोध किया कि सभापति होना स्वीकार करें। वरिष्ठ नेताओं को महत्व देने की भारतीय संसदीय परंपरा थी। पचहत्तर पार को मार्गदर्शक मंडल में जबरन बाद में भेजा जाने लगा। सिन्हा 83 वर्ष से कम नहीं थे। सभापति बनने पर डॉ. सिन्हा ने विदेषों से आए संदेशों को पढक़र भाषण भी दिया। उन्होंने कहा संविधान के बनने में दुनिया के कई मुल्कों से प्रेरणा ली गई है। इनमें इंग्लैंड सहित स्विटजरलैंड, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका जैसे लोकतंत्र मानने वाले देश शामिल हैं।

डॉ. सिन्हा ने एक महत्वपूर्ण उल्लेख किया। 1922 में महात्मा गांधी ने भारत में संविधान सभा स्थापित करने को लेकर एक वक्तव्य दे दिया था। उसका हिस्सा डॉ. सिन्हा ने पढ़ा। ‘‘स्वराज्य ब्रिटिष पार्लियामेंट की ओर से उपहार की तरह नहीं होगा। यह तो भारतीयों की समस्त मांगों की मंजूरशुदा घोषणा होगी, जिसे ब्रिटिश पार्लियामेंट कानून पास कर देगी। यह घोषणा भारतीय जनता की चिर घोषित मांगों की केवल सौजन्यपूर्ण स्वीकृति ही होगी। यह स्वीकृति बतौर संधि या समझौते के होगी जिसमें ब्रिटेन एक पार्टी रहेगा। जब समझौता होगा तो ब्रिटिश पार्लियामेन्ट भारतीय जनता की इच्छानुसार चुने हुए प्रतिनिधियोंं द्वारा व्यक्त करने पर जनता की मांगंों को स्वीकार करेगी।’’

इसमें कहां शक है गांधी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और आदर्शों को लेकर केन्द्रीय नेता और आवाज रहे हैं। सभी संवैधानिक संस्थानों में गांधी का चित्र आजादी के महान आंदोलन की याद दिलाता है। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सहित सुप्रीम कोर्ट और तमाम अदालतों और कार्यालयों में गांधी को केन्द्रीय प्रेरणा षक्ति के रूप में शीर्ष स्थान पर दिखाया जाता है। अरविन्द केजरीवाल जैसे कुछ मसखरे राजनीतिज्ञ हैं जिन्होंने अपनी सरकार के दफ्तर से सिर के ऊपर लटके गांधी की तस्वीर हटा दी है। गांधी ही हिन्दू महासभा के कर्ताधर्ता विनायक दामोदर सावरकर को समझाने के लिए लंदन गए थे कि हिंसा के जरिए कोई मुल्क आजाद नहीं होता। उससे केवल नफरत फैलती है। हिंसा के जरिए भारत आजाद नहीं भी हुआ। सावरकर के नहीं मानने पर गांधी ने पानी के जहाज पर दक्षिण अफ्रीका लौटते हुए दस दिन में ‘हिन्द स्वराज’ नाम की अपनी क्लासिक लिखी। वह पूरी दुनिया में राजनीतिक दर्षन के बुनियादी ग्रंथ के रूप में पढ़ी जाती है।

अजीबोगरीब है मोदी सरकार ने नए संसद भवन का नाम ‘गांधी भवन’ रखने के बदले अंगरेजों की गुलामी करते हुए ‘सेन्ट्रल विस्टा’ नामकरण किया है। हिन्दू महासभा और संघ के नेता तो अंगरेज सरकार को आजादी के आंदोलन को कुचल देने के लिए चि_ियां तक लिखकर उकसाते रहे हैं।

डॉ. सिन्हा ने संविधान सभा को बताया कि गांधी जी के संविधान सभा गठित करने के प्रस्ताव को मई 1934 में रांची बिहार में गठित ‘स्वराज पार्टी’ ने समर्थन दिया था। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने भी उसे पटना में मई 1934 में स्वीकार किया। दिसंबर 1936 में फैजपुर मेंं हुए कांग्रेस सम्मेलन में भी उसका समर्थन किया गया। नवंबर 1939 में कांग्रेस कार्यसमिति ने उसे मंजूर किया। दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने 1940 में संविधान सभा के गठन की योजना मंजूर की। सप्रू कमेटी ने भी इसी कल्पना को पसंद किया था जो 1945 में प्रकाशित हुई।

