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मणिपुर हिंसा से पैदा हुई पड़ोसी मिजोरम में गंभीर दिक्कत
07-Jun-2023 1:52 PM
मणिपुर हिंसा से पैदा हुई पड़ोसी मिजोरम में गंभीर दिक्कत

पूर्वोत्तर का सबसे शांत कहा जाने वाला मिजोरम इस समय शरणार्थियों के बोझ से दबा है. मणिपुर में जातीय हिंसा के बाद वहां से भाग कर आने वाले 8,000 से ज्यादा कुकी और नागा शरणार्थियों ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.

    डॉयचे वैले परप्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-

पड़ोसी म्यांमार और बांग्लादेश के हजारों शरणार्थी पहले से ही राज्य के विभिन्न राहत शिविरों में रह रहे हैं. शरणार्थियों के लगातार गहराते संकट से निपटने के लिए मिजोरम सरकार ने गृह मंत्री ललचामलियाना के नेतृत्व में एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया है. इससे पहले सरकार ने मणिपुर से आने वाले शरणार्थियों के लिए केंद्र से पांच करोड़ रुपए की फौरी राहत मांगी थी.

मिजोरम की 95 किलोमीटर लंबी सीमा मणिपुर से सटी है. यहां मणिपुर से आए तीन शरणार्थियों की मौत हो चुकी है, जिनमें एक बच्चा भी शामिल है. मणिपुर के कुकी और नागा शरणार्थियों ने मिजोरम के अलावा नागालैंड और असम में भी शरण ली है. असम में रह रहे ज्यादातर विस्थापित मैतेयी समुदाय के हैं, जबकि बाकी दोनों राज्यों में कुकी और नागा समुदाय के.

पड़ोसी राज्यों की सरकारों ने हिंसा और आगजनी की घटनाओं के बाद मानवता के आधार पर इनको शरण दी है. लेकिन पहले से ही म्यांमार और बांग्लादेश के शरणार्थियों का बोझ उठा रहे मिजोरम में मणिपुर से आने वाले लोगों ने शरणार्थी संकट को गंभीर बना दिया है.

म्यांमार के शरणार्थी

म्यांमार में फरवरी 2021 में सैन्य तख्तापलट हुआ था. इसके बाद मिजोरम में सीमा पार से आने वाले शरणार्थियों की लगातार बढ़ती तादाद ने इलाके में चिंता बढ़ा दी है. अनुमान है कि राज्य के विभिन्न जिलों के शरणार्थी शिविरों में 40 हजार से ज्यादा ऐसे लोग रह रहे हैं. शरणार्थियों की बढ़ती संख्या ने केंद्र और राज्य सरकार के रिश्तों में भी तनाव पैदा कर दिया है. राज्य सरकार ने केंद्र से इन शरणार्थियों के रहने-खाने के लिए वित्तीय सहायता मुहैया कराने की मांग की है. लेकिन इस मद में केंद्र ने अब तक एक पैसा भी मुहैया नहीं कराया है.

म्यांमार के चिन राज्य के साथ मिजोरम की 510 किलोमीटर लंबी सीमा सटी है. राज्य में शरण लेने वाले म्यांमार के ज्यादातर नागरिक चिन इलाके से हैं. मिजोरम के मिजो समुदाय और चिन समुदाय की संस्कृति लगभग समान है. मुख्यमंत्री जोरमथांगा की दलील है, "मिजोरम की सीमा से लगने वाले म्यांमार में चिन समुदाय के लोग रहते हैं, जो जातीय रूप से हमारे मिजो भाई हैं. भारत के आजाद होने से पहले से उनसे हमारा संपर्क रहा है. इसलिए मिजोरम उस समय मानवीय आधार पर उनकी समस्याओं से निगाहें नहीं फेर सकता.”

दोनों देशों के बीच फ्री मूवमेंट रीजिम (एफएमआर) व्यवस्था है. इसके तहत स्थानीय लोगों को एक-दूसरे की सीमा में 16 किलोमीटर तक जाने और 14 दिनों तक रहने की अनुमति मिली हुई है. इस वजह से दोनों तरफ के लोग कामकाज, व्यापार और रिश्तेदारों से मिलने के लिए सीमा पार आवाजाही करते रहते हैं. सीमा के आर-पार शादियां भी होती हैं. मार्च 2020 में कोरोना संक्रमण के कारण इस व्यवस्था को रोक दिया गया था.

