संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मुस्लिम बच्चे से स्कूल में यह सुलूक धार्मिक आतंकी हिंसा के अलावा कुछ नहीं
26-Aug-2023 5:31 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  मुस्लिम बच्चे से स्कूल में  यह सुलूक धार्मिक आतंकी  हिंसा के अलावा कुछ नहीं

फोटो : सोशल मीडिया

उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले की एक निजी स्कूल का वीडियो इस देश के लिए शर्म से डूब मरने का पर्याप्त सामान हैं। इस लोकतंत्र में साम्प्रदायिक हिंसा का जो नया पैमाना तय हुआ है, वह देखने लायक है। जहां तक देश-प्रदेश की सरकारों का सवाल है, तो यह एक नया नवसामान्य है कि अल्पसंख्यकों को किस हद तक मारा जा सकता है, किस हद तक उनका मनोबल तोड़ा जा सकता है। इस वीडियो में स्कूल चलाने वाली उसकी मालकिन, एक हिन्दू टीचर एक मुस्लिम बच्चे की पिटाई करवाती है, क्लास में मौजूद बाकी तमाम हिन्दू बच्चों से। साथ-साथ वह मुस्लिम समाज के लिए आपत्तिजनक और अपमानजनक बातें कहती जाती हैं, और वीडियो से आती आवाज से यह भी समझ आता है कि वहां पर कोई एक पुरूष भी मौजूद है। यह शिक्षिका मुस्लिम बच्चे को खड़ा रखती है, और हिन्दू बच्चों को बुला-बुलाकर उनसे इसे पिटवाती हैं। मुस्लिमों के लिए उसकी नफरत इस हरकत से और परे उसकी जुबान से भी जहर की तरह बरसती रहती है। उत्तरप्रदेश की इस स्कूल के बारे में जिले के अफसर बतलाते हैं कि बच्चे का पिता शिकायत करेगा उसके बाद ही एफआईआर दर्ज हो सकेगी। बाद में अभी दोपहर के करीब खबर आ रही है कि पुलिस ने इस मामले में एफआईआर दर्ज की है। दूसरी तरफ बच्चे का मुसलमान पिता कहता है कि न तो वो बच्चे को उस स्कूल भेजना चाहता, और न ही टीचर के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाना चाहता, वह कहीं शिकायत नहीं करेगा। जाहिर है कि योगी आदित्यनाथ के उत्तरप्रदेश में किसी मुसलमान की इतनी हिम्मत हो भी नहीं सकती कि वह एक हिन्दू के खिलाफ मुस्लिम बच्चे को प्रताडि़त करने की रिपोर्ट दर्ज करा सके, क्योंकि उसके बाद उसका जो हाल होगा, वह उसने कई दूसरे लोगों के मामलों में देखा-सुना होगा। 

अब सवाल यह उठता है कि सुप्रीम कोर्ट जिस हेट-स्पीच पर अफसरों को मुकदमा दर्ज करने के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहरा रहा है, वह जिम्मेदारी इस मामले में कहां गई है? यह न सिर्फ साम्प्रदायिक नफरत फैलाने की बात है, बल्कि एक बच्चे के खिलाफ टीचर और दर्जनों बच्चों का आतंक भी है, और यह साफ-साफ एक साम्प्रदायिक आतंकी घटना है। साम्प्रदायिक आतंकी हिंसा के लिए बंदूकें और फौजी वर्दियां नहीं लगतीं, क्लास के तमाम बच्चों के बीच साम्प्रदायिक नफरत फैलाकर, अपनी निगरानी में अपने हुक्म से बच्चों से हिंसा करवाना, किसी एक बच्चे को अकेला करके उसे धार्मिक आधार पर पिटवाना, यह साम्प्रदायिक आतंकी हिंसा के अलावा और कुछ नहीं है। तृप्ता त्यागी नाम की यह टीचर बच्चों को फटकारती है कि वे पर्याप्त जोर से नहीं मार रहे हैं, और अधिक जोर से मारें। अकेला खड़ा मुस्लिम बच्चा मार खा-खाकर रो रहा है। इस टीचर पर इसके तहत लगने वाले तमाम कानून तो इस्तेमाल होने ही चाहिए, इनके अलावा क्लास के दर्जनों बच्चों को नफरत सिखाना, उनसे हिंसा करवाना, इसके भी अलग-अलग मामले उस पर चलने चाहिए, और हमारा ख्याल है कि एक-एक बच्चे को साम्प्रदायिक हिंसा में उतारने के जुर्म में उसे अलग-अलग सजा होनी चाहिए जो कुल मिलाकर उसकी पूरी जिंदगी जेल में खत्म करे। जिसे नफरत की हिंसा को इस हद तक फैलाना है, उसे समाज में खुला छोडऩा ठीक नहीं है। 

