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टिकट के लिए संत की सिफारिश
टिकट के लिए कई नेता साधु-संतों की शरण चले जाते हैं। कांग्रेस हो या भाजपा, प्रभावशाली साधु-संतों की सिफारिश को तवज्जो भी देती है। सुनते हैं कि भाजपा में टिकट के दो दावेदार के लिए देश के एक नामी संत की सिफारिश आई है।
संतजी विश्वविद्यालय भी संचालित करते हैं, और चर्चा है कि पीएम भी उन्हें काफी मानते हैं। बताते हैं कि दावेदारों में से एक तो पूर्व में विधायक भी रह चुके हैं। इससे परे एक अन्य दावेदार ने कार्यक्रमों में काफी कुछ खर्च किया था, और पार्टी के रणनीतिकारों ने उन्हें प्रॉमिस भी किया था। मगर पिछले दिनों एक प्रभावशाली नेता के पार्टी में प्रवेश के बाद उन्हें अपनी दावेदारी कमजोर लगने लगी है। इसके बाद वो भी संतजी के शरण में चले गए।
कहा जा रहा है कि संतजी का फोन आया, तो यहां रणनीतिकार हड़बड़ा गए हैं। उनकी सिफारिश को नजरअंदाज करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। देखना है कि पार्टी क्या रास्ता निकलता है।
नोट को खोट माने या नहीं?
नोटों के बंडल के साथ कैमरे में कैद होने के बाद चंद्रपुर के कांग्रेस विधायक रामकुमार यादव की टिकट को लेकर उलझन पैदा हो गई है। पार्टी का प्रभावशाली खेमा उन्हें फिर टिकट देने के लिए दबाव बनाए हुए है। रामकुमार ने अपने खिलाफ षडय़ंत्र का आरोप लगाकर थाने में रिपोर्ट भी लिखाई है। बावजूद इसके पार्टी संगठन के प्रमुख नेता उनसे सहमत नहीं हो पा रहे हैं।
चर्चा है कि प्रदेश प्रभारी सुश्री सैलजा ने नोट प्रकरण की पूरी जानकारी ली है। कुछ नेताओं का मानना है कि रामकुमार को टिकट देने से खराब मैसेज जाएगा। जीत की संभावना कमजोर हो सकती है। चाहे कुछ भी हो, रामकुमार की टिकट को लेकर पार्टी के दो खेमा आमने-सामने आ गया है। देखना है आगे क्या होता है।
रमन सिंह वायदा करते भी तो कैसे?
सिंधी समाज के कई नेता, पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह से नाखुश हैं। ये नेता मंगलवार को पूर्व सीएम से मिलने गए थे। शंकर नगर सिंधी पंचायत के ये सदस्य पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी को टिकट देने की वकालत कर रहे हैं। मगर पूर्व सीएम की तरफ से कोई आश्वासन नहीं मिला। इस पर सिंधी पंचायत के एक सदस्य ने फेसबुक पर अपना दुख बयां किया। उसने लिखा कि समाज के अग्रणी मुखीगण, और महिलाओं के साथ 70 लोग पूर्व सीएम के बंगले पहुंचे थे।
पूर्व सीएम से मिलने के लिए करीब 1 घंटा इंतजार करना पड़ा। किसी ने पानी तक नहीं पूछा। फिर भी डॉ. रमन सिंह का फूल माला पहनाकर स्वागत किया गया। मगर पूर्व सीएम ने विचार का भी आश्वासन नहीं दिया। इससे समाज के लोग अपमानित महसूस कर रहे हैं। हालांकि पार्टी के कई नेता मानते हैं कि पार्टी में कोई भी नेता टिकट को लेकर ठोस आश्वासन देने की स्थिति में नहीं है। हाईकमान सर्वे रिपोर्ट, और अन्य समीकरण को देखकर टिकट तय कर रही है। ऐसे में किसी एक नेता को टारगेट करना उचित नहीं है।
भाजपा का चर्च पर्यटन
भाजपा इस चुनाव में सर्व समाज के लिए सर्वस्पर्शी होना चाह रही है। मोदी मित्र जहां मुस्लिम जमात में सक्रिय कर दिए गए हैं तो मसीही समाज को भी बेहतर तरीके से साधने की ओर कदम बढ़ा लिया है। पहले सरगुजा में मसीही समाज के अपने बड़े चेहरे प्रबोध मिंज को पिछले कार्यकाल में महापौर बनाया तो इस बार उन्हें लुंड्रा से बी- फार्म दिया जा रहा है। भाजपा को लगता है कि सरगुजा का मसीही समाज सध गया। अब बात राजधानी और आसपास की करें तो ईसाई समुदाय के एक प्रमुख नेता नितिन लारेंस को भी ऑफर दिया गया है । चर्चा है कि नितिन जल्द ही भाजपा प्रवेश कर सकते हैं। नितिन को दिल्ली बुलावा भी आया है।
