विचार / लेख

पायल भुयन
क्या खाना आपके मूड को प्रभावित करता है? क्या खाना आपके सोचने के तरीके में बदलाव ला सकता है? हमारे आहार और हमारे मानसिक स्वास्थ्य के बीच का रिश्ता समझना थोड़ा मुश्किल है।
अब तक इस विषय पर हुए शोध कहते हैं कि हम क्या खाते हैं और कैसा महसूस करते हैं, इन दोनों के बीच गहरा संबंध है।
खाना आपकी अच्छी सेहत के लिए बहुत ज़रूरी है। आज कल सेलिब्रिटी भी अपने अपने डायट प्लान लेकर आते हैं। एक अनुमान के मुताबिक डायट खाने का लगातार बढ़ता बाज़ार करीब 250 बिलयन डॉलर का उद्दयोग बन चुका है।
वजऩ कम करने की कोशिश कर रहे दो हजार लोगों पर किए गए एक अध्ययन में पाता चला कि इनमें से जिन लोगों ने अपना वजन थोड़ा भी घटाया, उनमें से 80 फीसदी लोग में डिप्रेशन के लक्षण पाए गाए।
लेकिन ऐसा क्यों हुआ? क्या इसका कारण डायट के दौरान लिए जाना वाल भोजन है।
भूख का हमारे दिमाग पर असर
भूखे रहना हमारे दिमाग पर असर डाल सकता है। भूख से कई बार गुस्सा भी आता है। यानी आपको भूख भी लग रही होती है जिससे आपको गुस्सा आता है। अंग्रेजी में इसे ‘हैंग्री’ कहते हैं।
इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि पर्याप्त पोषक तत्वों और कैलोरी के बिना हमारे मस्तिष्क को विकसित होने और ठीक से काम करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। लेकिन क्या रोजमर्रा के जीवन में कुछ समय के लिए भूखा रहना हमारे सोचने के तरीके, हमारे मूड को प्रभावित कर सकता है?
कॉरपोरेट जॉब करने वालों और मार्केटिंग प्रोफेशनल रविकांत कहते हैं, ‘अगर मुझे जोरों की भूख लगी हो तो मुझे बहुत गुस्सा आता है, मैं चिड़चिड़ा हो जाता हूं। मैं कभी व्रत रख नहीं सकता क्योंकि मुझे बहुत भूख लगती है और मेरा मूड खराब हो जाता है। अगर मैं अपनी एक भी मील भूल जाऊं तो मैं अपने आसपास सब पर गुस्सा होने लगता हूं। जब मैं 10वी-12वीं कक्षा में था तब मुझे इस बात का इल्म होने लगा कि अगर मेरा पेट नहीं भरा है तो मुझे गुस्सा आता है।’
खाने का इमोशन्स पर असर
हमारी सोच पर हमारे इमोशन्स पर हावी रहते हैं। ख़ासकर तब जब हम अपनी भावनाओं को समझते और स्वीकारते नहीं हैं। अगर हमें पता हो कि हमारी भावनाएं क्यों और किस वजह से आ रही हैं तो हम उन्हें नियंत्रण में कर सकते हैं।
मनोवैज्ञानिक और सीनियर कंसल्टेंट निशा खन्ना बताती हैं, ‘इंसान की तीन बुनियादी जरूरतें होती हैं, भूख/प्यास, सोना और शारीरिक जरूरतें होती हैं। अगर इन तीनों में से कोई एक भी पूरी नहीं होती तो ये हमारे मेंटल हेल्थ पर असर डाल सकती हैं। हम कितने घंटे भूखे रहते हैं इसका सीधा असर हमारे दिमाग से है। रिसर्च कहती है कि नाश्ता बहुत जरूरी है, क्योंकि सुबह जिस ऊर्जा की हमें जरूरत होती है, वो इससे पूरी हो जाती है। खाना हमारे फैसले लेने की शक्ति, याददाश्त, ध्यान केंद्रित करने की क्षमता पर असर डालता है।’
खाना हमारे मूड को कैसे प्रभावित करता है?
साल 2022 में की गई एक स्टडी बताती है कि खराब मूड अक्सर हमें निराशावादी बना देता है, जो हमारी सोच को और ज़्यादा नकारात्मक बना सकता है। अगर आपको इस चीज़ का इल्म ना हो कि आपका मूड कितना खऱाब है तो आपके गलत फैसले लेने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। लेकिन इसका इस बात से क्या लेना-देना कि आपने हाल में क्या खाया है?
