संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ऐसी पुलिस के राज में रेप क्या खाक रूकेंगे?
03-Sep-2023 3:50 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ऐसी पुलिस के राज में रेप क्या खाक रूकेंगे?

राखी की शाम छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगे हुए मंदिर हसौद में मोटरसाइकिल से आ रहे तीन लोगों को शराबियों ने रोका, नौजवान को चाकू की नोक पर रखा, और साथ की दोनों युवतियों को सडक़ के पास खुले में ले जाकर दस लोगों ने उनके साथ बलात्कार किया। इस खबर के आने के बाद मीडिया और सोशल मीडिया में लोग सहमे हुए दिख रहे हैं, और इस घटना के मुजरिमों को कड़ी सजा देने की मांग शुरू हो गई है, जिसकी जिंदगी दो-चार दिन रह सकती है। उसी इलाके के दस नाौजवानों को पुलिस ने रात में ही गिरफ्तार कर लिया है, और कहा जा रहा है कि वे ही बलात्कारी थे। दो दिन बाद ही केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह और कांग्रेस नेता सांसद राहुल गांधी के रायपुर में बड़े कार्यक्रम थे, इसलिए भी उसके ठीक पहले की यह बदनामी शासन-प्रशासन को हिला रही थी। राखी बांधकर लौट रही एक युवती अपने मंगेतर और अपनी छोटी नाबालिग बहन के साथ थी, और शाम के वक्त ही वे इस तरह से सामूहिक बलात्कार की शिकार हुईं। जब उन्हें सडक़ पर रोककर परेशान किया जा रहा था, उसी वक्त पास से और लोग आ-जा रहे थे, लेकिन किसी ने दखल नहीं दी थी। 

ऐसा लगता है कि छत्तीसगढ़ में पुलिस ने अपने बुनियादी काम की समझ खो दी है। राखी के दिन पूरे प्रदेश में लोग मोटरसाइकिलों पर बहन या बीवी को लेकर आते-जाते हैं, साथ में बच्चे भी रहते हैं, बहुत सी जगहों पर तो लड़कियां अकेले भी दुपहियों पर आती-जाती हैं। जाहिर है कि ऐसे मौके पर छेडख़ानी का खतरा अधिक रहता है। लेकिन पुलिस ने अपने-अपने इलाकों में किसी गश्त का इंतजाम किया हो, ऐसा नहीं हुआ होगा, क्योंकि पुलिस तथाकथित वीआईपी कार्यक्रमों को जिंदगी का मकसद मानकर चलती है। इस बीच इलाके के गुंडों को ऐसी नौबत माकूल बैठती है, और वे तरह-तरह के जुर्म करते हैं। लेकिन बात सिर्फ इतनी नहीं है, छत्तीसगढ़ में पुलिस का जो हाल महादेव ऑनलाईन सट्टेबाजी ऐप के मामले में सुनाई दे रहा है, उससे यह समझ में आता है कि हर महीने 50-50 लाख रूपए तक रिश्वत पाने वाले लोग लाख-पचास हजार की तनख्वाह वाली सरकारी नौकरी में जान तो नहीं दे देंगे। पूरे प्रदेश का यह हाल सुनाई पड़ता है कि कहीं अवैध रेत खदानों से, कहीं कोयले की चोरी और ट्रांसपोर्ट से, कहीं चोरी के कबाड़ के धंधे से पुलिस अफसरों ने संगठित मुजरिमों के टक्कर का काम शुरू कर दिया है। बहुत से जिलों से यह पुख्ता जानकारी आती है कि किस तरह बड़े पुलिस अफसरों ने मुजरिमों के गिरोह ही अपने कब्जे में ले लिए हैं, और मुजरिम अब उनके सब एजेंट की तरह काम करने लगे हैं। छत्तीसगढ़ में अब यह आम चर्चा चलने लगी है कि किस जिले में पुलिस की कितनी कमाई है, और खासकर बड़ी कुर्सियों की कमाई कितनी है। यह एकदम नई बात भी नहीं है, क्योंकि पिछली रमन सिंह सरकार के समय उनके एक ताकतवर मंत्री ने मंत्रिमंडल की बैठक में ही राजधानी रायपुर के उस वक्त के आईजी के बारे में कहा था कि उसकी पांच करोड़ रूपए महीने की कमाई है। यह सिलसिला पहले भी था, लेकिन अब यह आसमान से ऊपर निकलकर अंतरिक्ष की ऊंचाई तक पहुंच गया है। एक तरफ पुलिस राजनीतिक नाराजगी से बचते हुए, सत्तारूढ़ नेताओं और बड़े अफसरों की खुशामद करते हुए अपनी कुर्सी पर बने रहना चाहती है, या अधिक कमाऊ कुर्सी पर जाना चाहती है। दूसरी तरफ वह अपने लिए, और अपने से ऊपर के लोगों के लिए जिस बड़े पैमाने पर संगठित जुर्म कर रही है, उसमें बलात्कार जैसे मामूली जुर्म रोकने के लिए उनके पास वक्त न होना समझ आता है। 

