संपादकीय

विधानसभा चुनाव सामने है और राजनीतिक दल चुनाव प्रचार के तरीके ढूंढते ही रहते हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर विपक्ष को एक कल्पनाशीलता का मौका दे रही है, लेकिन ध्रुवीकरण की राजनीति, और नफरत के मुद्दों ने कल्पनाशीलता को खत्म कर दिया है। राजधानी में कांग्रेस का महापौर है, और शहर की सडक़ों पर गड्ढों को लेकर भाजपा ने कल विरोध दर्ज कराया है। कहने के लिए यह राजधानी आए दिन प्रधानमंत्री, केन्द्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, और देशी-विदेशी मेहमानों की आवाजाही से घिरी हुई है, लेकिन सडक़ों का हाल इतना भयानक है जितना कि पिछले 50 बरस में कभी नहीं था। तकरीबन हर सडक़ खुदी पड़ी है, कहीं पाईप तो कहीं केबल के लिए सडक़ों को खोदा गया है, और बाकी जगहों पर गड्ढे पड़े हुए हैं। नतीजा यह है कि हड्डी-पसली की किसी तकलीफ वाले मरीज को लेकर कहीं से कहीं नहीं जाया जा सकता। इन गड्ढों में गाडिय़ां रोज पलट रही हैं, कांक्रीट की सडक़ें बनाई जाती हैं, और कुछ महीनों के भीतर उन्हें खोद दिया जाता है। जाहिर है कि यह कंस्ट्रक्शन-माफिया की मर्जी से चलने वाला काम है जो कि कभी खत्म ही नहीं होता। लेकिन इस बार जो हालत है, वह आधी सदी में इस राजधानी में कभी नहीं रही।
अब दो महीने के भीतर यहां चुनाव होने हैं, और भाजपा को विरोध करने के बजाय अपने कार्यकर्ताओं को दुपहियों पर राजधानी की चार सीटों के वोटरों को शहर घुमाने ले जाना चाहिए, और घंटे भर अगर कोई दुपहिए या चौपहिए पर इन सडक़ों पर घूम ले, तो वे न सिर्फ इस चुनाव बल्कि अगले कुछ चुनाव भी सत्तारूढ़ पार्टी को वोट न दे। भाजपा के पास पर्याप्त कार्यकर्ता हैं, और वे अभी अपने-अपने इलाके के वोटरों को गणेशोत्सव दिखाने के लिए ले जा सकते हैं। बिना भाजपा या कमल छाप का नाम लिए यह सबसे बड़ा प्रचार हो सकता है कि कांग्रेस के राज वाली म्युनिसिपल ने शहर का क्या हाल कर रखा है। यह त्यौहारों और बाजार की खरीददारी का मौसम है, और इस वक्त कदम-कदम पर जिस तरह गड्ढे हैं, जिनमें लोग रात-दिन गिर रहे हैं, वह देखना भी भयानक है।
भाजपा के सामने प्रचार का एक और मौका हो सकता है। शहर के कई इलाकों में जिस अंदाज में दुकानों के बाहर सडक़ों पर अवैध कब्जे करके कारोबार किया जा रहा है, भाजपा को राजधानी की चारों सीटों के वोटरों को इन बस्तियों का दौरा भी करवाना चाहिए ताकि वे देख लें कि शहर के कुछ हिस्सों का क्या हाल है और वहां किस तरह कोई भी कानून लागू नहीं होता है। लेकिन बात घूम-फिरकर फिर इसी पर आती है कि जब तक भाजपा किसी को उम्मीदवार घोषित न करे, रोज दसियों हजार रूपए का पेट्रोल ऐसे मतदाता पर्यटन पर कौन खर्च करे? और जब उम्मीदवार घोषित हो जाएंगे, तो उस वक्त ऐसे काम के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं के पास वक्त नहीं रहेगा। भाजपा को चाहिए कि वह परंपरागत बयानबाजी के बेअसर धंधे को छोड़े, और वोटरों को उन्हीं के शहर की बदहाली दिखाने का ठोस काम शुरू करे। प्रदेश में अलग-अलग जगहों से निकली हुई भाजपा की परिवर्तन यात्रा चार दिन बाद राजधानी रायपुर पहुंचने वाली है, और उसकी सबसे बड़ी तैयारी यही हो सकती है कि तब तक इन चारों विधानसभा सीटों के अधिक से अधिक वोटरों को सडक़ों के धक्के खिला दिए जाएं, और कुछ चुनिंदा बाजारों और बस्तियों की अराजकता शाम से देर रात तक कभी भी ले जाकर दिखा दी जाए। इससे अधिक मजबूत चुनाव प्रचार भाजपा के लिए और कुछ नहीं हो सकता है।
छत्तीसगढ़ में ऐसा लगता है कि दोनों बड़ी पार्टियों के बीच अभी कोई मुकाबला ही नहीं है। कांग्रेस रात-दिन हर मिनट चुनाव प्रचार में लगी है, वह जनधारणा गढऩे में लगी है, और जनधारणा प्रबंधन में भी। दूसरी तरफ भाजपा दिल्ली की तरफ देखते हुए बैठी है कि वहां से आकाशवाणी पर कौन सा आदेश आता है, कब आता है। छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं में खुद पहल करके कुछ करने का उत्साह दिख नहीं रहा है, और जिस तरह केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह का आना दो-दो बार रद्द हो चुका है, उससे भी राज्य के भाजपा नेता और अधिक दुविधा में आ गए हैं कि उन्हें कुछ करना चाहिए या चुप घर बैठना चाहिए। हर गुजरता हुआ दिन भाजपा की इस दुविधा के साथ उसे किसी भी संभावना से दूर धकेल रहा है। पर्दे के पीछे और जमीन के नीचे इस पार्टी की तैयारियों की बड़ी-बड़ी कहानियां सुनाई पड़ती हैं, लेकिन जमीन पर कुछ नहीं दिखता।
चुनाव तैयारी के मामले में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी भाजपा से कोसों आगे चल रही है, वह सत्ता पर भी है, इसलिए उसका बहुत सा चुनाव प्रचार तो सरकारी कार्यक्रमों से भी होते रहता है। पिछले विधानसभा चुनाव में, और उसके बाद के उपचुनावों में कांग्रेस और भाजपा के बीच जिस तरह का फासला हो चुका है, उसे पाट पाना वैसे भी बड़ा मुश्किल काम है। ऐसे में दिल्ली से नियंत्रित होती छत्तीसगढ़ भाजपा जिस तरह टूटे मनोबल के साथ हिचकती और झिझकती हुई दिख रही है, वह जंग के मुहाने पर खड़ी सेना जैसी बिल्कुल नहीं है। किसी पार्टी की जीत या हार से हमारा कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन अगर किसी शहर या प्रदेश की बदहाली महीनों से चली आ रही है, तो उसका इस्तेमाल विपक्ष को इसलिए भी करना चाहिए कि हो सकता है कि जनता की दिक्कतें उसे एक आक्रामक चुनावी मुद्दा बनाने से दूर हो सकें।
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