विचार / लेख

जीवन इन भावनाओं से नरक
26-Sep-2023 3:42 PM
जीवन इन भावनाओं से नरक

  सिद्धार्थ ताबिश

क्या आप जानते हैं कि बुद्ध ने कभी मांसाहार का विरोध नहीं किया? न उन्होंने मना किया और न ही ये कहा कि खाओ.. बुद्ध का ये मानना था कि उनके भिक्षा पात्र में जिस किसी ने भी जो कुछ भी डाल दिया है, वो उन्हें खाना है.. फिर वो चाहे मांस हो, या दाल हो.. अपने जीवन के अंतिम समय तक बुद्ध ने मांस खाया.. जो आजकल वाले शाकाहारी हैं वो शायद इस बात से परेशान हो जाएँ.. मगर बुद्ध का ये मार्ग पूरी तरह से ‘प्राकृतिक’ था.. बुद्ध ‘संवेदनशील’ नहीं थे आपकी तरह.. बुद्धत्व प्राप्त होने से पहले उनके भीतर संवेदनाएं थीं, पीड़ा थी और दु:ख था.. मगर बुद्धत्व के बाद उनके भीतर कोई संवेदना नहीं बची थी.. क्यूंकि संवेदनाएं और कुछ नहीं बल्कि ‘भावनाएं’ होती हैं और बुद्ध के भीतर भावनाएं नहीं ‘उबाल’ मारती थीं हमारे और आपकी तरह। कोई भी बुद्ध पुरुष ‘भावनाओं’ से परे होता है। भावनाओं से परे होना ही बुद्ध होना होता है।

आप इसे थोड़ा समझिये कि कैसे आपका जीवन इन भावनाओं के कारण नरक बना हुआ है। आपकी और हमारी भावनाएं और संवेदनाएं प्राकृतिक नहीं होती है, ये इस समाज और भाषा द्वारा गढ़ी गयी होती है.. कोई शायर आपको माँ की गज़़ल सुना कर माँ के प्रति अथाह प्रेम से भर देता है, कोई फि़ल्म आपको परिवार और रिश्तों के प्रति अति भावुक कर देती है.. कोई किताब आपको अपने प्रेमी के प्रति अत्यधिक भावुक बना देती है और वो आपको ये सिखा देती है कि आपको कहाँ कब और कैसे अपने ‘पार्टनर’ का ध्यान रखना चाहिए, क्यूंकि उस किताब के हिसाब से वही प्यार होता है.. कोई गुरु आपको आपके माता पिता की सेवा के प्रति अति भावुक बना के आपको उन्हें अपने कन्धों पर लटका कर तीर्थयात्रा पर ले जाने के लिए मजबूर कर देता है। कोई व्यक्ति किसी नौजावान को पहले जानवरों के अत्याचार की कहानी सुना कर शाकाहारी बनता है, फिर पशुवों के क़ैद की कहानी सुना कर वीगन, फिर वनस्पतियों में जीवन का वैज्ञानिक साक्ष्य देकर केवल पेड़ से गिरे फल खाने पर मजबूर कर देता है। ये सारी संवेदनशीलता आपकी समाज गढ़ता है। आपकी भावनाओं को भडक़ाकर आपके भीतर संवेदनशीलता तैयार की जाती है

बुद्ध जैसों के सामने आप माँ की, बेटे की, पत्नी की कितनी शायरी सुना दें, कितनी भी फि़ल्में आप उन्हें दिखा दें, कितना भी पशुवों पर अत्याचार की डाक्यूमेंट्री दिखा दें, वो बस मुस्कुरा देंगे और कुछ नहीं.. वो आपसे इन सब बेवकूफियों पर कोई वार्तालाप भी नहीं करेंगे, वो बस ये कहेंगे कि आओ मेरे पास बैठो और ध्यान करो। तुम भी इन सब भावनाओं से निकल जाओगे।

भावुकता और संवेदनशीलता अगर आपको एक पशु बचाने के लिए प्रेरित करती है तो यही भावुकता उस पशु के लिए इंसानों को मारने के लिए भी प्रेरित करती है। भावुकता यदि सारी दुनिया में शांति और सद्भावना का झंडा बुलंद करने की बात करती है तो फिर यही भावुकता उनको दण्डित भी करने को बोलती है जो आपकी शांति और सद्भावना में दखल दे रहे होते हैं। संवेदनशील परिवार आपको बचपन से शाकाहार की ट्रेनिंग देता है फिर आप बड़े होकर जब दूसरों को मांस खाता देखते हैं तब आप उन मांसाहारियों से नफरत करने लगते हैं और अगर भावनाएं और ज़्यादा उबाल अगर मारती हैं तो आप उन्हें सख्त से सख्त सज़ा देने पर उतारू हो सकते हैं.. आप पशु से प्रेम करते हैं और इंसानों से नफरत करने लगते हैं क्यूंकि ये होना ही है, यही इसका नियम है।

हम मनुष्यों की सारी समस्याओं की जड़ भावना और उस पर आधारित संवेदनशीलता है.. इसे अगर आप समझ गए तो आपका जीवन को देखने का नजरिया बदल जाएगा।

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