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आबादी के मामले में चीन को पीछे छोडऩे वाला भारत क्या ग्लोबल सुपर पावर भी बन सकता है?
28-May-2023 4:42 PM
आबादी के मामले में चीन को पीछे छोडऩे वाला भारत क्या ग्लोबल सुपर पावर भी बन सकता है?

 रिकॉर्डो सेनरा

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार चीन को पीछे छोड़ते हुए भारत पृथ्वी का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है।

अब सबसे बड़ा सवाल है कि क्या वो एक वैश्विक सुपर पावर के तौर पर अपने ताकतवर पड़ोसी की बराबरी या उसे पीछे भी छोड़ सकता है?

अर्थव्यवस्था के आकार, भूराजनैतिक दबदबे और सैन्य ताकत के मामले में बीजिंग अभी बहुत आगे है। लेकिन एक्सपर्ट का कहना है कि यह तस्वीर बदल रही है।

अर्थशास्त्र में 2001 के नोबल पुरस्कार विजेता माइकल स्पेंस का मानना है कि भारत का वक़्त आ चुका है।

प्रोफेसर माइकल स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में डीन हैं, उन्होंने बीबीसी से कहा, ‘भारत जल्द ही चीन की बराबरी कर लेगा। चीनी अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ेगी लेकिन भारत की नहीं।’

लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं

चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी और भारत के मुकाबले पांच गुना बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारतीय अर्थव्यवस्था का दुनिया में पांचवां स्थान है।

भारत के मध्यवर्ग का आकार अपेक्षाकृत छोटा है और चीन जैसा विकास करने के लिए भारत को शिक्षा के क्षेत्र में, जीवन स्तर में, लैंगिक समानता और आर्थिक सुधारों में भारी निवेश करने की जरूरत होगी।

सबसे बड़ी बात है कि ग्लोबल सुपर पावर होने के लिए आबादी और अर्थव्यवस्था ही पर्याप्त नहीं है। यह भूराजनैतिक और मिलिटरी पॉवर पर काफी कुछ निर्भर करता है और ये इन क्षेत्रों में भारत बहुत पीछे है।

हालांकि सॉफ्ट पावर भी मुख्य भूमिका निभाता है। भारत का बॉलीवुड फिल्म उद्योग दुनिया भर में भारत की छवि बनाने में बहुत प्रभावी है और नेटफ्लिक्स पर इसका प्रदर्शन शानदार है।

लेकिन तेजी से बढ़ते चीन के फिल्म उद्योग ‘चाइनावुड’ ने हाल ही में हॉलीवुड को पीछे छोड़ दिया। पहली बार 2020 में उसने बॉक्स ऑफिस पर दुनिया का रिकॉर्ड तोड़ दिया और 2021 में भी उसने दोबारा ऐसा किया।

भारत की आर्थिक रफ्तार

आज भारत में हर दिन 86,000 बच्चे पैदा होते हैं जबकि चीन में 49,400 बच्चे।

कम जन्मदर की वजह से चीन की जनसंख्या सिकुड़ रही है और इस सदी के अंत तक इसकी जनसंख्या का एक अरब के नीचे आना तय है।

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2064 तक भारत की आबादी का बढऩा जारी रहेगा और इसकी जनसंख्या मौजूदा 1.4 अरब से बढ़ कर 1.7 अरब हो जाएगी।

यह भारत को डेमोग्राफिक डिविडेंड (जनसांख्यिकी लाभांश) देगा। काम करने लायक आबादी के बढऩे की वजह से तेज आर्थिक विकास के लिए डेमोग्राफिक डिविडेंड शब्दावली का इस्तेमाल होता है।

न्यूयॉर्क के न्यू स्कूल में भारत चीन इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर प्रोफेसर मार्क फ्रेजियर के अनुसार, ‘1990 के दशक में जो सुधार हुए थे उसका भारत को अब फायदा मिल रहा है। लेकिन कार्यशील आबादी की शिक्षा, स्वास्थ्य, हुनर और अर्थव्यवस्था में योगदान की क्षमता बहुत मायने रखता है।’

