ताजा खबर

छत्तीसगढ़ भाजपा में बदलाव जल्द
रथयात्रा से पहले प्रदेश भाजपा में बड़े बदलाव के संकेत हैं। चर्चा है कि पार्टी प्रदेश चुनाव अभियान समिति, कोर ग्रुप और चुनाव समिति व घोषणा पत्र समिति का ऐलान कर सकती है। बताते हैं कि छत्तीसगढ़ समेत जिन पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, वहां की चुनाव प्रचार की रणनीति पर केंद्रीय नेतृत्व मंथन कर रहा है। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की प्रदेश प्रभारी ओम माथुर से चर्चा भी हुई है।
कहा जा रहा है कि संगठन को धार देने के लिए कुछ प्रमुख नेताओं को जिम्मेदारी दी जा सकती है। चुनाव अभियान समिति के मुखिया के पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, बृजमोहन अग्रवाल, और रामविचार नेताम का नाम प्रमुखता से उभरा है। कोर ग्रुप में भी बदलाव कर दो-तीन नए चेहरों को जगह दी जा सकती है। चुनाव समिति में भी बदलाव होगा। ये सब आठ-दिन के भीतर होने के संकेत हंै। फिलहाल पार्टी नेताओं की नजरें केन्द्रीय नेतृत्व पर टिकी हुई है।
आयोग की नजर काले धन पर
विधानसभा चुनाव की तैयारी देखने आई चुनाव आयोग की टीम कुछ जिलों के काम से नाखुश नजर आए। अलबत्ता, दो महिला कलेक्टर कांकेर की डॉ. प्रियंका शुक्ला, और बिलाईगढ़-सारंगढ़ की फरिहा आलम सिद्दीकी के प्रेजेंटेशन को सराहा गया।
सुनते हैं कि रायपुर, बिलासपुर, और बेमेतरा कलेक्टर तो लडखड़़ा गए थे, उन्हें जवाब देने में थोड़ी दिक्कत आ रही थी। सबसे पहले रायपुर कलेक्टर को प्रेजेंटेशन देना था, और स्वाभाविक है कि जिन्हें सबसे पहले काम दिखाना होता है, उन पर दबाव भी होता है।
आयोग की टीम ने ईडी, आईटी, और एनसीबी के अफसरों के साथ भी अलग से बैठक की। चर्चा है कि बैठक में चुनाव में कालेधन को रोकने के लिए हर संभव कदम उठाने पर जोर दिया गया। संकेत साफ है कि पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार चुनाव में सख्ती ज्यादा रहेगी।
उजड़ता जा रहा हाथियों का ठिकाना
हाथियों की आवाजाही पर एक दूसरे को अपडेट रखने के लिए वन विभाग, वन प्रबंधन समिति और ग्राम प्रमुखों के बीच व्हाट्सएप ग्रुप बनाए गए हैं। रायगढ़ जिले के धर्मजयगढ़ वन मंडल में एक दूसरे से लोगों ने जानकारी साझा की तो पता चला कि कोरबा से हाथियों के दो दल यहां पर पहुंचे हैं। एक दल में 44 तो दूसरे में 22 हाथी हैं। इस वन मंडल में पहले से ही अलग-अलग झुंड में हाथियों के कई दल विचरण कर रहे हैं। कल तक की स्थिति यह थी कि धर्मजयगढ़ बीट में 64, छाल बीट में 72 तथा कापू बीट में 15 हाथियों का दल ठहरा हुआ है।
ग्रामीण बता रहे हैं कि हाथियों का एक साथ इतना जमावड़ा उन्होंने पहले कभी नहीं देखा। वे दहशत में हैं। अपनी जान, फसल और झोपड़ी को बचाने के लिए रतजगा कर रहे हैं। स्थिति यह बन गई है कि ड्रोन से हाथियों की निगरानी करनी पड़ रही है। तेंदूपत्ता तोडऩे का सीजन है, जो उनकी साल भर की एकमुश्त कमाई होती है। डर के कारण वे पत्ता तोडऩे के लिए जंगल के भीतर नहीं जा रहे हैं।