केंद्र या किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन ने म्यांमार से आने वाले लोगों को शरणार्थी का दर्जा नहीं दिया है. इसी वजह से जिला प्रशासन आधिकारिक तौर पर उनको सहायता मुहैया नहीं करा सकता. फिलहाल यंग मिजो एसोसिएशन समेत कई गैर-सरकारी संगठन इन शरणार्थियों के रहने-खाने का इंतजाम कर रहे हैं. मुख्यमंत्री जोरमथांगा कहते हैं, "हम इस मानवीय संकट के प्रति उदासीनता नहीं बरत सकते. केंद्र को कम-से-कम मणिपुरी शरणार्थियों के रहने-खाने के मामले में आर्थिक मदद करनी चाहिए.”

[शरणार्थियों के लगातार गहराते संकट से निपटने के लिए मिजोरम सरकार ने गृह मंत्री ललचामलियाना के नेतृत्व में एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया है.] बांग्लादेशी शरणार्थी

म्यांमार की तरह ही बांग्लादेश के करीब 800 शरणार्थी भी राज्य के विभिन्न राहत शिविरों में रह रहे हैं. उनमें बम और टंगटंगिया जनजाति के कुछ लोग भी हैं. बम जनजाति के लोग ईसाई हैं. मिजोरम के ग्रामीण विकास मंत्री लालरूआतकिमा ने कुछ दिन पहले ही लॉन्गतलाई इलाके का दौरा किया था, जहां बने शिविर में ज्यादातर बांग्लादेशी नागरिकों ने शरण ली है.

लालरूआतकिमा बताते हैं, "बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थी मिजो लोगों के व्यापक परिवार के ही सदस्य हैं. हमारे पूर्वजों में से कुछ लोग बंदरबन और म्यांमार में रहते थे, तो कुछ यहां मिजोरम में. अभी भी हमारे कई रिश्तेदार बंदरबन और म्यांमार में रहते हैं. इसलिए ये लोग हमारे परिवार के ही सदस्य हैं. उसी लिहाज से हम इन लोगों की देखरेख की जिम्मेदारी उठा रहे हैं."

मणिपुर हिंसा से बेपटरी हुई जिंदगी

पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर बीते कई दिनों से हिंसा की चपेट में है. हिंसा के बाद वहां स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं है. कई लोग प्रदेश से भागकर पड़ोसी राज्यों में शरण लेने को मजबूर हैं. जानिए, वहां के हालात.

हिंसा की कहानी

मणिपुर हाईकोर्ट के एक फैसले के कारण राज्य में हिंसा भड़क गई थी. दरअसल मैतेयी संगठनों ने अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग की थी. हाईकोर्ट में मैतेयी संगठनों ने एक याचिका दायर की थी. उस पर सुनवाई के दौरान अदालत ने 19 अप्रैल को राज्य सरकार से इस मांग पर विचार करने और चार महीने के भीतर केंद्र को अपनी सिफारिश भेजने का निर्देश दिया था.

[मणिपुर हाईकोर्ट के एक फैसले के कारण राज्य में हिंसा भड़क गई थी. दरअसल मैतेयी संगठनों ने अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग की थी. हाईकोर्ट में मैतेयी संगठनों ने एक याचिका दायर की थी. उस पर सुनवाई के दौरान अदालत ने 19 अप्रैल को राज्य सरकार से इस मांग पर विचार करने और चार महीने के भीतर केंद्र को अपनी सिफारिश भेजने का निर्देश दिया था.] [मणिपुर हाईकोर्ट के एक फैसले के कारण राज्य में हिंसा भड़क गई थी. दरअसल मैतेयी संगठनों ने अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग की थी. हाईकोर्ट में मैतेयी संगठनों ने एक याचिका दायर की थी. उस पर सुनवाई के दौरान अदालत ने 19 अप्रैल को राज्य सरकार से इस मांग पर विचार करने और चार महीने के भीतर केंद्र को अपनी सिफारिश भेजने का निर्देश दिया था.]

