विचार / लेख

-डॉ. आर.के. पालीवाल
सनातन धर्म का सनातन नाम इसीलिए है कि उसकी उम्र बहुत लंबी है। वह चिर युवा है, आदिकाल से चला आ रहा है और अनंत काल तक चलता रहेगा।इधर कुछ साल से हमारे इस अद्वितीय धर्म के स्वयंभू रखवाले बने मुट्ठीभर लोग बहुत डरे हुए रहते हैं। जरा सा किसी ने कुछ फुसफुसाया नहीं कि उनके कान खड़े हो जाते हैं और सनातन धर्म पर बड़ा खतरा है यह चिल्लाने लगते हैं। सनातन धर्म पर सबसे बड़ा खतरा ये स्वयंभू रक्षक ही हैं। इन्हें सनातन का ककहरा ठीक से नहीं आता। इनसे सनातन धर्म की आत्मा उपनिषदों के नाम पूछ लेंगे तो बगलें झांकने लगेंगे। सनातनी भाषा संस्कृत के पांच प्रमुख श्लोक बोलने के लिए कह दोगे तो इनका सिर झुक जाएगा। इन्हें दस प्रमुख सनातन ग्रंथों के बारे में जानकारी नहीं है। इनकी हालत ऐसी ही है जैसी अधिकांश गौ रक्षकों की है। उन्हें रोज सडक़ों पर पॉलिथीन खाकर ट्रकों के नीचे आकर मरती हजारों गायों की कोई चिंता नहीं है लेकिन यदि किसी अल्पसंख्यक के हाथ में गाय की रस्सी दिख जाएगी तो उसे नेस्तनाबूद करने के लिए सिकंदर बन जाएंगे चाहे उसकी मंशा दूध के लिए गाय पालने की ही क्यों न हो।
ताजा मामला तमिलनाडु के सत्ताधारी दल के बडबोले नेता उदयनिधि स्टालिन के बयान का है जिन्हें दादा की राजनीतिक विरासत मिलने और मुख्यमंत्री पिता की कृपा बरसने से माननीय मंत्री बनने का मौका मिला है। बगैर मेहनत मशक्कत किए रेवड़ी की तरह मिले उच्च पद से कोई व्यक्ति संस्कारवान नहीं होता वही हालत उदयनिधी की है जिसने जिम्मेदार पद पर रहते हुए निहायत गैर जरूरी, गैर जिम्मेदार और हेट स्पीच की हद में आने वाला बयान दिया है। तमिलनाडु में उनकी और उनके पिता की सरकार है इसलिए वहां की पुलिस से सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देश के बावजूद उनके खिलाफ किसी कार्यवाही की उम्मीद नहीं की जा सकती।अमित शाह आदि भारतीय जनता पार्टी के तमाम नेताओं ने उदयनिधि स्टालिन के बहाने पूरे विपक्षी गठबंधन को ही सनातन धर्म और संस्कृति के खिलाफ बताकर इसे बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की है। खुद को आहत महसूस कर कुछ सनातनियों ने उदयनिधि के खिलाफ शिकायत भी दर्ज कराई है। संभव है भाजपा शासित राज्यों में उन पर आई पी सी की विभिन्न संगीन धाराओं में एफ आई आर भी दर्ज हो जाएं। ऐसे भी समाचार हैं कि किसी सिरफिरे साधू टाइप के व्यक्ति ने दस कदम आगे बढ़ कर उदयनिधि के सिर काटने वाले को दस करोड़ का ईनाम भी घोषित कर दिया।अभी तक इस तरह के फतवे कुछ आतंकी इस्लामिक संगठन से जुड़े लोग ही किया करते थे लेकिन अब खुद को सबसे श्रेष्ठ, शांतिप्रिय और सर्व समावेशी मानने वाले सनातन धर्म में भी ऐसे कट्टरपंथियों की संख्या बढ़ रही है।
पुरानी कहावत है कि कभी कभी लापरवाही के कारण बाड खेत की रक्षा करने की बजाय खेत खाने लगती है। यह तब होता है जब बाड़ का खरपतवार अनियंत्रित होकर खेत में घुसने लगता है और फ़सल को नष्ट करने लगता है। कुछ ऐसा ही हाल सनातन धर्म के तथाकथित स्वयंभू रक्षकों का हो गया। अब वे ख़ुद सनातन धर्म के लिए खतरा बन रहे हैं। अपनी ऊल जलूल हरकतों और भडक़ाऊ बयानबाजी से युवाओं को बरगला रहे हैं। ऐसे लोग न ख़ुद सनातन धर्म के नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को मानते हैं और न युवा पीढ़ी को संस्कारवान होने दे रहे हैं। आत्मा की आवाज सुनने वाले सनातन धर्म को पाखंडों और आडंबरों के शोर शराबे में दफन कर रहे हैं। इनका मकसद भी वैसा ही राजनीतिक हंगामा खड़ा करना है जैसा उदयनिधि जैसों का है। उदयनिधि भी वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं और भाजपा के नेताओं का भी वही मकसद है। देश और सनातन धर्म की सूरत बदलना दोनों का मकसद नहीं है। प्रबुद्ध नागरिकों का कर्तव्य है कि वे जनता को इनके मकसद से आगाह करें। सनातन धर्म की यही सबसे बडी सेवा होगी।