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फ्रॉड करने वाले किस इलाके के?
साहित्य, कला, विज्ञान, उद्योग ऐसी कौन सी विधा है जिसमें पश्चिम बंगाल की धाक ना हो। डॉक्टर्स डे पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री बिधान चंद्र रॉय की स्मृति में ही मनाया जाता है। इसी राज्य की आनंदीबाई जोशी को भारत की पहली महिला चिकित्सक का दर्जा मिला हुआ है। मगर विडंबना देखिए कि जैसे ही किसी संदिग्ध मेडिकल प्रैक्टिशनर, जादू-टोने वाले का जिक्र होता है उसे बंगाल से जोड़ दिया जाता है, चाहे वे देश के किसी कोने से क्यों न हों। गांव-कस्बों में इनकी सस्ते इलाज वाली दुकान बढिय़ा चलती है। बिना कोई साइन बोर्ड लगाए, संकरी गली के भीतर भी। गलत इलाज में जानें चली जाती हैं, पर लोगों के पास झोलाछाप का कोई दूसरा विकल्प नहीं।
बंगाली डॉक्टर कहना वैसे सम्मानजनक संबोधन भी नहीं है। एक खास इलाके को किसी गैर कानूनी काम से क्यों जोड़ा जाए। पर रायपुर पुलिस इस बात को दोबारा याद दिला रही है। ऑनलाइन ठगी झारखंड के जामताड़ा से शुरू होकर देश के दूसरे हिस्सों में फैली। अब छत्तीसगढ़ में भी स्थानीय युवकों की ऑनलाइन ठगी का जाल बिछ चुका है, मगर लोगों को सजग, सतर्क करने के लिए सोशल मीडिया पर डाली गई पोस्ट में रायपुर पुलिस ने बंगाली शब्द का मिसाल देना जरूरी समझा।
पीएससी प्रतिभागी हार मानने लगे?
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा में एक लाख से अधिक युवाओं ने भाग लिया था। कुछ विवादित और अजीबोगरीब सवालों के बावजूद इनमें से 3095 परीक्षार्थी प्रारंभिक परीक्षा में सफल हो गए। अब इन्हें मुख्य परीक्षा में भाग लेने का अवसर मिला है। इधर मुख्य परीक्षा के लिए प्रारंभिक उत्तीर्ण कर चुके अनेक परीक्षार्थियों ने आवेदन ही नहीं किया। ऑनलाइन आवेदन जमा करने की तारीख पहले 25 मई थी। फिर इसे बढ़ाकर 27 मई किया गया। फिर भी कई अभ्यर्थियों ने जब आवेदन जमा नहीं किया तो अब इसे 30 मई तक के लिए बढ़ा दिया गया है। इसी बीच सन् 2021 के चयनित परीक्षार्थियों की सूची घोषित की गई, जिस पर भाई भतीजावाद और रसूखदारों को मौका देने का आरोप है। इसके विरोध में प्रदेश में अलग-अलग बैनर पर आंदोलन हो रहे हैं। कड़ी मेहनत के बाद जिन परीक्षार्थियों ने प्रारंभिक उत्तीर्ण कर ली वे क्या मुख्य परीक्षा में भाग नहीं लेना चाहेंगे? यदि वे पारदर्शी भर्ती की सारी उम्मीद छोड़ चुके हैं तो यह बड़े अफसोस और चिंता की बात होगी।
ऐ भाई जरा देख के चलो...
कबीरधाम जिला मुख्यालय से भोरमदेव की ओर जाने वाली इस सडक़ में आगे अंधा मोड़ होने की चेतावनी देकर पीडब्ल्यूडी ने अच्छा किया। पर गड़बड़ी यह हो गई है कि आगे सडक़ दाहिने ओर मुड़ती है और यह बोर्ड बाईं ओर मुडऩे के लिए कह रहा है।
पहला नहीं दूसरा वीआरएस आवेदन
आईएएस नीलकंठ टेकाम राजनीति में अपनी किस्मत चमकाने के लिए वीआरएस की अर्जी देकर सुर्खियों में आ गए हैं। सुनने वालों के लिए टेकाम का स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन देना पहली बार होगा, लेकिन यह उनका दूसरा मौका है। बताते हैं कि टेकाम ने दो दशक पहले अविभाजित मध्यप्रदेश के बड़वानी में राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहते 2003 में चुनाव लडऩे के लिए दिग्विजय सरकार को वीआरएस की अर्जी दी थी। टेकाम की उस अर्जी को दिग्विजय सिंह ने छत्तीसगढ़ कैडर का अफसर होने का हवाला देकर जोगी सरकार को मंजूरी के लिए भेज दिया था।
बड़वानी में डिप्टी कलेक्टर चुने जाने से पहले टेकाम कॉलेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर पदस्थ थे। सुनते हैं कि टेकाम ने अपनी सर्विस के दौरान राजनीतिक पार्टियों से मधुर रिश्ता बना लिया था। वह कॉलेज में कार्य करते सियासी दांव-पेंच में माहिर हो गए थे। सहायक प्राध्यापक रहते टेकाम का मध्यप्रदेश में डिप्टी कलेक्टर के पद पर चयन हो गया। संयोगवश टेकाम बड़वानी में ही एसडीएम पदस्थ हुए। साल 2003 के विधानसभा चुनाव में हाथ मारने के लिए टेकाम ने वीआरएस की अर्जी भेज दी। दिग्विजय सिंह ने टेकाम का पत्ता काटने के लिए छत्तीसगढ़ कैडर का अफसर होने की वजह गिनाते जोगी सरकार को इस्तीफा मंजूर करने फाईल भेज दी। टेकाम की अर्जी स्वीकार नहीं हुई। अब वह अगले विस चुनाव में फिर से वीआरएस लेकर कूदने तैयार हैं। इस बार उनकी अर्जी पर सरकार की मुहर लगना लगभग तय है।