जमीन, नौकरी और संसाधन का झगड़ा

गैर-आदिवासी मैतेयी समुदाय लंबे अरसे से अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रहा है. मैतेयी समुदाय की दलील है कि अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने के बाद वे लोग राज्य के पर्वतीय इलाकों में जमीन खरीद सकेंगे. आदिवासी संगठनों को चिंता है कि अगर मैतेयी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल गया तो सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों से आदिवासियों को वंचित होना पड़ेगा.

[गैर-आदिवासी मैतेयी समुदाय लंबे अरसे से अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रहा है. मैतेयी समुदाय की दलील है कि अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने के बाद वे लोग राज्य के पर्वतीय इलाकों में जमीन खरीद सकेंगे. आदिवासी संगठनों को चिंता है कि अगर मैतेयी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल गया तो सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों से आदिवासियों को वंचित होना पड़ेगा.] [गैर-आदिवासी मैतेयी समुदाय लंबे अरसे से अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रहा है. मैतेयी समुदाय की दलील है कि अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने के बाद वे लोग राज्य के पर्वतीय इलाकों में जमीन खरीद सकेंगे. आदिवासी संगठनों को चिंता है कि अगर मैतेयी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल गया तो सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों से आदिवासियों को वंचित होना पड़ेगा.]

हिंसा के बाद सेना की तैनाती

राज्य में हिंसा के फौरन बाद वहां सेना की तैनाती कर दी गई थी और तनावपूर्ण स्थिति के मद्देनजर देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए गए थे. हिंसा से निपटने के लिए सेना और असम राइफल्स के 10 हजार सैनिकों को तैनात किया गया है. हिंसाग्रस्त इलाकों में शांति बहाली के लिए सेना फ्लैग मार्च कर रही है.

[राज्य में हिंसा के फौरन बाद वहां सेना की तैनाती कर दी गई थी और तनावपूर्ण स्थिति के मद्देनजर देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए गए थे. हिंसा से निपटने के लिए सेना और असम राइफल्स के 10 हजार सैनिकों को तैनात किया गया है. हिंसाग्रस्त इलाकों में शांति बहाली के लिए सेना फ्लैग मार्च कर रही है.] [राज्य में हिंसा के फौरन बाद वहां सेना की तैनाती कर दी गई थी और तनावपूर्ण स्थिति के मद्देनजर देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए गए थे. हिंसा से निपटने के लिए सेना और असम राइफल्स के 10 हजार सैनिकों को तैनात किया गया है. हिंसाग्रस्त इलाकों में शांति बहाली के लिए सेना फ्लैग मार्च कर रही है.]

हिंसा में कई मरे

स्थानीय मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि हिंसा में कम से कम 60 लोगों की मौत हो गई. हालांकि सेना ने कहा है कि 7 मई को हिंसा की कोई बड़ी घटना नहीं हुई. राज्य में कर्फ्यू में भी ढील दी गई है. सबसे ज्यादा हिंसा प्रभावित चूड़ाचांदपुर में भी हालात सामान्य बताए जा रहे हैं.

[स्थानीय मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि हिंसा में कम से कम 60 लोगों की मौत हो गई. हालांकि सेना ने कहा है कि 7 मई को हिंसा की कोई बड़ी घटना नहीं हुई. राज्य में कर्फ्यू में भी ढील दी गई है. सबसे ज्यादा हिंसा प्रभावित चूड़ाचांदपुर में भी हालात सामान्य बताए जा रहे हैं.] [स्थानीय मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि हिंसा में कम से कम 60 लोगों की मौत हो गई. हालांकि सेना ने कहा है कि 7 मई को हिंसा की कोई बड़ी घटना नहीं हुई. राज्य में कर्फ्यू में भी ढील दी गई है. सबसे ज्यादा हिंसा प्रभावित चूड़ाचांदपुर में भी हालात सामान्य बताए जा रहे हैं.]

जला दिए गए आशियाने

बीते दिनों हुई हिंसा में कई मकान, दुकान और गाड़ियां आग के हवाले कर दी गईं. और लोगों को अपनी जान बचाने के लिए सुरक्षित ठिकानों पर शरण लेनी पड़ी.