बायोलॉजिकल केमेस्ट्री
मुंबई में रहने वाली 35 साल की शिल्पा एक गृहणी हैं। वो प्री-डायबटिक हैं, लेकिन माहवारी के दौरान होने वाल दर्द कम करने और मूड ठीक रखने के लिए वो आइसक्रीम और डार्क चॉकलेट खाती हैं।
शिल्पा कहती है, ‘जिस पल में आइसक्रीम या फिर डार्क चॉकलेट खाती हूं, उस समय मैं अचानक से बहुत खुश हो जाती हूं। जैसे सब कुछ अच्छा हो रहा है। पीरियड्स के शुरुआती दिनों में मुझे बहुत दर्द होता है , पर ये दोनो चीज़े मुझे वो दर्द भूलने में मदद करती हैं। ये जानते हुए भी कि मैं प्री-डायबटिक हूं, मैं आइस्क्रीम और चॉकलेट नहीं छोड़ सकती, हां मैं इन्हें खाने के बाद वॉकिंग ज़रूर कर लेती हूं।’
जानी मानी डायटिशियन और वन हेल्थ कंपनी की फाउंडर डॉक्टर शिखा शर्मा खाने और हमारे मूड के बीच एक गहरा रिश्ता बताती हैं।
वो कहती हैं, ‘खाना एक बायोलॉजिकल केमेस्ट्री है। खाना हमारे हॉर्मोन्स को ट्रिगर करता है। कई लोगों में ट्रिगर ईटिंग हैबिट्स होती हैं। आप खुश, गुस्सा, उदास हैं या फिर घबराहट हो रही है तो इस ट्रिगर की वजह से आप बार-बार वो चीज खाते हैं जो आपको पसंद है। चीनी, चीज, शराब, मशरूम, दूध ये अलग अलग हॉर्मोन्स को ट्रिगर करते हैं।’
साल 2022 में मनोवैज्ञानिक निएंके जॉन्कर और उनके साथियों ने नीदरलैंड के ग्रोनिगेन विश्वविद्यालय में 129 महिलाओं पर एक अध्ययन किया था।
इनमें से आधी महिलाओं को 14 घंटो के लिए उपवास पर रहने के लिए कहा गया। इसके बाद इन सारी महिलाओं को कितनी भूख लगी, मनोदशा, खाने की आदतों के बारे में सवाल पूछे गए।
उन्होंने पाया कि जिन महिलाओं ने खाना नहीं खाया था, उन्होंने अधिक नकारात्मक जवाब दिए, उनमें तनाव, क्रोध, थकान और भ्रम की स्थिति भी ज़्यादा थी। उनमें जोश की भी कमी थी।
जॉन्कर कहते हैं, ‘ये कोई मामूली बात नहीं है। भूखी महिलाओं ने औसतन उन लोगों की तुलना में अपने अंदर दोगुना गुस्सा महसूस किया, जिन्हें भूख नहीं लगी थी।’
जंक फूड और ‘स्ट्रेस ईटिंग’
डॉयटिशियन डॉक्टर शिखा शर्मा के मुताबिक़, हमारे क्रोध और भूख का केंद्र मस्तिष्क में पास-पास है। जब एक पर प्रभाव पड़ता है तो दूसरा खुद ब खुद एक्टिव हो जाता है।
ब्रैंकिंग प्रोफ़ेशनल और दिल्ली की रहने वाली प्रियंका कहती हैं कि वो ‘स्ट्रेस ईटिंग’ करती हैं, ‘जब मुझे तनाव होता है तो खाना मुझे सुकून देता है। दफ्तर में कई बार मैंने महसूस किया कि काम ज़्यादा होने पर मेरा जंक खाना बढ़ जाता है। जिससे अब मेरा वजन बहुत ज़्यादा बढ़ रहा है। अब ये उलटे मेरा मेंटल हेल्थ पर असर डाल रहा है।’
मनोवैज्ञानिक अरुणा ब्रूटा का मानना है कि मन और तन का रिश्ता बहुत जुड़ा हुआ है, और इन दोनों को जोड़ कर जो रख सके वो आपका खाना है।
