संपादकीय
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राजस्थान के कोटा में बड़े कॉलेजों में दाखिले की तैयारी करते बच्चों में से इस बरस अब तक रिकॉर्ड संख्या में बच्चे आत्महत्या कर चुके हैं। राजस्थान सरकार पिछले कुछ वक्त से इस खतरे को देखते आ रही थी, और अभी हफ्ते-दस दिन पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कोचिंग सेंटरों को चेतावनी भी दी थी कि वे इतना तनाव खड़ा न करें कि बच्चे थककर जिंदगी दे दें। उन्होंने यह भी कहा था कि कोचिंग सेंटर खुद ही फर्जी किस्म की स्कूलें चलाते हैं जहां बिना पढ़ाई के बच्चों को हाजिरी दे दी जाती है ताकि वे स्कूली इम्तिहान किसी तरह से पास कर लें, और पूरा ध्यान आईआईटी या नीट जैसी दाखिला-इम्तिहान को पास करने में लगाएं। पिछले चौबीस घंटे में कोटा में दो और आत्महत्याएं हो गईं, और साल की शुरुआत से अभी तक ये बीस हो चुकी हैं। देश का कोचिंग अड्डा कहा जाने वाला राजस्थान का कोटा एक भयानक जगह हो गया है जहां पर आत्महत्याएं तो खबरों में आ जाती हैं लेकिन डिप्रेशन के शिकार होने वाले और बच्चों की गिनती किसी पैमाने पर नहीं हो पाती है। मां-बाप अपनी महत्वाकांक्षा के चलते, या बच्चों के कहे हुए भी उन्हें कोटा भेज देते हैं जहां कोचिंग का ऐसा कारखाना चलता है जिसकी शोहरत बच्चों को मेडिकल या इंजीनियरिंग में पहुंचा देने की है, और इसके लिए बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर जितने किस्म के जुल्म ढाने रहते हैं, उनमें से किसी से भी परहेज नहीं किया जाता। राजस्थान के कोटा नाम के कोचिंग-उद्योग का डरावना सच यह है कि पिछले दस बरस में 160 से अधिक बच्चे आत्महत्या कर चुके हैं, पिछले एक साल में 29 बच्चे जो कि 10 बरस के औसत से बहुत ज्यादा है, और पिछले 8 महीने में 22 बच्चे, और पिछले 11 दिनों में 4 बच्चे खुदकुशी कर चुके हैं। इस तरह कोटा कोचिंग सेंटर नहीं, सुसाइड केपिटल बन गया है।
अभी हमने कुछ अरसा पहले ही, तमिलनाडु के एक ऐसे पिता-पुत्र की आत्महत्या पर इसी जगह पर लिखा था जिसमें बेटे को नीट की लिस्ट में जगह नहीं मिल पाई थी, बाप ने एक और कोचिंग सेंटर में उसकी फीस जमा कर दी थी, लेकिन लडक़े ने खुदकुशी कर ली, और उसके अँतिम संस्कार के बाद बाप ने भी खुदकुशी कर ली। हिन्दुस्तान में स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई किनारे धर दी जाती है क्योंकि उसके नंबरों से कहीं दाखिला नहीं मिलता। अब तो इंजीनियरिंग और मेडिकल, कानून और मैनेजमेंट हर बड़े कोर्स के लिए अलग से दाखिला-इम्तिहान होते हैं, और स्कूल-कॉलेज की नियमित पढ़ाई सिर्फ वहां की परीक्षा पास करने के लिए है जिससे आगे कुछ नहीं मिलता। नतीजा यह हुआ है कि पढ़ाई खत्म हो गई है, और दाखिले के मुकाबले की तैयारी ही सब कुछ रह गई है। अभी कोटा में इन दो आत्महत्याओं के तुरंत बाद राजस्थान के कुछ मंत्रियों ने भी कोचिंग के खिलाफ बयान दिए हैं। एक मंत्री ने तो कहा है कि पूरे देश में कोचिंग बैन होनी चाहिए, और प्रधानमंत्री को ऐसी एक नीति लागू करनी चाहिए कि देश में कोई कोचिंग न हों। कुछ दूसरे मंत्रियों ने जोर डाला है कि राज्य सरकार ने जैसा कहा है उसके मुताबिक कोटा में अगले दो महीने कोई