संपादकीय
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देश की एक सबसे बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी एलएंडटी के मुखिया अनिल मणिभाई नाइक इस कंपनी में 58 बरस काम करने के बाद अब 81 बरस की उम्र में यहां से हट रहे हैं। न तो यह कंपनी अधिक चर्चा में रहती, और न ही अनिल नाइक का नाम अधिक जाना हुआ है। लेकिन उनके बारे में कुछ बातें जानना हिन्दुस्तान के उन लोगों के लिए दिलचस्प हो सकता है जो किसी मामूली कामयाबी के बाद शान-शौकत की जिंदगी जीने लगते हैं। गुजरात में एक शिक्षक पिता के घर पैदा होने के बाद उन्होंने परिवार में गांधी के आदर्शों पर चलना सीखा। इंजीनियर बनने के बाद मुम्बई आकर लार्सन एंड टुब्रो कंपनी में काम करना शुरू किया। पिछले 21 बरस में उन्होंने एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली, हर दिन 15 घंटे काम किया। कुछ लोगों के लिए यह जानना दिलचस्प हो सकता है कि उनके कार्यकाल में ही इस कंपनी का मार्केट कैप चार हजार करोड़ से बढक़र 4.1 लाख करोड़ रूपए हो गया। 670 रूपए महीने पर नौकरी शुरू करने वाले नाइक को अभी महज छुट्टियां न लेने के एवज में 19 करोड़ रूपए मिले हैं। अभी उनकी संपत्ति चार सौ करोड़ से ज्यादा है, और 2016 में उन्होंने अपनी 75 फीसदी संपत्ति दान दे दी थी। 2022 में 142 करोड़ रूपए दान दिए थे। और निजी जिंदगी की सादगी ऐसी है कि वे कंपनी की बोर्ड मीटिंग में भी टी-शर्ट पहनकर चले जाते हैं, उनके पास कुल आधा दर्जन शर्ट, 3 सूट, और दो जोड़ी जूते हैं। उन्होंने जिंदगी में कभी क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल नहीं किया, और कोई डिजिटल भुगतान नहीं किया। अपने दादा और पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए वे अधिक से अधिक दान देने में भरोसा करते हैं। कंपनी में उनका उतना सम्मान है कि वे आने वाले कई बरस तक इस कंपनी के मझले दर्जे के लोगों के मार्गदर्शक और सलाहकार का काम करते रहेंगे। कारोबारी दुनिया में कंपनी की साख इतनी अच्छी है कि अनिल नाइक को पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था।
किसी कारोबारी के बारे में इस कॉलम में लिखने के अधिक मौके नहीं आते हैं, लेकिन हिन्दुस्तान में कई ऐसे बड़े कामयाब कारोबारी हैं जिन्होंने कानून तोड़े बिना बड़ी कमाई की है, और उसका बड़ा हिस्सा दान भी किया है। अनिल नाइक एलएंडटी में वेतनभोगी मुखिया रहे, और जाहिर है कि अडानी-अंबानी जैसे लोगों के मुकाबले वे दौलत के मामले में कुछ भी नहीं थे, लेकिन अपनी कुछ सौ करोड़ की जायदाद का एक तीन चौथाई हिस्सा दान में देकर उन्होंने एक नई मिसाल कायम की है। देश में कुछ और ऐसे उद्योगपति-कारोबारी रहे। एचसीएल के संस्थापक शिव नाडर ने 2022 में 1161 करोड़ रूपए दान दिए। विप्रो के अजीम प्रेमजी ने 484 करोड़ रूपए दान दिए। मुकेश अंबानी ने 411 करोड़ और कुमार मंगलम बिड़ला ने 242 करोड़ दान दिए। इसके बाद सुष्मिता और सुब्रत बागची (213 करोड़), राधा और एनएस पार्थ सारथी (213 करोड़), गौतम अडानी (190 करोड़), अनिल अग्रवाल (165 करोड़), नंदन निलेकेणि (159 करोड़), और अनिल नाइक (142 करोड़) दानदाताओं की टॉपटेन की लिस्ट में आते हैं।
