विचार / लेख

चंदन कुमार जजवाड़े
साल 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दलों के गठबंधन में सीटों के बँटवारे पर चर्चा शुरू हो चुकी है।
इसके लिए इंडिया गठबंधन को दिल्ली जैसे राज्य में भी सीटों का बँटवारा करना है, जहाँ यह काम महज दो दलों के बीच होगा।
वहीं बिहार जैसे राज्य में भी विपक्ष को साझेदारी के लिए सीटों का बँटवारा करना होगा, जहाँ राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों की ‘महागठंबंधन’ की सरकार पिछले करीब एक साल से सत्ता में है।
बिहार में बना महागठबंधन ही वह बुनियाद है, जिस पर राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी विरोधी दलों का ‘इंडिया’ गठबंधन बना है।
माना जाता है कि जिस राज्य में विपक्षी गठबंधन में जितने ज़्यादा सहयोगी दल होंगे, वहां सीटों की साझेदारी में उतनी ही मुश्किलें आ सकती हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव करीब एक साल से विपक्ष की एकता बनाने के मुहिम में लगे हुए थे।
बाद में लालू प्रसाद यादव के बीमार पडऩे और सिंगापुर जाने के बाद इस मोर्चे को नीतीश और लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने संभाला था।
अब लालू और नीतीश कुमार पर ही बिहार की लोकसभा की 40 सीटों के बँटवारे की जिम्मेदारी भी है। ख़ास बात यह है कि बिहार में सीटों पर समझौते से देश भर में ‘इंडिया’ के सहयोगी दलों को एक रास्ता मिल सकता है।
कांग्रेस और वाम दलों की मांग
बिहार में सीटों के बँटवारे का काम बेहद चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।
अगले साल के लोकसभा चुनाव में सीटों के बँटवारे पर कांग्रेस अपनी उम्मीदें कई बार ज़ाहिर कर चुकी है।
बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद अखिलेश सिंह कहते हैं, ‘कांग्रेस की अपेक्षा यही होगी कि जहाँ हमारा मज़बूत जनाधार है, जहाँ से बड़े नेता चुनाव लड़ते रहे हैं, वो सारी सीटें नीतीश जी और लालू जी कांग्रेस के लिए छोड़ें। कांग्रेस ‘इंडिया’ गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है और हमें उचित जगह मिलनी चाहिए।’
माना जाता है कि कांग्रेस अगले साल के लोकसभा चुनावों में साझेदारी के तहत बिहार में कऱीब 9 सीटें चाहती है। साल 2019 के लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस ने इतनी ही सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे।
इसी तरह सीटों के बँटवारे को लेकर सीपीआईएमएल ने आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव को अपना प्रस्ताव भेज दिया है।
सीपीआईएमएल के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने बीबीसी को बताया है, ‘मुंबई की बैठक में इस बात की भी चर्चा थी कि केंद्र सरकार लोकसभा के चुनाव समय से पहले करा सकती है। ऐसे में हमें सीटों के बँटवारे पर भी काम शुरू कर देना है।’
दीपांकर भट्टाचार्य का मानना है कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव पूरे विपक्ष के लिए खऱाब रहे थे, उन चुनावों में बिहार की 40 में से 39 लोकसभा सीटें एनडीए ने जीती थीं।
इसलिए उस आधार पर सीटों का बँटवारा नहीं हो सकता। बल्कि सीटों का बँटवारा साल 2020 के विधानसभा चुनावों के प्रदर्शन के आधार पर हो सकता है।
सीपीआईएमएल ने सीटों के बँटवारे को लेकर अपना प्रस्ताव आरजेडी के पास भेज दिया है। इसमें उसने अपने लिए कितनी सीटों की मांग की है, इसकी आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है, लेकिन दीपांकर भट्टाचार्य इशारों में इसका संकेत दिया है।
उनका कहना है कि साल 2020 के विधानसभा चुनावों में मगध, शाहाबाद, सिवान, गोपलगंज और छपरा जैसे इलाक़े में ‘महागठबंधन’ का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा था।
उस वक्त जेडीयू महागठबंधन में नहीं थी और हमारा स्ट्राइक रेट अच्छा था। इसी के आधार पर सीपीआईएमएल ने अपना प्रस्ताव आरजेडी को भेजा है।