टेस्ट नहीं होने चाहिए। मुख्यमंत्री ने कोचिंग सेंटरों से कहा था कि वे 9वीं और 10वीं के बच्चों की भी कोचिंग शुरू कर देते हैं जिसकी वजह से उनके ऊपर अंधाधुंध अतिरिक्त दबाव पड़ता है। उन्हें बोर्ड की परीक्षा भी देनी होती है, और कोचिंग की तैयारी भी। उन्होंने कहा कि कोचिंग में आते ही छात्रों का फर्जी स्कूलों में दाखिला दिया जाता है, और तैयारी ऐसी करवाई जाती है कि मानो आईआईटी कोई ईश्वर हो। राजस्थान प्रशासन ने कोटा में रहने वाले बच्चों के कमरों में लगे हुए छत के पंखों में ऐसे स्प्रिंग लगवाए हैं कि कोई उस पर फांसी लगाने की कोशिश करे तो पंखा ही नीचे आ जाए, वहां ऊंची इमारतों में जहां बच्चे रहते हैं, वहां बाल्कनी में जालियां लगवाई जा रही हैं।
वह देश बहुत मूढ़ और मूर्ख है जो कि किसी दाखिला-इम्तिहान के मुकाबले को बुनियादी पढ़ाई से अधिक महत्व देता है। भारत में स्कूल-कॉलेज में बच्चों को अपने विषय की पढ़ाई की फिक्र नहीं रहती, आगे की एंट्रेंस-एग्जाम की तैयारी में उन्हें झोंक दिया जाता है। बचपन से ही मां-बाप गिने-चुने चार-छह किस्म के कोर्स अपने दिमाग में बिठाकर रखते हैं, और बच्चों के दिमाग पर यह दबाव बनाकर चलते हैं कि उन्हें आगे चलकर क्या बनना है। नतीजा यह होता है कि मां-बाप के सपनों को पूरा करने के लिए, या कुछ मामलों में बच्चे अपनी हसरत से भी ऐसे कोर्स में जाने की कोशिश करते हैं, या पहुंच जाते हैं, जो कि न तो उनके मिजाज का होता, न ही उनकी क्षमता का। ऐसे में दाखिला-इम्तिहान की तैयारी में, या पढ़ाई के दौरान वे खुदकुशी करने लगते हैं। यह भी मानकर चलना चाहिए कि खुदकुशी करने वाले एक बच्चे के मुकाबले ऐसे हजारों बच्चे और रहते होंगे जो कि बहुत बुरी तरह के डिप्रेशन के शिकार हो जाते होंगे या हीनभावना के शिकार हो जाते होंगे। ऐसा होने पर उनकी जो स्वाभाविक क्षमता है, वह भी धरी रह जाती होगी, और वे समाज के लिए, परिवार के लिए उतने उत्पादक भी नहीं रह जाते होंगे।
अभी कुछ दिन पहले ही इसी विषय पर लिखते हुए यह सुझाया था कि देश में शिक्षा नीति ऐसी रहनी चाहिए जो कि स्कूल की न्यूनतम जरूरी पढ़ाई के बाद बच्चों का रूझान और उनकी क्षमता देखकर उन्हें ऐसे प्रशिक्षण मुहैया कराए जो कि उन्हें जिंदगी में उत्पादक काम करने का हुनर दें। हर किसी को किताबी पढ़ाई देना भी उनकी जिंदगी के लिए एक बोझ हो जाता है क्योंकि उसके बाद वे मेहनत-मजदूरी के, या मशीन-औजार के कोई काम करने लायक नहीं रह जाते। इसलिए इस देश में हर किसी को किताबी पढ़ाई देना जरूरी नहीं है। स्कूल के बाद बहुत से लोगों को सीधे कामकाज के प्रशिक्षण में ले जाना चाहिए। दूसरी बात यह कि पूरे देश से कोचिंग की व्यवस्था ही खत्म करनी चाहिए क्योंकि यह समाज में गैरबराबरी पैदा करती है, और इससे गरीब बच्चों के आगे बढऩे की संभावनाएं खत्म हो जाती हैं, और महंगी कोचिंग पा सकने वाले बच्चे बड़े संस्थानों में दाखिला पाने की अधिक संभावना पा जाते हैं। कोटा की ताजा आत्महत्याएं देश को सोचने का एक मौका दे रही हैं कि वह एक सभ्य और समझदार देश की तरह अपने बच्चों को कोचिंग के कारखानों में भेजना बंद करे, और स्कूल-कॉलेज को मुकाबले की जगह बनाने के बजाय ज्ञान और समझ की जगह बनाएं।