यह गनीमत है कि अभी तक कोई बड़ी जनहानि इन हाथियों ने पहुंचाई नहीं है। मगर स्थिति बहुत गंभीर होती जा रही है। इस मामले में अधिकतर हाथी कोरबा की ओर से पहुंचे हैं। कोरबा वही जिसके लेमरू को एलिफेंट कॉरिडोर के लिए चुना गया है, जिसके हसदेव में भरपूर पानी है और घना जंगल है। पर यही वह जगह भी है जहां अंधाधुंध कोयला खदानों को मंजूरी दी गई है और आगे इनकी संख्या और बढ़ सकती है। गेवरा खदान का भी एसईसीएल विस्तार करने जा रहा है। यदि चौतरफा जंगल कटे, खदान खुले तो धर्मजयगढ़ जैसे किसी एक इलाके में सिमटकर हाथी कैसे रह पाएंगे और यहां के गांवों- शहरों में रहने वाले लोगों का क्या होगा?
खूशबू मिल जाती है, पेड़ नहीं मिलते
जिन वनस्पतियों का अस्तित्व खतरे में है उन्हें केवड़ा भी है। गर्मी के दिनों में पहले केवड़ा अपने आप उगे दिख जाते थे। इसे तोडऩा कुछ कठिन काम है। जगह-जगह कांटे चुभ सकते हैं, खून भी आ सकते हैं। पर उसकी खुशबू सब भुला देती है। इसे केतकी नाम से भी जाना जाता है। बहुत पुरानी फिल्म बसंत बहार में एक गीत पं. भीमसेन जोशी व मन्ना डे ने गाया था- केतकी, गुलाब, जूही चंपक बन फूले..।
केवड़े का इत्र सदियों से मशहूर है। किसी भी शरबत के साथ इसकी खुशबू मिल जाए तो हर मौसम में लोग तृप्त हो जाते हैं। फिर गर्मी की बात ही अलग है। पौराणिक कथाओं में इसे ब्रह्मा जी का एक सिर बताया गया है।
छत्तीसगढ़ में केवड़े की खेती के लिए अनुकूल जलवायु है। अब बहुत कम बाड़ी बगीचों में ये दिखाई देते हैं। बाजारों में इत्र और शरबत केवड़े के नाम से मिल रहे हैं, पर ज्यादातर में कृत्रिम सुगंध होती है।
यह तस्वीर प्रकृति प्रेमी प्राण चड्ढा ने बिलासपुर से खींच कर सोशल मीडिया पर डाली है।
बंदा दीपक किंगरानी
ओटीटी प्लेटफार्म पर आई एक फिल्म ‘सिर्फ एक ही बंदा काफी है’ इन दिनों चर्चा में है। मनोज बाजपेयी ने वकील बंदे की भूमिका की है, जो तमाम अवरोधों, धमकियों, गवाहों और मददगारों की हत्या होने के बावजूद एक संत से बलात्कार का शिकार हुई नाबालिग के साथ खड़ा रहता है। तमाम प्रलोभनों के बावजूद वह डिगा नहीं और बलात्कारी संत को सजा दिला कर ही दम लेता है। फिल्म के निर्माता ने शुरू में साफ किया है कि यह कोई सच्ची घटना नहीं है, पर फिल्म देखकर हर एक दर्शक समझ जाते हैं कि यह किस पर आधारित है।
फिल्म से जुड़ी एक और खास बात यह है इसकी कहानी और पटकथा भाटापारा के एक दीपक किंगरानी ने लिखी है। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर इस फिल्म के हिट होने के बाद वे बॉलीवुड में चर्चा में आ गए हैं और उन्हें अब कई नए काम भी मिल रहे हैं। ([email protected])