अब बात जरा उन लोगों की की जाए जिन्होंने संविधान के तहत शपथ ली है, और जिन पर देश में लोकतंत्र, इंसाफ, और नागरिक समानता को जिम्मेदारी है। कल से यह वीडियो सामने है, हमारे हिसाब से सुप्रीम कोर्ट अगर संवेदनशील होता तो कम से कम उत्तरप्रदेश हाईकोर्ट के एक जज को वहां भेजता जो कि इस बात का प्रतीक होता कि सरकार, और उसकी पिट्ठू पुलिस इंसाफ के अकेले ठेकेदार नहीं हैं, और अगर वे मुजरिमों के गिरोह की तरह काम करते हैं, तो अदालत अभी तक इस मुल्क में जिंदा है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश चाहते, तो अब तक यूपी सरकार से इस बारे में जवाब-तलब कर चुके रहते। अगर यूपी के मुख्यमंत्री, भगवा कपड़ों में रहने वाले अपने को संन्यासी बताने वाले योगी आदित्यनाथ अगर संवैधनिक जिम्मेदारी और इंसानियत निभाते रहते, तो वे अब तक इस पर मुंह खोल चुके रहते, और अपने किसी मंत्री को भेज चुके रहते, लेकिन उस प्रदेश में सरकार की नीतियों यह महिला शिक्षिका शायद माकूल बैठती है, इसलिए किसी जायज कार्रवाई की कोई गुंजाइश नहीं दिखती। अभी दोपहर तक की खबरों के मुताबिक देश की बाल कल्याण परिषद ने इस पर नोटिस जारी किया है, लेकिन उत्तरप्रदेश हाईकोर्ट, उत्तरप्रदेश मानवाधिकार आयोग, उत्तरप्रदेश बाल आयोग या कल्याण परिषद, अल्पसंख्यक आयोग की कोई खबर नहीं है। संसद में एक तथाकथित हवाई चुम्बन के आरोप को लेकर जो केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने संसद सिर पर उठा लिया था, वे भी अपने चुनाव क्षेत्र वाले उत्तरप्रदेश की इस खबर पर ठीक उसी तरह से आंख, कान, और मुंह बंद करके बैठी हैं जिस तरह से वे मणिपुर में महिलाओं से सार्वजनिक सामूहिक बलात्कार की तस्वीरों, वीडियो, और खबरों पर चुप बैठी थीं। संसद की हवा में उछले एक तथाकथित हवाई चुम्बन के आरोप के साथ स्मृति ईरानी का रौद्र रूप सामने आया था, लेकिन एक मुस्लिम बच्चे को पूरी क्लास से इस तरह पिटवाने को लेकर उनका कोई भी रूप अभी सामने नहीं आया है। 

आज राहुल गांधी से इस बारे में उन्होंने लिखा कि भाजपा का फैलाया केरोसीन है। मासूम बच्चों के मन में भेदभाव का जहर घोलना, स्कूल जैसे पवित्र स्थान को नफरत का बाजार बनाना, एक शिक्षक देश के लिए इससे बुरा कुछ नहीं कर सकता। ये भाजपा का फैलाया वही केरोसीन है जिसने भारत के कोने-कोने में आग लगा रखी है। बच्चे भारत का भविष्य हैं, उनको नफरत नहीं, हम सबको मिलकर मोहब्बत सिखानी है। 

