विचार / लेख

विपक्षी दलों के गठबंधन का कारवां
04-Sep-2023 8:20 PM
विपक्षी दलों के गठबंधन का कारवां

-डॉ. आर.के.पालीवाल
जैसे-जैसे 2024 के लोकसभा चुनाव पास आ रहे हैं वैसे-वैसे विपक्षी दलों के गठबंधन का कारवां धीरे-धीरे मंद गति से बढ़ रहा है। विपक्षी दलों के कारवां को आगे बढ़ाने के लिए जितनी मेहनत नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल,राहुल गांधी, उद्धव ठाकरे और तेजस्वी यादव जैसे महत्वाकांक्षी नेता कर रहे हैं उससे ज्यादा गति उसे केंद्र सरकार के कुछ निर्णय और नीतियां तथा जांच एजेंसियों की विपक्षियों पर ताबड़तोड़ कार्यवाही दे रही हैं। इन दोनों कारणों से विपक्षी दलों को मजबूत गठबंधन के अलावा केन्द्र की सत्ता के आसपास पहुंचने और राज्यों में अपनी सत्ता बरकरार रखने का कोई अन्य विकल्प नजर नहीं आ रहा है।

 गठबंधन में शामिल अधिकांश विपक्षी दलों की स्थिति भी अजीब है। केन्द्र में सरकार बनाने के लिए वे सामूहिक चक्रव्यूह की रचना कर रहे हैं लेकिन अधिकांश राजनीतिक दल राज्यों में एक दूसरे के विरोधी हैं , इसलिए उनके लिए आपसी तालमेल को मंजिल तक पहुंचाना टेढी खीर साबित हो रहा है। यही कारण है कि गठबंधन के प्रमुख नेताओं की शुरूआती कई अनौपचारिक मुलाकातों के बाद पटना, बैंगलोर और मुंबई में तीन बडी बैठकों में भी कोई बहुत बड़ा निर्णय सामने नहीं आया है।

ऐसा लगता है कि नौ साल केंद्र की सत्ता से दूर रहने के बाद कांग्रेस और क्षेत्रीय क्षत्रप अपने राज्यों की सरकार भी ठीक से नहीं चला पा रहे हैं। कहीं उन्हें राज्यपालों और लेफ्टिनेंट गवर्नर की सक्रियता से परेशानी हो रही है और कहीं केंद्र के सहयोग से चलने वाली योजनाओं के क्रियान्वयन में बाधा आ रही है। इन्हीं वजहों से वे येन केन प्रकारेण केंद्र में सहयोगी सरकार चाहते हैं अत: बहुत फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं। गठबंधन के शुरुआती दौर में सभी दलों के नेता बड़बोलेपन से गठबंधन को लडख़ड़ाने से बचाने की कोशिश कर संतुलित बयान दे रहे हैं। मुंबई में संपन्न बैठक में भी गठबंधन के संयोजक का नाम तय नहीं हो पाया। एक चौदह सदस्यीय कोऑर्डिनेशन समिती जरूर बनी है जिसमें गठबंधन के बड़े दलों के प्रतिनिधि शामिल हैं। बैठक में तीन प्रमुख मुद्दों पर भी सहमति बनी है, मसलन विभिन्न दलों के मध्य सीटों के बंटवारे पर सहमति बनाने की कोशिश होगी। यह ऐसा मुद्दा है जिस पर चुनाव से पहले ही दरारें आने की प्रबल संभावना है और हर दल अपने अपने तर्कों के साथ अपने दल के लिए अधिक से अधिक टिकट  आरक्षित कराने के लिए प्रयासरत रहेगा। बहुत सी जगह टिकट नहीं मिलने से नेता बगावत भी करेंगे और बड़े पैमाने पर दल बदल भी होगी।

दूसरा आसान निर्णय यह भी हुआ है कि विपक्षी दल अपने अपने प्रभाव के क्षेत्रों में देश भर में रैलियां करेंगे। विपक्षी एकता का टेंपो बरकरार रखने के लिए यह बहुत जरूरी कदम है । इन रैलियों के माध्यम से केंद्र सरकार की गलत नीतियों और निर्णयों पर जन जागरूकता से जब सरकार के प्रति स्वाभाविक रूप से पनपने वाले एंटी इनकंबेंसी फैक्टर में वृद्धि होगी तभी विपक्ष मजबूत हो सकेगा और सत्ता के नजदीक पहुंच सकेगा। तीसरा प्रमुख निर्णय विपक्ष की मीडिया रणनीति बनाने का है। विपक्ष को लगता है कि मीडिया का बड़ा वर्ग जिसे सरकार समर्थक गोदी मीडिया के नाम से पुकारा जाता है वह विपक्ष की सही छवि प्रस्तुत नहीं करता। यह काफी हद तक सही भी है क्योंकि बड़े अखबारों और चैनलों की आय का बड़ा स्रोत केन्द्र और भाजपा की राज्य सरकारों से आता है इसलिए उनके लिए विपक्ष को महत्व देना घाटे का सौदा है। इसी तरह जिन मीडिया घरानों के विविध औद्योगिक एवं व्यापारिक हित हैं उन्हें केंद्र और राज्य सरकारों की जांच एजेंसियों से भी दंडात्मक कार्रवाई का भय रहता है। ऐसे में विपक्ष को सोशल मीडिया सहित निष्पक्ष मीडिया की छोटी छोटी इकाइयों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। इस बैठक में कॉर्डिनेसन कमेटी बनने से आगे की रणनीती बनाना भी आसान होगा। यह कमेटी भविष्य की बैठकों को सही दिशा में ले जाने के लिए जमीनी तैयारी कर सकेगी।

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