विचार / लेख

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और महात्मा गांधी
06-Sep-2023 4:40 PM
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और महात्मा गांधी

डॉ. आर.के.पालीवाल

गांधी से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी तो क्या आधुनिक भारत की किसी और शख्शियत से भी उनकी तुलना असंभव है क्योंकि गांधी की तरह किसी अन्य भारतीय ने बिना विश्व भ्रमण किए पूरी दुनिया और संयुक्त राष्ट्र संघ में जो अहमियत पाई है वैसे किसी दूसरी शख्शियत का उनके आसपास पहुंचना निकट भविष्य में भी यदि असंभव नहीं तो अत्यंत मुश्किल है। इसलिए इस लेख का उद्देश्य गांधी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना नहीं अपितु महात्मा गांधी के प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अनुराग जानने समझने की कोशिश करना है। गांधी और सर्वोदय विचार के अनुयाइयों में कुछ लोग यह मानते हैं कि गुजरात से आने के कारण प्रधानमंत्री गुजरात के शिखर पुरुष गांधी को सम्मान देते हैं, हालांकि अधिकांश गांधी विचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जब तब की गई गांधी की प्रशंसा को नाटक मानते हैं। ऐसे गांधी विचारकों की संख्या पिछ्ले एक महीने में तेजी से बढ़ी है जब से प्रधानमंत्री के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में केन्द्र सरकार के रेल मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश सरकार के सक्रिय सहयोग से गांधी और सर्वोदय विचार के प्रचार प्रसार की शीर्ष संस्था सर्व सेवा संघ परिसर को बुल्डोजर से उसी तरह ध्वस्त किया है जैसे बड़े अपराधियों के मामलों में किया जा रहा है।

महात्मा गांधी के प्रति सम्मान का भाव प्रधानमंत्री ने सबसे ज्यादा तब दिखाया था जब उन्होंने राष्ट्रव्यापी स्वच्छता अभियान शुरु करते समय गांधी का जिक्र किया था। उसके बाद कुछ और महत्त्वपूर्ण अवसरों पर उन्होंने देश विदेश में महात्मा गांधी की सकारात्मक चर्चा की है।संयुक्त राष्ट्र संघ में गांधी की मूर्ति को भी उन्होंने योग दिवस कार्यक्रम की शुरुआत पर नमन किया था। चीन के राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान उनको साबरमती आश्रम में व्यक्तिगत स्तर पर भ्रमण कराना भी एक तरह से गांधी के प्रति श्रद्धा का प्रर्दशन था। हालांकि यह भी उल्लेखनीय है कि  प्रधानमंत्री का रहन सहन सादगीपूर्ण नहीं है। उनकी भाषा शैली में गांधी जैसी विनम्रता नहीं है। उनके विचारों और आचरण में सर्व धर्म समभाव और सांप्रदायिक सौहार्द्र के वैसे पवित्र तरल भाव नहीं दिखते जो गांधी के व्यक्तित्व में अंदर तक रचे बसे थे और उनकी कथनी और करनी में भी अक्सर बहुत अंतर रहता है।

   प्रधानमंत्री के अनन्य शुभचिंतकों की बात करें तो ऐसा लगता है कि उनमें बहुतेरों के मन में गांधी के प्रति भयंकर नफरत है जो गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के प्रति भक्ति की हद तक प्रकट होती है। विश्व के हर मामले में ट्वीट के जरिए अपने अथाह ज्ञान का पल पल परिचय देने वाले प्रधानमंत्री अपने प्रशंसकों की इस नफरत से परिचित नहीं हैं यह मानने का कोई कारण नजर नहीं आता लेकिन प्रधानमंत्री ने कभी कड़े शब्दों में ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की चेतावनी तक नहीं दी।

इससे यह आभास होता है कि उनके मन में गांधी के प्रति वैसी श्रद्धा नहीं है जैसी गांधी के के प्रति जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, डॉ राजेंद्र प्रसाद, मोरारजी देसाई, अब्दुल कलाम, खान अब्दुल गफ्फार खान,  नेल्सन मंडेला, मार्टिन लूथर किंग और आंग सांग सूकी जैसी विभूतियों में थी और है। इसका एक प्रमाण यह भी है कि प्रधानमंत्री ने गुजरात में जो सम्मान स्टेचू ऑफ यूनिटी के माध्यम से सरदार पटेल को दिया है वैसा कुछ स्टेचू ऑफ ट्रूथ या स्टेचू ऑफ नॉन वायलेंस के माध्यम से गांधी को नहीं दिया जबकि उनकी सरकार के पास राष्ट्रपिता को समर्पित करने के लिए गांधी 150 और अमृत काल सरीखे दो दो बड़े ऐतिहासिक अवसर आए थे। इन दोनों ऐतिहासिक अवसरों पर मोदी सरकार ने कोई ऐतिहासिक महत्व का कार्य न कर एक तरह से कागजी खानापूर्ति ही की है। बनारस में सर्व सेवा संघ की साठ साल पुरानी गांधी, विनोबा और जे पी की साझी सर्वोदय विरासत पर बुलडोजर चलाने ने प्रधान मंत्री के मन में गांधी के प्रति सतही भावना को सरेआम साफ कर दिया है।

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