संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बलात्कारियों के बचाव का नतीजा, देश का झंडा हटा
25-Aug-2023 4:19 PM
दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  बलात्कारियों के बचाव का नतीजा, देश का झंडा हटा

फोटो : सोशल मीडिया

हिन्दुस्तानी खेलों की दुनिया के लिए एक बुरी खबर है कि कुश्ती की वर्ल्ड चैंपियनशिप में भारतीय पहलवान भारतीय झंडे के साथ नहीं खेल सकेंगे। भारत में कुश्ती महासंघ के चुनाव न होने की वजह से इस खेल की दुनिया की सर्वोच्च संस्था यूनाईटेड वर्ल्ड रेसलिंग ने भारतीय कुश्ती महासंघ की सदस्यता निलंबित कर दी है। इसके चुनाव लगातार स्थगित होते चले गए, और 7 मई को चुनाव होने थे लेकिन खेल मंत्रालय ने उसे रोक दिया था। 

ऐसा भी नहीं है कि यह बात आसमानी बिजली की तरह आकर गिरी है। अंतरराष्ट्रीय संगठन बार-बार इसके लिए नोटिस देते चल रहा था, और जिस तरह भारतीय कुश्ती महासंघ का अध्यक्ष, भाजपा सांसद, बृजभूषण शरण सिंह महिला खिलाडिय़ों के यौन शोषण के कई मामलों में अदालती कटघरे में हैं, उसे लेकर भी कुश्ती की दुनिया में बेचैनी चल रही थी। यह एक अलग बात है कि पूरी की पूरी केन्द्र सरकार इस भाजपा सांसद को बचाने पर आमादा दिख रही थी, और पहलवान लड़कियां सडक़ों पर पुलिस के हाथ पिट रही थीं। पूरा देश धिक्कार रहा था लेकिन केन्द्र सरकार इस सांसद को बचाने पर अड़ी हुई थी, और सारे संबंधित मंत्रालय, विभाग, और खेल संगठन इतनी सारी खिलाड़ी लड़कियों के आंसुओं को अनदेखा करते हुए इस बाहुबली खेल पदाधिकारी की क्रूर हॅंसी को बढ़ावा दे रहे थे। 

जिन लोगों को देश के गौरव का गुणगान करते हुए हर अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर भारत की शान का झंडा फहराना रहता है, उन्होंने भी अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों से ओलंपिक से मैडल लेकर आने वाली अपनी लड़कियों की यौन शोषण की शिकायतों को कुचलने के अलावा कुछ नहीं किया। आज हालत यह है कि इस खेल से देश का झंडा छिन गया है, बृजभूषण शरण सिंह की गाड़ी पर तिरंगा जरूर लहरा रहा है। देश भर से न सिर्फ राजनीतिक दलों ने, न सिर्फ महिला संगठनों ने, न सिर्फ खेल संगठनों ने, बल्कि बड़े-बड़े नामी-गिरामी लोगों ने खुलकर इस बात पर केन्द्र सरकार को लानत भेजी थी, लेकिन केन्द्र पर सत्तारूढ़ भाजपा ने आज तक इस पसंदीदा बाहुबली को एक नोटिस भी नहीं भेजा है। ऐसे में लगता है कि कोई भी खिलाड़ी, कोई भी लडक़ी या महिला इस देश में तभी तक महफूज हैं जब तक उन पर किसी सत्तारूढ़ की नीयत नहीं डोलती, वरना उसके बाद इस देश में कोई ताकत उन्हें नहीं बचा सकती। उत्तरप्रदेश के एक और भाजपा नेता, उन्नाव के भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर का मामला भी सामने है जिसके खिलाफ 2017 में एक नाबालिग से बलात्कार करने का मामला चल रहा था, जिस पर उसे बाद में उम्रकैद हुई, लेकिन वह इस जुर्म के महीनों बाद तक हॅंसता-मुस्कुराता घूमते रहा, और बलात्कार की शिकार लडक़ी के पिता को भी पुलिस हिरासत में मार डाला गया था। इसे भी सेंगर के कहे हुए ही गिरफ्तार किया गया था, और उत्तरप्रदेश में भाजपा सरकार के मातहत इस बलात्कारी भाजपा विधायक की ताकत ऐसी थी कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को उत्तरप्रदेश की जिला अदालत से दिल्ली ट्रांसफर किया था। 