न सिर्फ अधिकांश संपत्ति को दान दे देना, बल्कि सादगी से जीना, यह एक बड़ी और अलग किस्म की मिसाल है। आज पैसे कमाने के मामले में अमिताभ बच्चन और सचिन तेंदुलकर, विराट कोहली, और धोनी अनिल नाइक के मुकाबले कई गुना बड़े होंगे, लेकिन उनका दान अमूमन सुनाई नहीं देता। अडानी और अंबानी का जितना बड़ा साम्राज्य है, उसके मुकाबले उनका दान भी ऊंट के मुंह में जीरे सरीखा है। ऐसे में अमरीका के कुछ उद्योगपतियों की याद आती है जिनमें माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स और वारेन बफे जैसे लोग हैं जिन्होंने अपनी आधी संपत्ति दान करने की घोषणा की है, और उसे वे तरह-तरह की समाजसेवा में करते चल रहे हैं। बहुत से कामयाब कारोबारियों का यह मानना है कि दौलत कमाने का अपना एक मजा रहता है लेकिन एक सीमा के बाद उस दौलत को दूसरों में बांटने का एक मजा रहता है। अभी भारत में आर त्याग राजन की एक खबर सामने आई जिन्होंने श्रीराम फाइनेंस नाम से भारत के ट्रक-ट्रैक्टर, और दूसरी गाडिय़ां खरीदने वाले लोगों को बिना किसी गारंटी फाइनेंस करना शुरू किया था, और अब 86 बरस की उम्र में वे अपना घर और एक कार छोडक़र बाकी सारी कंपनी कर्मचारियों के बीच बांट दे रहे हैं। उन्होंने पूरी जिंदगी कमजोर तबके के लोगों को लोन दिया, और अब 6 हजार करोड़ से अधिक की कंपनी वे कर्मचारियों में बांट दे रहे हैं। गारंटी न दे पाने वाले छोटे लोगों को लोन देने का उनका तजुर्बा हमेशा अच्छा रहा, और उनकी कंपनी भी लगातार आगे बढ़ती चली गई। 1974 में शुरू यह कंपनी अपने क्षेत्र की एक सबसे कामयाब कंपनी है, और बहुत अमीर परिवार में बड़े होने के बाद भी वे वामपंथी-समाजवादी सोच के साथ छोटे लोगों को खतरा उठाकर लोन देने का कारोबार करते रहे। वे पूरी जिंदगी बड़ी सादगी से रहे, और अभी भी उनका कहना है कि उनके कोई अधिक खर्च नहीं है। वे एक छोटे से घर में रहते हैं, 6 लाख रूपए की मामूली कार में चलते हैं। वे एक मोबाइल फोन भी नहीं रखते। उनकी कंपनी में आज एक लाख से अधिक कर्मचारी हैं, और बिना गारंटी वाले लोगों को कारोबारी गाडिय़ों के लिए कर्ज देना जारी है, और श्रीराम समूह में अब 30 अलग-अलग कंपनियां हैं।
इन कुछ मिसालों को सामने रखने का एक मतलब यह भी है कि जो लोग अंधाधुंध खर्च और शान-शौकत के पीछे भागते हैं, वे यह बात भी समझ लें कि जिंदगी में शान-शौकत का महत्व एक हद तक ही रहता है, और असल शान की बात सादगी में रहकर लोगों के काम आना है। जिन लोगों के पास दूसरों को दान करने लायक नहीं है, वे भी सादगी में रहकर दूसरों के कुछ न कुछ काम तो आ ही सकते हैं। दूसरी तरफ जिनके पास कुछ है, वे अनिल नाइक या अजीम प्रेमजी से अपनी तुलना किए बिना अपनी क्षमता से लोगों के काम आ सकते हैं। बात सोच की रहती है, आकार की नहीं। किसी जायदाद का आकार बहुत बड़ा हो, लेकिन दान की नीयत बहुत छोटी हो, और वह भी सिर्फ पीएम केयर्स जैसे फंड के लिए पैदा होती हो, तो फिर यह आज की यह बात उन लोगों के लिए नहीं है। यह बात उनके लिए है जो आज की अपनी सीमित क्षमता के बीच भी दूसरे जरूरतमंद लोगों की छोटी-छोटी मदद कर सकते हैं।