संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : जुर्म क्या है? उदयनिधि का बयान, या उनका सिर काटने पर रखा ईनाम?
05-Sep-2023 6:26 PM
 ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : जुर्म क्या है? उदयनिधि का बयान, या उनका सिर  काटने पर रखा ईनाम?

photo : twitter

हिन्दुस्तानी बच्चों को स्कूल में निबंध लिखना सिखाते हुए यह लिखवाया जाता है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। सच तो यह है कि भारत एक धर्म प्रधान देश है, और खासकर पिछले दस बरस में कृषि और दूसरे रोजगार लोगों का पार्टटाईम जॉब हो गए हैं, और उनका मूल रोजगार धर्म हो गया है। यही वजह है कि फलते-फूलते धर्म को देखकर लोग संतुष्ट हैं, उनके पेट भर जाते हैं, और किसी को भी इस बात का अफसोस नहीं है कि रोजगार कम हो रहे हैं, बेरोजगारी बढ़ रही है, कारोबार मंदा है, और महंगाई कमरतोड़ है। ऐसे में धर्म लोगों के सिर चढक़र बोल रहा है क्योंकि अकेला धर्म ही है जो सिर चढ़ी हुई महंगाई और बेरोजगारी को ढांक सकता है, इसलिए लोग उसे भी सिर चढ़ाकर रख रहे हैं। फिर धर्म के साथ-साथ राष्ट्रवाद और राजनीति इन दो का गठजोड़ भी हो गया है, और नतीजा यह है कि त्रिवेणी संगम पर तीन नदियों के पानी के मिलने की तरह धर्म, राजनीति, और राष्ट्रवाद का संगम देश में चल रहा है। 

ऐसे में जब इंडिया नाम के गठबंधन के भागीदार एक दल, तमिलनाडु की सत्तारूढ़ डीएमके पार्टी के मुख्यमंत्री एम.के.स्टालिन के मंत्री बेटे उदयनिधि स्टालिन ने जब सनातन धर्म के उन्मूलन की बात कही, तो भाजपा ने इसे तुरंत लपककर इंडिया से सवाल किया कि क्या यह गठबंधन इसीलिए बना है? डीएमके तमिलनाडु में दलितों की राजनीति करने वाली पार्टी है, और हिन्दू धर्म के पीछे की सनातनी, जातिवादी सोच का वह हमेशा से विरोध करते आई है। इसमें कोई नई बात नहीं है। तमिलनाडु में पेरियार सरीखे महान दलित नेता हुए हैं, जिन्होंने समाज में जाति व्यवस्था की हिंसा का विरोध किया, और दलित चेतना के लिए बड़ा काम किया। इसलिए तमिलनाडु एक दलित राजनीतिक चेतना वाला राज्य है, और वहां पर हिन्दू धर्म के पाखंड वाले हिस्से का विरोध करने में कोई दबी-छुपी जुबान इस्तेमाल नहीं होती। इसी के चलते उदयनिधि स्टालिन ने वामपंथी लेखक-कलाकार संघ के इस सनातन उन्मूलन सम्मेलन में कहा कि सम्मेलन का नाम बहुत अच्छा है, और सनातन विरोधी सम्मेलन के बजाय सनातन उन्मूलन सम्मेलन बेहतर सोच है। उन्होंने कहा कि कुछ चीजों का विरोध काफी नहीं है, उन्हें खत्म करना होगा, उन्होंने कहा कि हम मच्छर डेंगू बुखार, मलेरिया, कोरोना वायरस का विरोध नहीं करते हैं (उनका उन्मूलन करते हैं)। उन्होंने इस बात का खुलासा करते हुए कहा कि सनातन समानता और सामाजिक न्याय के खिलाफ है, उन्होंने देश की कुछ राजनीतिक ताकतों की तरफ इशारा करते हुए कहा फासीवादी ताकतें हमारे बच्चों को पढऩे से रोकने के लिए कई योजनाएं लेकर आ रही हैं। सनातन की नीति यही है कि सबको नहीं पढऩा चाहिए। नीट इम्तिहान इसकी एक मिसाल है।

भाजपा ने उदयनिधि के इस बयान को लेकर इंडिया नाम के गठबंधन और कांग्रेस पार्टी से कई किस्म के सवाल किए, भाजपा के नेताओं ने उदयनिधि के खिलाफ दिल्ली पुलिस में रिपोर्ट की। और आज की खबर यह है कि उत्तर भारत में किसी साधू सरीखे नाम और हुलिए वाले व्यक्ति ने कैमरे के सामने उदयनिधि की तस्वीर को तलवार से चीरते हुए यह घोषणा की कि उनका सिर काटकर लाने वाले को दस करोड़ रूपए का ईनाम दिया जाएगा। ईनाम की इस घोषणा पर अभी तक किसी जिले की पुलिस या सरकार ने कोई जुर्म दर्ज नहीं किया है। इस बीच राजद के सांसद और प्रवक्ता प्रो.मनोज झा ने कहा है कि उदयनिधि के बयान के प्रतीकों और मुहावरों के बारे में भी सोचना चाहिए। उन्होंने कहा कि कई लोगों का मानना है कि सनातन में कई विकृतियां हैं। उन्होंने पूछा कि क्या जाति व्यवस्था अच्छी चीज है? उन्होंने कबीर के एक दोहे का जिक्र करते हुए कहा कि इस देश में कबीर ने कई दोहे कहे, क्या आप उन्हें फांसी पर चढ़ा देंगे? 