हाल के महीनों में एप्पल और फॉक्सकॉन जैसी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों को आकर्षित करने के बावजूद भारत की आंतरिक नौकरशाही और बार बार नीति बदलने के कारण उपजी अस्थिरता से कुछ अंतरराष्ट्रीय निवेश बिदकते भी हैं।

प्रो. फ्रेजियर कहते हैं, ‘उन्नीसवीं शताब्दी में माना जाता था कि जितनी बड़ी आबादी होगी, आप भी उतने ही ताकतवर होंगे।’

वल्र्ड बैंक के अनुसार, आज काम करने की उम्र (14-64 साल) वाले आधे भारतीय ही वास्तव में नौकरी कर रहे हैं या नौकरी की तलाश में हैं।

और जहां तक महिलाओं की बात है तो यह आंकड़ा 25त्न तक गिर जाता है, जबकि चीन में यह 60त्न और यूरोपीय संघ में 52त्न है।

1980 और 1990 के दशकों में लगातार सुधारों के बाद चीन की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ी।

लेकिन कोविड, बूढ़ी होती आबादी और पश्चिम के साथ लगातार बढ़ते तनाव के कारण देश की विकास दर पर असर पड़ा है।

भारत की जीडीपी की रफ्तार पहले ही चीन के मुकाबले तेज है और आईएमएफ का अनुमान है कि इसके ऐसे ही बने रहने की पर्याप्त संभावना है।

लेकिन कम वृद्धि दर का मतलब है कि चीन की प्रासंगिकता भी कम हो जाएगी?

प्रोफेसर स्पेंस कहते हैं, ‘अगर चीन 2030 तक 4त्न या 5त्न की दर से विकास करता है तो यह बहुत शानदार उपलब्धि होगी। लोग ये सोच सकते हैं कि जो देश 8-9त्न की दर से बढ़ रहा था ये धीमापन एक बुरी बात है, लेकिन सोचने का यह तरीका सही नहीं है।’

उनके मुताबिक, ‘चीन अब कमोबेश अमेरिका की तरह है। अमेरिका कभी भी 8, 9, 10त्न की दर से नहीं बढ़ा। वो अपनी उत्पादकता दर पर भरोसा कर रहे हैं और मुझे लगता है कि वे शिक्षा, विज्ञान और टेक्नोलॉजी में भारी निवेश कर इसे हासिल भी कर रहे हैं।’

चीन की सैन्य ताकत

चीन और भारत दोनों परमाणु हथियार संपन्न शक्ति हैं और यह उन्हें दुनिया के नक्शे पर एक रणनीतिक स्थिति प्रदान करता है।

 फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट का अनुमान है कि बीजिंग के पास दिल्ली के मुकाबले ढाई गुना अधिक परमाणु हथियार हैं।

चीन की सेना का आकार 6,00,000 है और रक्षा उद्योग में भारी निवेश कर रहा है।

प्रो. फ्रेजियर का कहना है, ‘भारत रक्षा मामले में रूस, आयातित टेक्नोलॉजी और विशेषज्ञता पर पूरी तरह निर्भर है जबकि सैन्य ढांचे में रिसर्च और स्वदेशी विकास कार्यक्रमों पर चीन बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है।’

रक्षा क्षेत्र में हालांकि चीन की बढ़त साफ़ है, लेकिन यूरोप और अमेरिका के साथ नज़दीकी रिश्ते भारत को दमदार बनाते हैं, क्योंकि दुनिया की अधिकांश सैन्य ताकतें उनके साथ हैं।

प्रो.फ्रेजियर कहते हैं, ‘हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझीदार हो सकता है, जहां अमेरिकी सरकार चीन को घेरते हुए एक किस्म का सिक्युरिटी जोन विकसित कर रही है जिसमें केवल पूर्वी एशिया ही नहीं है बल्कि दक्षिण एशिया और हिंद महासागर भी शामिल हैं।’