डॉ. सिन्हा ने जोर देकर कहा हमें जवाहरलाल नेहरू के शब्द याद रखने चाहिए जिन्होंने कहा था कि राष्ट्र अपने चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा अपनी खुदमुखतारी के निर्माण के लिए आगे बढ़ चुका है। यह पूरा इतिहास पढक़र ही संविधान बना।

पता नहीं 28 मई 2023 के तथाकथित अंगरेजी नाम वाले ‘सेन्ट्रल विस्टा’ की स्थापना कार्यक्रम में देश की आत्मा महात्मा गांधी के नाम का कितना उल्लेख हो। सुभाषचंद्र बोस ने गांधी को राष्ट्रपिता का खिताब दिया था। भाजपा और नरेन्द्र मोदी तो कुछ बरस पहले सुभाष बाबू से संबंधित सरकारी फाइलों को उजागर करने की मुहिम छेड़े हुए थे। उन्हें उम्मीद थी कि उनमें नेहरू के खिलाफ  बहुत कुछ मिलेगा। जब नहीं मिला तो उन्होंने सुभाष बाबू को अधर में छोड़ दिया। पहले तो उनके परिवार के सदस्यों को बहला फुसलाकर भाजपा में शामिल किया था। उसके बाद बोस परिवार के सदस्यों ने खुद ही उनके साथ हो रहे छल-कपट को देखते भाजपा से छोड़ छुट्टी कर ली।

डॉ. सिन्हा ने महान भारतीय कवि अल्लामा इकबाल की कुछ पंक्तियां पढक़र सुनाईं। वे आज भी भारत के इतिहास की यादों में दमखम के साथ गूंज रही हैं। कुछ बहरे हैं जो उन्हें नहीं सुन पा रहे। इकबाल ने कहा था:-

यूनान, मिस्त्र, रोमां, सब मिट गये जहां से,

बाकी अभी तलक है नामो-निषां हमारा।

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,

सदियों रहा है दुश्मन दौरे ज़मां हमारा।।

डॉ. सिन्हा ने पवित्र ग्रंथ बाइबिल की याद में भी कहा। उसमें लिखा है:-‘जहां दूरदृष्टि नहीं है वहां मनुष्य का विनाष है।’ ईसाइयों की आबादी भारत में दो प्रतिशत से भी बहुत कम है। राजनेताओं को इसीलिए उनकी बहुत जरूरत नहीं होती। अलबत्ता हालिया नरेन्द्र मोदी ने केरल जाकर ईसाई धर्म गुरुओं से सौजन्य भेंट की थी। इस उम्मीद में कि धुर दक्षिणी राज्य में भाजपा का वोट बैंक कुछ तो बढ़े। लेकिन ठीक उसी वक्त कर्नाटक के मतदाताओं ने सांप्रदायिक और जातीय राजनीति को अपने प्रदेष से चलता कर दिया।

आज संसद के सबसे वरिष्ठ सदस्य द्वारा तथाकथित ‘सेन्ट्रल विस्टा’ का उद्घाटन करने का सवाल नहीं है। भारत में आजादी और संविधान को लेकर प्रधानमंत्री के शब्दों में अमृतकाल चल रहा है। इतिहास का अमृतकाल होता है। मनुष्य तो क्षण भंगुर है। कितने प्रधानमंत्री हुए और चले गए। नरेन्द्र मोदी भी अमर नहीं हैं। भारतीय विचार परंपरा मरी नहीं है, बशर्ते सत्ताशीन लोग परंपरा का सम्मान करें। इतिहास किसी को नहीं बख्षता। यही इतिहास का दस्तूर है। संविधान के प्रावधानों के खिलाफ  हो रही ‘सेन्ट्रल विस्टा’ की शुुरुआत बदनाम गोदी मीडिया की मदद से कई झूठे आरोपों के शोरगुल में तब्दील की जा रही है। षोरगुल धूल का अंधड़ है। जब धूल बैठ जाती है, तब सब कुछ साफ -साफ दिखाई देता है। धूल अगर आंखों में घुस जाती है, तो नजर दूषित हो जाती है। यही तो भारत में हो रहा है। काश! नरेन्द्र मोदी और भाजपा संवैधानिक परंपरा का सम्मान करते। उनके पास तो अपना कोई गौरवपूर्ण इतिहास भी नहीं है। वे बेचारे क्या करेंगे?  

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