लोकतंत्र में किसी भी धर्म की मान्यताएं और सोच अगर संविधान को कुचलने वाले हों, तो उन्हें बदलने की जरूरत है। अभी मोदी सरकार ने ही मुसलमानों के तीन तलाक को एक कानून बनाकर खत्म किया है। तो क्या इस पर कोई मुस्लिम नेता सिर काटने का फतवा करने लगे? जब राजस्थान में सतीप्रथा को कानून बनाकर बंद करना पड़ा, तो उसे भी कई लोगों ने धार्मिक परंपरा को कुचलना कहा था, आज अगर वह प्रथा जारी होती, तो ताजमहल के मुकाबले अधिक बड़ी संख्या में पश्चिमी पर्यटक उसे देखने आते। समाज सुधार के लिए धर्म में कई किस्म के बदलाव लाए जाते हैं, अभी भी देश में यूनीफॉर्म सिविल कोड की बात चल ही रही है। इससे भी बहुत से धर्मों के रिवाजों पर असर पड़ेगा। आज अगर तमिलनाडु के दलित यह मानकर चल रहे हैं कि सनातन धर्म की नसीहतें जातिवादी हैं, नीची करार दी गई जातियों के खिलाफ हिंसक हैं, और इसलिए सनातन का उन्मूलन होना चाहिए, तो यह दलितों की तकलीफ अधिक है, यह किसी सनातनी को मारने की बात नहीं है। लेकिन आज भारत की राजनीति में किसी बात को तोड़-मरोडक़र एक झूठी तोहमत लगाने का जो फैशन चल रहा है, वह अपनी पूरी हिंसा के साथ उदयनिधि स्टालिन के खिलाफ सामने आई है। यह कहा गया कि उदयनिधि ने हिन्दुओं की सफाये की बात कही है, हिन्दुओं के उन्मूलन की बात कही है। यह बात तो उदयनिधि के शब्दों से भी नहीं निकलती, और न ही शब्दों की भावना से। यह बात कुछ उसी तरह की है जो कि जवाब में उदयनिधि ने कही है। उन्होंने याद दिलाया कि नरेन्द्र मोदी बार-बार कांग्रेसमुक्त भारत की बात कहते हैं, तो क्या वे कांग्रेसियों के सफाये की बात करते हैं? ठीक उसी तरह सनातन के उन्मूलन की बात सनातनियों को मारने की बात नहीं है, इस धर्म या सोच में जो भेदभाव है, बेइंसाफी है, उसके उन्मूलन की बात है। 

इंडिया गठबंधन को घमंडिया से लेकर ठगबंधन तक बुलाते हुए भाजपा के नेताओं का गला सूखने लगा है। इस एक नाम से जरूरत से कुछ अधिक दहशत फैल गई लग रहा है। इसलिए इस गठबंधन के एक भागीदार, डीएमके के नौजवान नेता की कही इस बात का कोई तर्कसंगत जवाब देने के बजाय उसके शब्द और उसकी भावना दोनों को तोड़-मरोडक़र भडक़ाने का काम हो रहा है। लोगों में इतनी समझ बाकी रह गई है या नहीं, यह तो पता नहीं, लेकिन अगर लोकतांत्रिक समाज में लोगों को ऐसी तोड़-मरोड़ समझ नहीं आती है, तो फिर वे कैसी सरकार के हकदार हैं, इसे बोलने की जरूरत हमें नहीं है। उदयनिधि स्टालिन ने एक बुनियादी सवाल खड़ा किया है, और सनातनी धर्म के भीतर हिंसा के सबसे बुरे शिकार दलितों की ओर से बात की है। अगर भारत में हिन्दू समाज के आंकड़े देखें, तो तकरीबन 77 फीसदी लोग दलित, आदिवासी, ओबीसी हैं। एक चौथाई से कम सवर्ण आबादी का एक बहुत छोटा सा सनातनी हिस्सा अपने धर्म को हमेशा से, हमेशा के लिए, और अपरिवर्तनीय बताता है। इस सवर्ण हिस्से से अधिक आबादी तो देश में दलित-आदिवासियों की है, बल्कि सारे सवर्णों जितने 23 फीसदी तो अकेले दलित ही हैं। ऐसे में इस आबादी को कुचलते हुए संख्या में इतनी ही सवर्ण आबादी के एक बड़े छोटे सनातनी हिस्से के भेदभाव को लोकतंत्र में कब तक जारी रखा जाएगा? और इस भेदभाव और हिंसा पर सवाल उठाने वालों का सिर काटने पर ईनाम रखा जा रहा है। उदयनिधि ने जो कहा उस पर तो कोई जुर्म नहीं बनता है, लेकिन उनका सिर काटने पर ईनाम रखने वाले की गिरफ्तारी में देर करना तो सुप्रीम कोर्ट के हेट-स्पीच आदेश के सीधे-सीधे खिलाफ है। 

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