संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : आज नरसिम्हाराव को जैसे कोसा जाता है, 25 बरस बाद उस तरह किसे कोसा जाएगा?
03-Sep-2023 3:40 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : आज नरसिम्हाराव को जैसे  कोसा जाता है, 25 बरस बाद  उस तरह किसे कोसा जाएगा?

कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने एक बार फिर मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाला है। उन्होंने अपनी आत्मकथा के पहले हिस्से के विमोचन समारोह में यह कहकर खलबली मचा दी कि अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के पहले प्रधानमंत्री नहीं थे, उन्होंने कहा कि भाजपा के पहले पीएम पी.वी.नरसिम्हाराव थे। अब इतिहास तो नरसिम्हाराव को कांग्रेस पीएम के रूप में दर्ज करता है, लेकिन मणिशंकर अय्यर का मंच और माईक से यह कहना लोगों को हैरान कर गया। उन्होंने कहा कि यह बात वे पहले अपनी एक दूसरी किताब में लिख चुके हैं, और इस ताजा किताब में उन्होंने यह नहीं लिखा है, लेकिन वे उस बात पर आज भी अटल हैं कि नरसिम्हाराव भाजपा के पहले प्रधानमंत्री थे। अपनी बात के पीछे का तर्क बताते हुए उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद गिराने के वक्त पीएम नरसिम्हाराव जिस शांति से अपने कमरे में पूजा कर रहे थे, उससे जाहिर था कि वे भाजपा के पीएम थे। उन्होंने याद किया कि कैसे जब वे (मणिशंकर) राम-रहीम यात्रा निकाल रहे थे तो नरसिम्हाराव ने उन्हें फोन किया था और कहा था कि उन्हें इस यात्रा पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन वे धर्मनिरपेक्षता की मणिशंकर की परिभाषा से असहमत थे। राव का यह कहना था कि मणिशंकर इस बात को नहीं समझ रहे हैं कि यह हिन्दू देश है। मणिशंकर अय्यर ने इस घटना के बारे में विमोचन समारोह में कहा कि भाजपा बिल्कुल यही कहती है (कि यह हिन्दू देश है), इसलिए भाजपा के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी नहीं नरसिम्हाराव थे। 

मणिशंकर अय्यर लिखने-पढऩे वाले हैं, और राजनीति के हिसाब से कुछ असुविधाजनक और तीखी जुबान बोलते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आलोचना करते हुए उन्होंने कई मौकों पर इतने तीखे विशेषणों का इस्तेमाल किया कि कांग्रेस पार्टी ने उनसे पल्ला झाड़ लिया, और उनके खिलाफ कार्रवाई भी की। अभी भी नरसिम्हाराव के बारे में मणिशंकर अय्यर के बयान के खिलाफ भाजपा ने उन्हें गांधी परिवार का चापलूस करार दिया है कि वे इस परिवार को खुश करने के लिए नरसिम्हाराव की आलोचना कर रहे हैं। यह बात पहले भी चर्चा में रही है कि नरसिम्हाराव के गुजरने पर किस तरह उस वक्त कांग्रेस पार्टी ने उनके शव को श्रद्धांजलि और दिल्ली में अंतिम संस्कार से परिवार को रोका था। ऐसा भी माना जाता है कि सोनिया गांधी नरसिम्हाराव को अधिक पसंद नहीं करती थीं, और नरसिम्हाराव ने विद्याचरण शुक्ल के मार्फत बोफोर्स के मामले को कुरेदने का काम किया था ताकि वह मीडिया में बने रहे, और सोनिया गांधी को शर्मिंदग झेलती रहनी पड़े। खैर, वह बात पार्टी के भीतर की थी जिस पर नरसिम्हराव के परिवार का कोई औपचारिक बयान अभी याद नहीं पड़ रहा है, लेकिन मणिशंकर अय्यर जो बात कहते हैं वह बात तो कांग्रेस पार्टी के भीतर बहुत से दूसरे नेता भी मानते हैं कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने को प्रधानमंत्री की मौन सहमति थी जिन्होंने तथाकथित साधू-संतों और यूपी के उस वक्त कट्टर हिन्दू सीएम कल्याण सिंह के तथाकथित वायदों पर भरोसा किया। उस वक्त भी अर्जुन सिंह सरीखे भाजपा-संघ के विरोधी, और कुछ वामपंथी रूझान वाले नेताओं ने नरसिम्हाराव को आगाह किया था कि वे गलत लोगों पर भरोसा कर रहे हैं, और ऐसे लोग खतरा बन सकते हैं। फिर भी नरसिम्हाराव ने हिन्दू संगठनों और ताकतों की बात सुनी थी जिसका नतीजा बाबरी विध्वंस की शक्ल में सामने आया था। अब उस दौर का कांग्रेस पार्टी और केन्द्र सरकार का इतिहास देखा जाए, तो कुछ लोगों ने भीतर से भी नरसिम्हाराव का विरोध किया था, लेकिन वह बहुत दूर तक जा नहीं पाया था। खुद अर्जुन सिंह बाबरी मस्जिद गिराए जाने में नरसिम्हाराव की संदिग्ध भूमिका के खिलाफ इस्तीफा देने का हौसला नहीं जुटा पाए थे। 

