विचार / लेख

-डॉ. आर.के. पालीवाल
अखबारी विज्ञापनों में भले ही मध्य प्रदेश सरकार के कितने ही चमकीले दावे हों, बीस साल सत्ता की रिर्पोट कार्ड पुस्तिका में चाहें उसने कितने ही सेहरे अपने नाम बांधे हों लेकिन मध्य प्रदेश सरकार के लिए आने वाले विधान सभा चुनाव में जमीनी स्थितियां काफी कठिन हैं। पिछ्ले तीन साल में कई कारणों से एंटी इनकंबेंसी फैक्टर काफ़ी ऊंचा उठा है। एक तो मध्य प्रदेश में भाजपा द्वारा नैतिकता और लोकतांत्रिक मूल्यों को दरकिनार करते हुए जनता द्वारा कांग्रेस को सौंपी गई सत्ता का अपहरण किया गया था और दूसरे भाजपा के अंदर भी सत्ता में भागीदारी को लेकर पहले से ही कई खेमों के साथ ज्योतिरादित्य के साथ भाजपा में प्रवेश पाए कांग्रेसियों का एक और नया वर्ग बन गया है। इन विषम परिस्थितियों में भाजपा के डूबते जहाज के लिए महत्वाकांक्षी लाडली बहना योजना तिनके का सहारा बन सकती है।
राजनीतिक विश्लेषकों के लिए यह देखना दिलचस्प रहेगा कि क्या लाडली बहना योजना के प्रभाव से महिलाएं अपनी स्वतंत्र अभिव्यक्ति भाजपा को वोट के रुप में दिखा पाएंगी। यह विश्लेषण भी किया जाना चाहिए कि क्या तीन तलाक कानून के बाद मुस्लिम समुदाय की महिलाओं ने केन्द्र में मोदी सरकार को परिवार के पुरुषों से अलग होकर वोट दिया है! और क्या उज्जवला योजना के कारण हुई सुविधा की बदौलत महिलाओं ने धर्म और जाति से आगे बढक़र भाजपा को वोट दिया है! क्या महिला सशक्तिकरण के नाम पर एक तिहाई महिला सरपंचों ने अपने पतियों को किनारे खड़े कर स्वतंत्र रूप से पंचायतों के काम संभाल लिए हैं! यदि इन सब प्रश्नों के उत्तर नहीं हैं तब शिवराज सिंह चौहान का गरीब महिलाओं को वोट के लिए लुभाने का लाडली बहना योजना दांव उल्टा पड़ सकता है।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि किसानों को केन्द्र से आर्थिक सहायता मिलने के बावजूद ज्यादा किसानों का वोट भाजपा को नहीं मिला अन्यथा भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा के गृह प्रदेश हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में भाजपा को सत्ता से बेदखल नही होना पड़ता क्योंकि दोनों राज्यों में किसानों की काफी बडी आबादी है। मध्य प्रदेश में सडक़ों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। नेशनल हाईवे के अलावा अधिकांश स्टेट हाईवे और ग्रामीण सडक़ों की कई साल से मरम्मत नहीं हुई है। भोपाल नगर निगम क्षेत्र की भोजपुर और जैन मंदिर जाने वाली प्रमुख सडक़ तक जर्जर है। सरकारी कर्मचारियों की उन्नतालिस सूत्रीय मांगों के लिए सामूहिक अवकाश पर जाना लोकसेवकों की नाराजगी का पुख्ता सबूत है। व्यापम की छाया अभी खत्म नहीं हुई और पटवारी भर्ती परीक्षा को गम्भीर धांधली के आरोपों के बाद स्थगित करना इस बात को इंगित करता है कि मध्य प्रदेश में नकल माफिया और घोटालेबाज काफी सक्रिय हैं।
प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के मामले में भी एनजीटी द्वारा प्रदेश के मुख्य सचिव को लगाई फटकार और प्रदेश सरकार पर लगाए पांच लाख रुपए के ऐतिहासिक जुर्माने से पता चलता है कि प्रदेश के प्रशासन की स्थिति चिंताजनक है।
यदि लाडली बहना योजना के कारण मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार की वापसी होगी तो इसके मध्य प्रदेश और देश की राजनीति पर व्यापक असर होगें जिसका प्रभाव 2024 के लोकसभा चुनावों पर भी पड़ेगा। महिलाओं की आधी आबादी चुनावों को प्रभावित करने वाले एक बड़े वर्ग के रुप में उभरेगी जो निकट भविष्य में किसी धर्म,जाति, क्षेत्र और विशेष विचारधारा के वोट बैंक से भी अधिक प्रभावी हो सकता है। इसी तरह भविष्य में रेवड़ी कल्चर भारतीय लोकतंत्र का सबसे प्रभावी मुद्दा बन सकता है जो राष्ट्र के लिए निश्चित रूप से नुकसानदायक साबित होगा लेकिन सत्ता लोलुप राजनीतिक दलों के लिए सत्ता शीर्ष पर पहुंचने के लिए सबसे सुगम और आकर्षक पगडंडी बन सकता है।