विचार / लेख

-डॉ. आर.के. पालीवाल
पिछले कुछ समय से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के कुछ बड़े नेताओं ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सम्मान में जब तब कुछ विशेष मुद्दों पर सकारात्मक बोलना शुरू किया है। हालांकि उनकी नीतियों, उद्देश्यों और कार्यकलापों में समग्र गांधी विचार और दर्शन की झलक नगण्य ही दिखती है। इसीलिए काफ़ी प्रबुद्ध जनों का मानना है कि यह गांधी का महिमा मंडन न होकर कुछ मुद्दों पर गांधी के नाम का सहारा लेने की चालाकी है। एक तरफ चुनाव का माहौल है और दूसरी तरफ केन्द्र सरकार के पास जी 20 की अध्यक्षता के वर्ष में अपनी वैश्विक छवि चमकाने के लिए गांधी से बेहतर कोई दूसरी भारतीय विभूति नहीं है इसलिए ऐसा हो रहा है। यह इसलिए भी जरूरी लगता है क्योंकि हाल ही में केन्द्र सरकार के रेलवे विभाग ने उत्तरप्रदेश सरकार की मदद से गांधी विचार के प्रचार-प्रसार के सबसे बड़े संगठन सर्व सेवा संघ वाराणसी के परिसर में बुलडोजर चलाकर देश भर के गांधीवादियों को नाराज किया है। सरकार से गांधीवादियों की नाराजगी इंटरनेट युग में धीरे धीरे देश के बाहर भी पहुंच रही है। इसकी काट के लिए यह जरूरी है कि सरकार द्वारा ऊपरी तोर पर ही सही गांधी को याद किया जाए।
प्रधानमंत्री गांधी स्मृति और दर्शन समिति के अध्यक्ष हैं इस नाते समिति परिसर में गांधी प्रतिमा एवम वाटिका निर्माण का लोकार्पण हाल ही में राष्ट्रपति के करकमलों से हुआ है। शायद यह भी उस कलंक की छाया से बाहर आने का प्रयास है जो प्रधानमंत्री के अति प्रिय रेल मंत्रालय और उत्तर प्रदेश की डबल इंजन सरकार ने मिलकर प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में सर्व सेवा संघ के परिसर पर भारी पुलिस बल की मौजूदगी में बुलडोजर चलाकर उनके माथे पर लगाया है। प्रधानमन्त्री इस कलंक से नहीं बच सकते क्योंकि यदि वे यह कहकर पल्ला झाड़ते हैं कि वे इस कार्यवाही से अनभिज्ञ थे तो एक सासंद के रुप में वे अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने में असफल होते हैं। सर्व सेवा संघ के पदाधिकारियों ने ध्वस्तीकरण के बाद प्रधानमंत्री को विशेष रूप से इसकी जानकारी भेजी है। उस पर भी उन्होंने कोई कार्यवाही नहीं की है। वे अपने ट्विटर अकाउंट पर केवल उन्हीं मुद्दों पर चर्चा करते हैं जिनसे उनकी छवि उज्ज्वल होती है। यही कारण रहा कि हिंसा की आग में जलते हुए मणिपुर पर उनकी चुप्पी ढाई महीने बाद तब टूटी थी जब उनकी चारों तरफ आलोचना हो रही थी और विपक्षी दलों ने संसद की कार्यवाही तब तक ठप्प करने की धमकी दी थी जब तक मणिपुर मुद्दे पर वे अविश्वास प्रस्ताव पर अपना वक्तव्य नहीं देते। प्रधानमंत्री को मीडिया और विपक्ष से इस तरह का परहेज लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है।
अब प्रधानमंत्री गांधी के नाम पर सनातन की राजनीति कर रहे हैं। मध्यप्रदेश के बीना में पेट्रोकेमिकल प्लांट के उद्घाटन पर वे जिस रथ में सवार हुए उसमें उनके साथ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के अलावा मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी थे। इस सरकारी आयोजन में भी उन्होंने सनातन धर्म के मुद्दे पर गांधी का नाम लेकर पूरे विपक्षी गठबंधन को घसीट लिया। उन्होंने कहा कि गांधी आजीवन सनातनी रहे और अंतिम समय में उन्होंने हे राम कहा और अब इंडिया गठबंधन उसी सनातन धर्म को तोड़ रहा है। प्रधानमंत्री शायद यह याद करना नहीं चाहते कि महात्मा गांधी जिस सनातन धर्म को मानते थे वह सर्व समावेशी धर्म था जिसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि दुनिया के सब धर्म बराबर सम्मान के साथ शामिल थे। गांधी का सनातन धर्म वह हिंदू धर्म नहीं था जिसके नाम पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी राजनीति करते हैं। अगर विपक्षी गठबंधन में शामिल एक दल के युवा नेता द्वारा सनातन धर्म के उन्मूलन की बात कही है तो इसका यह मतलब नहीं कि पूरा गठबंधन ऐसा मानता है। इसलिए प्रधानमंत्री से ऐसी उम्मीद नहीं कर सकते कि वे किसी ऐसे मुद्दे को राई का पहाड़ बनाएं और पहाड़ जैसे बड़े मुद्दों पर चुप्पी साध लें।