बात बिगडऩे की आशंका
राजनीतिक मामलों के जानकार और पटना के एएन सिंहा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर कहते हैं, ‘पहले लगता था कि सीटों का बँटवारा मुश्किल होगा, लेकिन अब ऐसा नहीं है। विपक्षी गठबंधन में सीटों के बँटवारे का सिद्धांत तय हो गया है और सभी दलों में समझदारी आई है।’
डीएम दिवाकर के मुताबिक जिस पार्टी की जहाँ मौजूदगी है, वहाँ से उसके उम्मीदवार मैदान में होगें, इसके अलावा पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रहने वाली विपक्षी पार्टी को इस बार उस सीट से टिकट मिलना चाहिए।
ये बातें सैद्धांतिक तौर पर तो सही दिखती हैं लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव के परिणाम पर गौर करें तो मामला बहुत सरल नहीं दिखता है।
उन चुनावों में बीजेपी ने 18 और एलजेपी ने 6 सीटों पर चुनाव लड़ा था। जाहिर है, इसमें जेडीयू दूसरे नंबर पर कहीं नहीं थी। इसलिए उन सीटों पर समझौते में थोड़ी सहूलियत हो सकती है।
वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी कहते हैं, ‘इस वक्त सभी विपक्षी दलों का लक्ष्य एक है और सबको उसे भेदना है। साल 2015 के विधानसभा चुनावों में भी यही सवाल उठा था कि सीटों का बँटवारा किस तरह से होगा, लेकिन यह बहुत आसानी से हो गया था। मुझे लगता है कि सीटों के बँटवारे में अभी भी कोई परेशानी नहीं होगी क्योंकि सभी विपक्षी परेशान हैं और सबको पता है कि यही मौक़ा है।’
कन्हैया भेलारी का मानना है कि मांग चाहे जो जितनी सीटों की कर ले, मांग करने से कोई किसी को रोक नहीं सकता। लेकिन यह तय है कि गठबंधन के तौर पर एक सीट पर विपक्ष का एक ही उम्मीदवार होगा।
जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार का भी मानना है कि इस वक्त सभी विपक्षी दलों को अहसास है कि उन्हें साल 2024 में बीजेपी को हराना है, इसलिए सीटों के बंटवारे में कोई परेशानी नहीं होगी और सीटों के बँटवारे में कोई परेशानी नहीं होगी।
नीरज कुमार कहते हैं, ‘इंडिया’ गठबंधन के नेता सक्षम हैं। सीटों के बँटवारे के मामले में बिहार रोल मॉडल बनेगा। सबको अपने सांगठनिक और राजनीतिक परिस्थिति में एक-दूसरे की भावना का सम्मान करना ही है और बिहार के मुख्यमंत्री इसके पक्ष में रहे हैं कि सबका सम्मान हो।’
बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद अखिलेश सिंह भी दावा करते हैं कि सीटों के बँटवारे में कोई मुश्किल नहीं होगी, सभी पार्टियों के नेता समझदार हैं, अभी यह शुरुआती दौर है और एकाध महीने में यह काम हो जाएगा।
कहाँ फँस सकता है मामला
दरअसल, सीटों के बँटवारे के लिहाज से साल 2019 के लोकसभा चुनाव और साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम में कई पेच फंसे हुए हैं।
पिछले लोकसभा चुनावों में किशनगंज की एक मात्र सीट कांग्रेस के खाते में गई थी जबकि बीजेपी ने 17, जेडीयू 16 और एलजेपी ने 6 सीटों पर कब्जा किया था।
साल 2020 के विधानसभा चुनावों में महागठबंधन में जेडीयू शामिल नहीं थी और इसमें वामपंथी पार्टियों का प्रदर्शन बेहतर रहा था। उन चुनावों में सीपीआईएमएल ने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था और इसमें 12 सीटों पर उसकी जीत हुई थी।
जबकि कांग्रेस ने साल 2020 के विधानसभा चुनावों में 70 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे, जिनमें 19 की जीत हुई थी। इस लिहाज से सीपीआईएमएल का दावा कांग्रेस के लगभग बराबर ही बैठता है।
डीएम दिवाकर का मानना है कि सीटों के बँटवारे को लेकर सभी पार्टियों को अपना अहम छोडऩा होगा। लगातार दो बार लोकसभा चुनाव हारने के बाद विपक्षी दलों को इसका अहसास है कि अगर अब हारेंगे तो परेशानी और भी ज़्यादा बढ़ेगी। इसलिए सबको यथार्थवादी रवैया अपनाना होगा।