लेकिन अब ऐसा लगता है कि मणिशंकर अय्यर जो बात नरसिम्हाराव के बारे में बोल रहे हैं, वह आज भी कांग्रेस के बहुत से नेताओं पर लागू हो रही है। वैसे भी कांग्रेस का इतिहास बताता है कि उसके भीतर हिन्दूवादी ताकतों का एक बड़ा जमावड़ा सर्वोच्च स्तर पर था, और मदन मोहन मालवीय से लेकर राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद तक बहुत से लोग नेहरू की असहमति के बावजूद हिन्दू रीति-रिवाजों को औपचारिक बढ़ावा देते रहते थे। आजादी के तुरंत बाद का वह दौर कुछ अलग इसलिए था कि उस वक्त नए भारत के निर्माण की चुनौती थी, और लोग तरह-तरह की विचारधाराओं के साथ भी तालमेल बिठाने के आदी थे। गांधी और नेहरू कांग्रेस के भीतर भी कई किस्म की असहमति और विरोध झेलते थे, जिसमें कट्टर हिन्दूवादी नेता भी थे। 

1992 में प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिम्हाराव पर यह तोहमत लगी थी कि उन्होंने बाबरी मस्जिद गिराने को मौन सहमति दी थी। आज भारत के कई प्रदेशों में कांग्रेस के नेता जिस हद तक हिन्दुत्ववादी हो गए हैं, आज अगर 6 दिसंबर 1992 का दिन आए, तो कांग्रेस नेता घर नहीं बैठे रहेंगे, उनमें से बहुत से अयोध्या में सब्बल-कुदाली लिए हुए दिखेंगे। देश की राजनीति में भाजपा जिस फौलादी पकड़ से हिन्दुत्व को जकडक़र रखना चाहती हैं, वैसे ही फौलादी हाथों से बहुत से कांग्रेस नेता धर्मनिरपेक्षता को दूर धकेल भी रहे हैं। देश के कई बड़े कांग्रेस नेता इस बात में भी कामयाब हो गए हैं कि वे प्रियंका गांधी सरीखी प्रमुख कांग्रेस नेता को पूरी तरह से हिन्दुत्व की छत्रछाया में ले जा चुके हैं। अब भाजपा से चुनावी मुकाबले की यह हिन्दूवादी रणनीति कितनी कामयाब होती है, यह आने वाले चुनावों के नतीजों के विश्लेषण से पता चलेगा, लेकिन आज मणिशंकर अय्यर कांग्रेस के भीतर गिने-चुने नेताओं में से रह गए हैं जो कि साम्प्रदायिकता के खिलाफ खुलकर बात करने से परहेज नहीं करते। हो सकता है कि भाजपा के लिए वे कांग्रेसी कैम्प में एक पसंदीदा काम कर रहे हों, लेकिन हमारा यह भी मानना है कि चुनावी जीत-हार से परे बुनियादी मुद्दों पर नेताओं और पार्टियों की सोच सार्वजनिक रहनी चाहिए, और पारदर्शी रहनी चाहिए। अगर वोट पाने के लिए झूठ बोलना और सच को छुपाना जरूरी हो, तो हम उसके हिमायती नहीं हैं। मणिशंकर अय्यर आज 1992 के कांग्रेस के सबसे बड़े नेता के बारे में जो बोल रहे हैं, वो आज के किन कांग्रेस नेताओं के बारे में 25 बरस बाद बोला जाएगा, यह सोचने की बात है। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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