नितिन अभी मसीही समाज की प्रदेश स्तरीय धार्मिक सामाजिक संगठन रायपुर डायसिस के सचिव हैं। युवा हैं, समाज में अच्छी छवि है। हालांकि कोई राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं है। लेकिन नितिन का संघ के बड़े भाईसाहबों से संपर्क है। जबलपुर के मॉडरेटर पीसी सिंह और पुत्र की गड़बडिय़ों को उजागर करने में उनकी अहम भूमिका रही। भाजपा में आते हैं तो पार्टी की क्रिश्चियन विरोधी छवि सुधरकर आकर्षण बढ़ेगा। अब बात सरकार बनने पर नितिन के ओहदे पर करें तो युवा आयोग, अल्पसंख्यक आयोग आदि आदि तो हैं ही। वैसे भाजपा पहले भी खेल पत्रकार जयवंत क्लाडियस को पहले सदस्य और फिर कार्यवाहक अध्यक्ष बना चुकी है। नितिन को लेकर समाज में भी चर्चाएं चल रही है। कोई पक्ष में तो कोई विपक्ष में कह सुन रहा है।
मेहमान चले गए, कचरा रह गया
सफाई के लिए आम लोगों से यूजर चार्ज, समय समय पर अर्थदंड वसूलने वाले निगम से भला कौन वसूले। इस कचरे को साफ करने में ढिलाई के लिए। जी-20 सम्मेलन के मेहमानों को सहभागिता दिखाने ऐसे होर्डिंग शहर में जगह जगह लगाए गए । इसमें निगम, स्मार्ट सिटी कंपनी ने बड़ी रकम खर्च की। ये अलग बात है कि सम्मेलन के प्रतिनिधि इन्हें देखने आए ही नहीं। उन्हें किसी यह बताया भी नहीं होगा कि आपके स्वागत में शहर सजाया गया है। वे सभी आलीशान रिजॉर्ट से ही वापस लौट गए। और 10 दिन बाद भी ये होर्डिंग तालाब से मरीन ड्राइव के नामधारी तेलीबांधा तालाब के किनारे पड़े हुए हैं। यह हाल निगम की उस मशीनरी का है जहां से रोजाना सैकड़ों सफाई वैन मोर रायपुर, स्वच्छ रायपुर का गाना बजाते निकलते हैं।
बैठे-ठाले की गप्पबाजी
छत्तीसगढ़ चुनावी दौर से गुजर रहा है। आम लोग ऑटोरिक्शा में बैठते ही चुनाव सर्वे के काम में लग जाते हैं, और ड्राइवर से चुनावी हाल पूछने लगते हैं कि कौन सी पार्टी जीतेगी। कुछ किलोमीटर बाद जब वे उतरते हैं, तब तक वे अपने को राजनीतिक विश्लेषक भी मान लेते हैं। जाहिर है कि ऐसे माहौल में सरकारी अमले से लोग जानना चाहते हैं कि कौन सी पार्टी अगली सरकार बनाएगी।
सरकारी अमले के कुछ पुराने और जानकार लोगों का कहना है कि जब चुनाव दूर रहता है, तब तो उनके पास यह कहने की गुंजाइश रहती है कि अभी तो चुनाव दूर है, अभी तो उम्मीदवारों के नाम भी नहीं आए हैं। लेकिन बाद में उन्हें कुछ न कुछ अंदाज लोगों को बताना पड़ता है, और जैसे-जैसे चुनाव करीब आता है, पहले तो वे सत्तारूढ़ पार्टी को जिताते रहते हैं, फिर और करीब आता है तो वे टक्कर की बात कहने लगते हैं, और मतदान के बाद मतगणना के पहले तक वे विपक्ष की सरकार बनने का आसार बताने लगते हैं।
बाहर से आने वाले, और प्रदेश के भीतर के पत्रकार भी अनायास मिले लोगों से पूछकर चुनावी भविष्यवाणी के विशेषज्ञ बन जाते हैं, और कुछ गिने-चुने लोगों की कही हुई बातों से वे बड़े-बड़े नतीजे निकाल लेते हैं। इन सबमें सर्वे की बुनियादी तकनीक का ख्याल रखना तो मुमकिन होता नहीं है जिसके मुताबिक किस तरह के कितने लोगों से किस तरह के सवाल करने पर मिलने वाले जवाबों से कोई नतीजा निकाला जा सकता है।
इसलिए खाली बैठे हुए गप्प मारने के लिए तो इस तरह की बातें ठीक हैं, लेकिन इन बातों से कोई नतीजा नहीं निकालना चाहिए।