वो कहती हैं, ‘जब आप लंबे समय तक खाना नहीं खाते हैं तब आपका बल्ड शुगर लेवल लो हो जाता है, आपकी क्रिएटिविटी ख़त्म होने लगती है, आपकी सोच में क्रोध, घबराहट ज़्यादा होता है। सब्र भी खत्म होने लगता है। शरीर में सोडियम की मात्रा का भी संतुलन जरूरी है। जिन लोगों का सोडियम ज्यादा होता है उन्हें उच्च रक्तचाप की शिकायत रहती है, उन्हें गुस्सा जल्दी आता है, जिनका शुगर लो होता है उन्हें भी गुस्सा जल्दी आता है।’
दिल्ली में रहने वाले रविकांत कहते हैं कि जब उन्हें भूख लगी होती है तब वो कोई भी फैसला लेने से बचते हैं। वो कहते हैं, ‘मैं उस समय कोई बड़े फैसले नहीं लेता, मेल्स का रिप्लाई नहीं करता। मीटिंग में जाने से पहले भी मेरी कोशिश रहती है कि मैं खाना खा कर जाऊं, क्योंकि मैं जानता हूं कि मैं भूखे रहने से बहुत ज़्यादा चिड़चिड़ा हो जाता हूं।’
डॉक्टर शिखा शर्मा कहती हैं, ‘अगर आपको भूख लगी है तो बहुत मुमकिन है कि आप सही फैसले नहीं ले पाएं, जो काम कर रहे हैं उस पर ध्यान ना लगा पाएं। आप काम जल्द ख़त्म करने की कोशिश करेंगे ताकि आप जल्द से जल्द कुछ खा सकें। जब हम भूख, गैस, एसिडिटी की गिरफ़्त में आ जाते हैं या फिर शराब के नशे में होते हैं तो हमारी समझने की क्षमता बहुत हद तक कम हो जाती है।’
कैसे रखें खाने और स्वास्थ्य में लय
पौष्टिक खाना खाने से आप तंदुरुस्त महसूस करेंगे। इसके लिए आपको बहुत बदलाव की ज़रूरत नहीं है।
न्यूट्रिशयनिस्ट और डाइटिशियन डॉक्टर शिखा शर्मा कहती हैं, शरीर के सर्कैडियन रिदम को पहचाने और उसके हिसाब से खाना खाएं।
दो मील के बीच ज्यादा गैप ना दें।
पर्याप्त पानी पीएं
मौसम और उम्र के हिसाब से खाना खाएं।
व्यायाम को दिनचर्या का एक नियम बना लें।
इंटरमिटेंट फास्टिंग और मेंटल हेल्थ
डॉक्टर शिखा शर्मा कहती हैं, ‘शरीर की एक सर्कैडियन लय होती है। जिसके हिसाब से आपका शरीर काम करता हैं। दिन के वक्त इंसान का शरीर खाना पचाता है और बाकी बचे समय में को खुद को रिपेयर करता है। शरीर का सर्कैडियन रिदम सूरज की रोशनी के हिसाब से काम करता है। सूर्य अस्त के बाद खाना नहीं खाना आयुर्वेद में भी अच्छा माना गया है। लेकिन एक उदाहरण के तौर पर मान लीजिए की अगर सूर्य उदय सुबह 530 बजे हो रहा है तो आपके शरीर का सर्कैडियन रिदम सबह 8 से 830 बजे के बीच शुरू हो जाएगा। इसका पीक दोपहर के 12 बजे आएगा और इसमें शाम 6 बजे के बाद कमी आ जाएगी।’
‘आजकल लोग बिना शरीर और भोजन के पीछे का विज्ञान समझे, दिन में 2 बजे तक नहीं खाते हैं। ऐसा करने से आप अपने शरीर का नुकसान कर रहे हैं। ज़्यादा देर तक नहीं खाने से एसिड आपके पेट की लाइनिंग को नुकसान पहुंचाना शुरू करती है, आपको गैस की समस्या हो सकती है, आप चिड़चिड़े हो सकते हैं। आपको ध्यान केंद्रित करने में परेशानी हो सकती है। मैं कहूंगी कि अगर आप इंटरमिटेंट फास्टिंग कर भी रहे हैं तो सुबह 11-11.30 तक कुछ खा लीजिए।’ (bbc.com/hindi)