जिन लोगों को देश भर में जगह-जगह यह लग रहा है कि मुस्लिमों को सबक सिखाना है, उन्हें देश में मुस्लिम आबादी के आंकड़े देखने चाहिए। यह समुदाय आबादी के 14 फीसदी से कुछ अधिक है, यानी 20 करोड़ के करीब। 140 करोड़ की आबादी में आज अगर 20 करोड़ मुस्लिम हैं, तो उन मुस्लिमों को सडक़ों पर, स्कूलों में, गांव-देहात में पीट-पीटकर खत्म नहीं किया जा सकता। पल भर के लिए मान भी लें कि सुप्रीम कोर्ट भी इनको बचाने में नाकामयाब है, तो भी देश की करीब सौ करोड़ हिन्दू आबादी के दस-बीस फीसदी हिंसक लोग मिलकर भी 20 करोड़ मुस्लिमों को इतिहास नहीं बना सकते। अगर किसी समाज के छोटे-छोटे बच्चे को इस तरह मारा जाएगा, उसके बूढ़ों को पीट-पीटकर उनकी दाढ़ी मूंडकर उनसे जयश्रीराम कहलवाया जाएगा, तो उससे वह आबादी खत्म नहीं होगी, उसके भीतर एक जवाबी नफरत, और जवाबी बगावत खड़ी होगी, जिसका नतीजा इस देश में गृहयुद्ध की शक्ल में हो सकता है। यह सौ करोड़ आबादी के एक छोटे हिस्से, और 20 करोड़ जख्मी आबादी के बीच अगर नफरती और जहरीले टकराव की नौबत आएगी, तो उससे पूरा देश जल जाएगा, और ऐसे जले हुए देश में सरकारों के पसंदीदा कारोबारियों के कारोबार भी जल जाएंगे। जब सब कुछ जलना शुरू होगा तो वह आज कनाडा और अमरीका के जंगलों की आग की तरह रहेगा। सुप्रीम कोर्ट के सौ-सौ बार कहने के बाद देश की किसी सरकार को उसकी कोई फिक्र नहीं है, आज वक्त आ गया है कि सुप्रीम कोर्ट सौ-पचास आईएएस-आईपीएस लोगों को जेल भेजे, तो ही इस देश में नफरत फैलना कुछ धीमा हो सकता है। राजनीतिक दलों में, खासकर कांग्रेस और भाजपा जैसे बड़े राजनीतिक दलों में साम्प्रदायिकता को रोकने की, उसके खिलाफ कार्रवाई करने की कोई राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं रह गई है। खुद राहुल गांधी जो बड़बड़ाते हैं, वह शायद अपनी पार्टी के अधिकतर बड़े और सत्तारूढ़ नेताओं की मर्जी के खिलाफ बोलते हैं। उन्हीं की पार्टी के अधिकतर नेताओं की सोच और उनका चाल-चलन राहुल की धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है, भाजपा के बारे में तो कोई चर्चा करने की। अभी तक सुप्रीम कोर्ट या यूपी हाईकोर्ट की कोई ऐसी पहल खबरों में नहीं दिख रही है कि उनके माथे पर मुजफ्फरनगर की इस साम्प्रदायिक आतंकी हिंसा से कोई शिकन आई हो। इस देश का लोकतंत्र  एक गृहयुद्ध की खतरे की तरह बढ़ रहा है। आज जिन साम्प्रदायिक ताकतों को ऐसी हिंसा में बहुत मजा आ रहा है, वे भी जलते हुए देश में सुरक्षित नहीं रहेंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुनिया के कई देशों में बच्चों के साथ खिलवाड़ करते हुए उनके कान पकड़े, फोटो खिंचाते दिखते हैं, उस बारे में उनके लोगों ने कहा है कि यह बच्चों की एकाग्रता और स्मरणशक्ति बढ़ाने की एक तरकीब है, जिसे दक्षिण के पुराने ग्रंथों में थोप्पुकरणम कहते हैं, इसलिए मोदी ऐसा करते हैं। आज उनका कोई शुभचिंतक उन्हें यह सलाह दे कि यूपी के बच्चे के साथ यह सुलूक देखकर उन्हें अपने कान पकडक़र इसी तरह का थोप्पुकरणम करना चाहिए ताकि उन्हें खुद यह याद रहे कि उन पर देश के तमाम धर्मों के लोगों की जिम्मेदारी है, और लोकतंत्र पर उनकी एकाग्रता बनी रहे।

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सुनील से सुनें : मुस्लिम बड़े-बूढ़ों के बाद अब बच्चे की भी घेरकर पिटाई..

देश में साम्प्रदायिक नफरत और हिंसा को जिस तरह बढ़ावा दिया जा रहा है, उसके चलते उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर के एक स्कूल में वहां की मालकिन-टीचर ने मुस्लिमों के खिलाफ नफरत की बातें करते हुए एक मुस्लिम छात्र को खड़ा करके बारी-बारी से दूसरे छात्रों से पिटवाया। वहीं बैठे एक दूसरे टीचर ने इसका वीडियो बनाया, और इसके सामने आने पर भी यूपी पुलिस साम्प्रदायिकता का जुर्म दर्ज करने से कतरा रही हैं। देश का सुप्रीम कोर्ट हेट-स्पीच के खिलाफ जुबानी जमाखर्च बहुत कर रहा है, लेकिन चारों तरफ फैलाई जा रही नफरत के वीडियो पर भी अब तक अदालत अपनी कोई अवमानना दर्ज नहीं कर रही है। आज देश और प्रदेशों की सरकारों का जो रूख है, वह मुस्लिम समुदाय को जिस हद तक जख्मी कर रहा है, उसके चलते एक दिन ऐसा आ सकता है कि कोई भी सुरक्षित न रह जाए। इस अखबार ‘छत्तीसगढ़’ के संपादक सुनील कुमार की यह न्यूज रिपोर्ट।

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