विचार / लेख

-विजय शंकर सिंह
एक संगठित गिरोह के झूठे प्रचार, आधुनिक कला के व्याकरण की समझ से विरत मूढ समाज, भारतीय पौराणिक संदर्भों, तात्त्विकता से अनभिज्ञ लोग और नाम से मुसलमान होने के कारण नफ़रत का आसान लक्ष्य बने मक़बूल फ़िदा हुसैन जैसे विश्व प्रसिद्ध कलाकार को हमने अपने व उसके ही देश से निकाल कर जघन्य अपराध किया। भारत में पिछले साठ बरसों में आधुनिक एवं समकालीन चित्रकारी को दुनिया की नज़र में लाकर बाज़ार में बिकने योग्य जिस कलाकार का एकमात्र योगदान है उसके लिये ऐसा सुलूक !
हुसैन अकेले ऐसे समकालीन चित्रकार हुए जिन्होने डॉ० लोहिया की प्रेरणा और उनके धनाढ्य अनुयायी बदरी विशाल पित्ती की मदद से हैदराबाद में रह कर सैंकड़ों चित्र रामायण और महाभारत पर बनाये । रामायण और महाभारत के अध्ययन के बग़ैर यह कैसे संभव हो सकता था और निजी चर्चा में लोहिया से रामायण महाभारत पर नई दृष्टि के साथ। बैलगाड़ियों पर लाद लाद कर गाँवों में रामलीला के मंचों को अपने चित्रों से सजाने के लिए ले जाते थे। जब दुनिया की नज़र हुसैन पर पड़ी तो हाथ में कूची लिये नंगे पांव भटकने वाला फ़क़ीर रातों रात एक चित्र को करोड़ों रु में बेचने लायक़ हो गया। वैश्विक नीलामी घर हुसैन के एक एक चित्र को लेने के लालायित हो गये।
कनॉट प्लेस की पहली मंज़िल पर एक असाध्य सुंदर युवती आर्ट गैलरी चलाती थी नीचे भूतल पर दक्षिण भारतीय रेस्तराँ खुला और नंगे पाँव हुसैन इडली खाने पहुँच गये, देखा कि दीवारें सफ़ेद पुती हैं और नंगी हैं। पास की दुकान से काला रंग लेने चले गये। तब तक भीड़ और रेस्तराँ मालिक पहचान चुका था। हुसैन ने पूछा कि दीवारें रंग दूँ ?
मालिक ने हां कही और बस इडली खाने के बाद एक घंटे से कम समय में पूरी दीवारें हुसैन से भरपूर हो गयी और वो रेस्तराँ कभी ख़ाली नहीं रहा । हुसैन की फ़ीस एक प्लेट इडली रही। ऐसे हज़ारों क़िस्से हुसैन की दिलदारी के लोगों की जुबान पर हैं। इस रेस्तराँ मे लोग हुसैन की कलाकारी को देखने भी आते और इडली दोसा भी खाते।
अमीरजादों से पूरा वसूलना भी किया हुसैन ने । सैकड़ों करोड़ रु में कतर के एक महलनुमा भवन की छत पर चित्र बना दिये लेकिन हुसैन सब पैसा लुटा देते थे। बचाते कभी नहीं थे। जब करोडों आया तो मेहमानों को लाने के लिये भी बुगाटी कार जाती थी, एक वो खुद चलाते थे लेकिन यह सब निर्वासन में किया। हुसैन को आख़िर में भारत की मिट्टी भी नसीब नहीं हुई।
रामायण महाभारत पर पौराणिक और भारतीय समाज पर चित्र बनाने वाले अप्रतिम अद्भुत फ़क़ीर पर दुर्भाग्यशाली ( समय साबित करेगा कि दुर्भाग्यशाली वास्तव में कौन रहा ? ) चित्रकार हुसैन की आज जन्मतिथि है। कोई नहीं मनाता ! वे कायर भी नहीं जिनके पूर्वजों पर हुसैन ने चित्र बनाकर कैनवास पर अमर कर दिया था। वे भी नहीं जो हुसैन के कारण आज अरबपति बने बैठें हैं और वे भी नहीं जो पचास साल राज कर आज पंथनिरपेक्षता की खोखली बातें करते हैं , जिनके अखंड राज में हुसैन निर्वासित कर दिये गये।