साल 2019 के पिछले लोकसभा चुनाव में जेडीयू ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 16 पर जीत दर्ज की थी। उस वक़्त बीजेपी के साथ समझौते का भी जेडीयू को फ़ायदा हुआ था। ऐसे में उन सीटों पर दूसरे नंबर पर रहने वाले ‘इंडिया’ के सहयोगी दल भी अब अपना दावा पेश कर सकते हैं।
साल 2019 लोकसभा चुनाव
कांग्रेस की एक सीट पर जीत, 8 सीटों पर दूसरे नंबर पर
इनमें 5 सीटों पर फिलहाल जेडीयू का कब्जा
7 सीटों पर जेडीयू पहले और आरजेडी दूसरे नंबर पर थी
जहानाबाद सीट को जेडीयू करीब 1100 वोट से ही जीती थी
जहानाबाद में आरजेडी दूसरे नंबर पर रही थी
आरा में सीपीआईएमएल दूसरे नंबर पर जबकि बेगूसराय में सीपीआई दूसरे नंबर पर
मुश्किल सीटें
दीपांकर भट्टाचार्य ने बीबीसी को बताया है कि जेडीयू फिलहाल चाहती है कि पहले पुराने ‘महागठबंधन’ में सीटों को लेकर बात तय हो जाए क्योंकि उसमें जेडीयू शामिल नहीं थी, उसके बाद इस पर जेडीयू के साथ चर्चा होगी और इसे अंतिम रूप दिया जाएगा।
लेकिन आरजेडी, जेडीयू और वामपंथी दलों के लिए सीटों के बँटवारे को अपने स्तर पर अंतिम रूप देना आसान नहीं दिखता है।
मसलन कोसी-सीमांचल की सुपौल लोकसभा सीट पर साल 2019 में जेडीयू ने 56त्न वोट के साथ जीत दर्ज की थी।
इस सीट पर कांग्रेस की रंजीता रंजन ने करीब 30त्न वोट हासिल किए थे। रंजीत रंजन इलाके की बड़ी नेताओं में मानी जाती हैं।
रंजीता रंजन कांग्रेस की राज्यसभा सांसद हैं और पहले लोकसभा सांसद रह चुकी हैं। ऐसे में साझेदारी के तहत सुपौल सीट पर किस पार्टी को चुनाव लडऩे का मौक़ा मिलेगा, यह देखना दिलचस्प होगा।
इसी इलाके की कटिहार सीट पर साल 2019 में जेडीयू ने 50त्न वोट के साथ कब्जा किया था, लेकिन यहां से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तारिक अनवर ने भी 44त्न वोट हासिल किए थे।
जाहिर है उस वक्त जेडीयू को बीजेपी के साथ होने का फायदा मिला था। ऐसे में कटिहार सीट पर किसके दावे को मजबूत माना जाएगा?
इसी इलाके की पूर्णिया लोकसभा सीट भी जेडीयू ने 54त्न वोट से साथ जीती थी, जबकि कांग्रेस यहां 32त्न वोट के साथ दूसरे नंबर पर थी।
इस मामले में आरजेडी और जेडीयू के बीच भी पिछले लोकसभा चुनाव की लड़ाई काफी दिलचस्प थी। उन चुनावों में जहानाबाद लोकसभा सीट पर जेडीयू ने कब्जा किया था, लेकिन आरजेडी उस वकत करीब 1100 वोट से हारी थी।
यही हाल सीतामढ़ी, मधेपुरा, गोपालगंज, सिवान, भागलपुर और बांका लोकसभा सीटों का है, जहां साल 2019 में जेडीयू की जीत हुई थी, जबकि आरजेडी दूसरे नंबर पर थी।
साल 2019 में शत्रुघ्न सिंहा कांग्रेस से चुनाव लडक़र दूसरे नंबर पर रहे थे, अब वो कांग्रेस छोड़ चुके हैं। दूसरी तरफ पटना साहिब और बेगूसराय जैसी लोकसभा सीटें भी हैं, जिसे बीजेपी ने जीता था। पटना साहिब से कांग्रेस के शत्रुघ्न सिन्हा दूसरे नंबर थे, जो अब कांग्रेस छोड़ टीएमसी में शामिल हो गए हैं।
वहीं बेगूसराय सीट पर सीपीआई के टिकट पर कन्हैया कुमार दूसरे नंबर पर थे, जो अब कांग्रेस में शामिल हो गए हैं।
पिछले दिनों मुंबई में हुई विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की बैठक के बाद लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि अपना कुछ नुक़सान करके भी वो ‘इंडिया’ को जिताएंगे।
इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि पिछले लोकसभा चुनावों में आरजेडी को किसी सीट पर जीत नहीं मिली थी, इसलिए फिलहाल उसे समझौते में अपनी जीती हुई कोई सीट नहीं छोडऩी पड़ेगी।
सीटों के इस समझौते के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर सबकी नजऱ रहेगी।
नीतीश विपक्षी एकता की कोशिश में लगे हुए थे और अब हो सकता है कि इसके लिए उन्हें अपनी कुछ सीटों की क़ुर्बानी देनी पड़े और इसकी राजनीतिकि प्रतिक्रिया भी दिलचस्प हो सकती है। (bbc.com/hindi)