आज ही छत्तीसगढ़ के एक बड़े अखबार में यह रिपोर्ट है कि किस तरह राजधानी रायपुर में थानों से महिला डेस्क गायब हो गई है, और महिलाओं के नाम पर बनाए गए संवेदना कक्ष भी बंद हो गए हैं। यह रिपोर्ट कहती है कि कई थानों महिला आरक्षक भी नहीं है। एक दूसरी खबर जो बहुत से अखबारों में है, वह बताती है कि एक मुस्लिम लडक़ी ने वीडियो बनाकर यह शिकायत की है कि किस तरह उसके घर के बाहर गुंडे परेशानी कर रहे हैं, और जब इसकी शिकायत की गई, तो उस इलाके में प्रशिक्षु आईपीएस ने उसे धमकाया है। यह मामला उसी दिन का बताया जा रहा है जब राजधानी रायपुर अमित शाह से लेकर राहुल गांधी तक की मेजबानी कर रहा था। इन तमाम बातों को मिलाकर देखें तो लगता है कि पुलिस की प्राथमिकता संगठित अपराधों में भागीदारी करने, या उनको खुद चलाने की रह गई है। ऐसा भी लगता है कि प्रदेश की राजनीतिक ताकतों को पूरे प्रदेश में पुलिस के ऐसे रूख से कोई शिकायत नहीं है। इनमें से कई बातें पिछली सरकार के समय भी दिखती थीं, लेकिन अब वे सिर चढक़र बोल रही हैं। 

आम बोलचाल की भाषा में दशकों से यह चले आ रहा है कि राजनीति का अपराधीकरण हो रहा है, या अपराधियों का राजनीतिकरण। अब छत्तीसगढ़ में पुलिस के हाल को देखकर यह लगता है कि पुलिस का माफियाकरण हो चुका है, और शायद बहुत ही कम जिलों में पुलिस वर्दीधारी गुंडा नहीं होगी। लोगों को याद होगा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज, जस्टिस अवध नारायण मुल्ला ने यह ठीक ही कहा था कि यूपी की पुलिस दुनिया की सबसे बड़ी अपराधी-गिरोह है। फर्क सिर्फ यही हुआ है कि अब पुलिस का वैसा हाल बहुत से प्रदेशों में हो गया है, और महादेव ऐप जैसे संगठित अपराध की ईडी जांच-रिपोर्ट से आगे बढक़र आम जनता को यह अधिक मालूम है कि पुलिस किस तरह इस जुर्म में भागीदार थी, शायद अब भी है, और दर्जनों पुलिस अफसर सिर्फ इसी एक जुर्म से करोड़पति बन चुके हैं। 

जब पुलिस संगठित अपराधों को रोकने से परे हटकर उनमें भागीदार बनने लगी है, और अब खुद करने लगी है, तो फिर आम जनता के साथ बलात्कार पर अधिक चौंकना नहीं चाहिए। मुजरिमों को अपने ही पेशे के लोगों से कोई डर तो रह नहीं गया होगा, और हम इसका सबसे बड़ा नमूना छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में देखते हैं जहां हर दिन सडक़ों पर चाकूबाजी होती है, हर दिन छेडख़ानी होती है, आए दिन छेडख़ानी करने वाले गुंडे रोकने वालों को या लडक़ी के परिवार को घर घुसकर मारते हैं। आज पुलिस की कामयाबी सीसीटीवी कैमरों और मोबाइल फोन टेक्नालॉजी की मदद से दिखती है। लेकिन इन दो औजारों से पकड़े जाने वाले जुर्म अगर छोड़ दें, तो राजधानी भी बाकी तमाम किस्म के जुर्म और गुंडागर्दी की गवाह है। पुलिस के कुछ बेहतर अफसरों का यह मानना है कि राज्य में पुलिसिंग का जितना पतन हो गया है, अगले कई बरस उसको सुधारना मुमकिन नहीं होगा। ऐसे में प्रदेश की तमाम लोकतांत्रिक ताकतों को यह भी सोचना चाहिए कि सरकार के सबसे ताकतवर इस वर्दीधारी महकमे को अगर सबसे बड़ा मुजरिम भी बनने दिया गया, तो फिर प्रदेश में किसी भी जुर्म को रोकना तभी हो पाएगा, जब उससे पुलिस को कोई संगठित वसूली और उगाही होते नहीं दिखेगी। अब इस नौबत में लोगों को बलात्कार और छेडख़ानी को रोकने की जितनी उम्मीद करना ठीक लगे, वे करते रहें, लोकतंत्र में हर किसी को खुशफहमी में जीने का पूरा हक है। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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