भूराजनैतिक विकल्प

भारत इस साल जी-20 समिट की मेज़बानी कर रहा है और वो इस दौरान खुद को प्रमोट करने के एक मौके के तौर पर देख रहा है क्योंकि दुनिया की 85त्न संपत्ति का प्रतिनिधित्व करने वाले देश इसमें शामिल हैं।

अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल के समय से ही एक तरफ दुनिया के सबसे ताकतवर देशों के साथ चीन के रिश्ते बिगड़े हैं लेकिन दूसरी तरफ रूस, दक्षिण अफ्रीका से लेकर सऊदी अरब और यूरोपीय संघ समेत 120 देशों के साथ चीन मुख्य आर्थिक साझीदार है।

इसके साथ ही कई ट्रिलियन डॉलर की लागत से बन रहे बेल्ट एंड रोड परियोजना, विदेशों में चीन के राजनीतिक असर को बढ़ाता है।

पश्चिम भारत को अपने मुख्य भू राजनैतिक पार्टनर के रूप में देखता है तो दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बिजिंग के पास पांच सीटें हैं, इसका मतलब है कि उसके पास फैसले की ताक़त यानी वीटो है।

ये हालात हैं जो भारत और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाएं दशकों से बदलने की कोशिश में हैं, लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली है।

हालांकि एक्सपर्ट का कहना है कि सुरक्षा परिषद में वोटिंग की ताकत का आर्थिक आकार या असर से कोई लेना देना नहीं होता। इसीलिए दुनिया को इन संस्थाओं में सुधार लाना होगा या ये अपनी अहमियत खो देंगी क्योंकि वैकल्पिक चीजें उभरेंगी।

इस समय जो मुख्य वैकल्पिक निकाय ब्रिक्स है। इस आर्थिक गुट में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका हैं और ये पश्चिम के आर्थिक और भूराजनैतिक काट के लिए बनाया गया है।

सॉफ्ट पावर

सदी भर पहले अमेरिकी मूल्य मान्यताओं और प्रभाव को पूरी दुनिया में पहुंचाने के लिए हॉलीवुड ने एक सशक्त माध्यम की भूमिका निभाई थी।

चीन और भारत भी इसी रणनीति को सफलतापूर्वक आजमा रहे हैं।

चीन में 2007 के बाद से सिनेमा हाल की संख्या में 20 गुना की वृद्धि हुई है और अमेरिका में 41,000 और भारत के 9,300 के मुकाबले में इनकी संख्या 80,000 तक पहुंच गई है।

कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी में मीडिया एंड कल्चरल स्टडीज की चायनीज प्रोफेसर वेंडू सू के अनुसार, ‘महामारी के पहले चाइनावुड ने कई हॉलीवुड फिल्म स्टूडियोज का अधिग्रहण करके और फिल्मों में सह निर्माता बनकर दुनिया भर में अपने असर को बढ़ाना जारी रखा था।’

लेकिन 2020 और 2021 में लगातार अमेरिकी फिल्म मार्केट को पीछे छोडऩे के बाद, लॉकडाउन के कारण चीन का बॉक्स ऑफिस 2022 में 36त्न गिर गया।

बॉलीवुड ने भारतीय सिनेमा को पूरी दुनिया में पहचान दी है।

प्रो. सू के मुताबिक, ‘पूरी दुनिया में बॉलीवुड का असर कहीं व्यापक और मजबूत है।’

उनका कहना है, ‘चीन में भी बॉलीवुड की फिल्मों का बहुत असर है। दंगल फिल्म ने चीन में किसी भी हॉलीवुड फिल्म के लगभग ही कमाई की और 16 दिनों तक चीन के बॉक्स ऑफिस पर नंबर वन बनी रही। सिनेमाघरों में यह 60 दिनों तक चली।’ (bbc.com/hindi)

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