[बीते दिनों हुई हिंसा में कई मकान, दुकान और गाड़ियां आग के हवाले कर दी गईं. और लोगों को अपनी जान बचाने के लिए सुरक्षित ठिकानों पर शरण लेनी पड़ी.] [बीते दिनों हुई हिंसा में कई मकान, दुकान और गाड़ियां आग के हवाले कर दी गईं. और लोगों को अपनी जान बचाने के लिए सुरक्षित ठिकानों पर शरण लेनी पड़ी.]

बन गए शरणार्थी

हिंसा के बाद सेना ने कई हजार लोगों को कैंपों तक सुरक्षित पहुंचाने का काम किया और उनके रहने का इंतजाम किया. करीब 23 हजार लोगों को सेना ने अपने कैंपों में रखा है.

[हिंसा के बाद सेना ने कई हजार लोगों को कैंपों तक सुरक्षित पहुंचाने का काम किया और उनके रहने का इंतजाम किया. करीब 23 हजार लोगों को सेना ने अपने कैंपों में रखा है.] 

मणिपुर छोड़ कर जाते लोग

हिंसा के बाद से ही कई लोग राज्य छोड़कर चले गए हैं. इनमें ऐसे लोग शामिल हैं जो पढ़ाई के लिए मणिपुर में थे. असम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, मिजोरम आदि के राज्यों ने अपने छात्रों को निकालने का इंतजाम किया है. दिल्ली, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश सरकार ने भी अपने छात्रों को वहां से निकालने का फैसला किया है.

[हिंसा के बाद से ही कई लोग राज्य छोड़कर चले गए हैं. इनमें ऐसे लोग शामिल हैं जो पढ़ाई के लिए मणिपुर में थे. असम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, मिजोरम आदि के राज्यों ने अपने छात्रों को निकालने का इंतजाम किया है. दिल्ली, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश सरकार ने भी अपने छात्रों को वहां से निकालने का फैसला किया है.] [हिंसा के बाद से ही कई लोग राज्य छोड़कर चले गए हैं. इनमें ऐसे लोग शामिल हैं जो पढ़ाई के लिए मणिपुर में थे. असम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, मिजोरम आदि के राज्यों ने अपने छात्रों को निकालने का इंतजाम किया है. दिल्ली, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश सरकार ने भी अपने छात्रों को वहां से निकालने का फैसला किया है.]

खाने के लिए कतार में लोग

सेना के कैंपों में कई परिवार रह रहे हैं और वे अपने घर से बहुत दूर हैं. ऐसे में सेना ने उनके रहने और भोजन का इंतजाम किया है. कई लोग अब इन्हीं कैंपों में फिलहाल रहने को मजबूर हैं.

[सेना के कैंपों में कई परिवार रह रहे हैं और वे अपने घर से बहुत दूर हैं. ऐसे में सेना ने उनके रहने और भोजन का इंतजाम किया है. कई लोग अब इन्हीं कैंपों में फिलहाल रहने को मजबूर हैं.] 

मामला सुप्रीम कोर्ट में

मणिपुर की स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. याचिका में मणिपुर में हिंसा की जांच एसआईटी से कराए जाने की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की है.

[मणिपुर की स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. याचिका में मणिपुर में हिंसा की जांच एसआईटी से कराए जाने की मांग की गई है.] [मणिपुर की स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. याचिका में मणिपुर में हिंसा की जांच एसआईटी से कराए जाने की मांग की गई है.]
 

मणिपुरी विस्थापित

मणिपुर में मई 2023 में जातीय हिंसा की शुरुआत के बाद भारी तादाद में लोगों का पलायन शुरू हो गया था. इनमें बड़ी संख्या कुकी और नागा समुदाय की है. मिजोरम से लगे सीमावर्ती इलाकों में दोनों राज्यों में इसी जनजाति के लोग रहते हैं. इसी वजह से इन लोगों ने भागकर मिजोरम में शरण ली है.

राज्य में बड़े पैमाने पर जातीय हिंसा और आगजनी शुरू होते ही नागालैंड और मिजोरम जैसे पड़ोसी राज्यों ने विशेष टीमें गठित की थीं, ताकि राज्य में फंसे लोगों को सुरक्षित निकाला जा सके. सेना और असम राइफल्स की सहायता से मणिपुर में रहने वाले लोगों को सुरक्षित निकाल कर राहत शिविरों में शरण दी गई.

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