सत्ता के पसंदीदा बलात्कारियों का हिन्दुस्तान में जो सम्मान है उसे देखते हुए इस देश के लोगों से किसी भी देवी की पूजा का अधिकार छिन लेना चाहिए। अभी सुप्रीम कोर्ट में यह मामला चल ही रहा है जिसमें गुजरात की बिलकिस बानो के बलात्कारियों और उसके परिवार के हत्यारों को गुजरात सरकार द्वारा समय से पहले जेल से रियायती रिहाई दी गई है। और कल तो सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई में एक नई जानकारी आई कि छूटे हुए बलात्कारी-हत्यारों में से एक ने वकालत का अपना पेशा फिर शुरू कर दिया है। अदालत ने इस पर पूछा है कि क्या मुजरिम ठहराए जाने के बाद किसी सजायाफ्ता को क्या फिर से वकालत करने का लाइसेंस दिया जा सकता है। अदालत ने कहा कि कानून को एक महान पेशा माना जाता है, और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को यह बताना चाहिए कि क्या कोई मुजरिम वकालत कर सकता है? लोगों को याद होगा कि बिलकिस बानो को गुजरात दंगों के दौरान उस वक्त 11 हिन्दुओं ने गैंगरेप का शिकार बनाया, जब वह गर्भवती थी, इन लोगों ने उसकी छोटी सी बच्ची को पटक-पटककर मार डाला था, बिलकिस बानो की मां को मार डाला था, और परिवार के आधा दर्जन लोगों सहित कुल 14 लोगों की हत्या की थी। इन्हें गुजरात सरकार ने केन्द्र की मोदी सरकार की सहमति से समय से पहले जेल से रिहा किया, और उसके लिए यह झूठा तर्क दिया गया कि इनका आचरण अच्छा है इसलिए इन्हें समय-पूर्व रिहाई दी गई, जबकि इनमें से कुछ लोगों के खिलाफ पैरोल पर बाहर आने पर लोगों को धमकाने की शिकायतें पहले से थीं। अब बिलकिस बानो सुप्रीम कोर्ट में खड़ी है, और अदालत ने गुजरात सरकार से पूछा है कि ऐसी रियायत और कितने मुजरिमों को दी गई है, किन्हें दी गई है। 

केन्द्र हो या कोई राज्य, सरकारों का यह रवैया मुजरिमों सरीखा है कि देश के लिए ओलंपिक से मैडल लेकर आने वाली खिलाडिय़ों की यौन शोषण की शिकायतों को अनदेखा करके अपने बाहुबली सांसद को सिर पर बिठाकर रखना। यह सिलसिला खत्म होना चाहिए, यह तो सुप्रीम कोर्ट का दखल था कि दिल्ली पुलिस को मजबूरी में मन मारकर बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ जुर्म दर्ज करना पड़ा, यह एक और बात है कि पुलिस ने इस सांसद की गिरफ्तारी तक नहीं की जबकि उसके खिलाफ आधा दर्जन लड़कियों की रिपोर्ट थी। इस देश की संसद में, और संसद के बाहर सत्तारूढ़ महिला सांसदों का मुंह भी न खिलाडिय़ों के यौन शोषण पर खुला, न मणिपुर में वीभत्स सामूहिक बलात्कार और हत्या पर खुला। यह गजब का पार्टी अनुशासन है कि लोग अपनी इंसानियत भी छोडक़र चुप्पी साधे रखें। इस देश की महिलाओं को मुजरिमों की पार्टी की महिला उम्मीदवारों को घेरकर यह सवाल करना चाहिए कि ये मामले उनकी नजरों के सामने होते रहे, और उन्होंने आंख-कान बंद रखना बेहतर समझा था, तो उन्हें अब वोट क्यों दिया जाए? उनके चुनाव क्षेत्र की किसी महिला से उनकी पार्टी का कोई नेता बलात्कार करेगा, तो उसके खिलाफ भी ये महिला सांसद या विधायक कुछ नहीं करेंगी। जब तक आम लोगों की भीड़ घेरकर ऐसे सवाल नहीं करेगी, तब तक सत्ता पर काबिज लोगों के ऐसे बलात्कार जारी ही रहेंगे। जब तक ऐसे नेताओं, उनकी पार्टियों, और उनके समर्थकों को चुनावों में हराया नहीं जाएगा, तब तक कोई लडक़ी या महिला सुरक्षित नहीं रहेगी। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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