संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मणिपुर को समझने की कोशिश हैरान करने वाले कई सवाल खड़े करती है
28-Sep-2023 4:14 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मणिपुर को समझने की कोशिश हैरान करने वाले कई सवाल खड़े करती है

फोटो : सोशल मीडिया

मणिपुर में हिंसा की ताजा घटनाएं बड़ी फिक्र खड़ी करती हैं। एक तरफ तो देश के बहुत से तबकों से यह मांग आ रही है कि वहां के भाजपा के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को हटाया जाए। मांग तो राष्ट्रपति शासन की भी आ रही है, लेकिन केन्द्र सरकार की मुखिया भाजपा है, और मणिपुर में भी भाजपा का राज है, इसलिए शायद राजनीतिक असुविधा का ऐसा कोई फैसला लेने से केन्द्र सरकार कतरा रही है। तीन मई से शुरू हुए मैतेई और कुकी जनजाति के बीच हिंसक संघर्ष में अब तक 175 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, और आधा लाख से अधिक लोग अपने घरों से बेदखल हो चुके हैं। केन्द्र सरकार ने वहां सेना भी तैनात कर दी है, लेकिन राज्य की पुलिस सेना के साथ कई मोर्चों पर टकराव लेते दिख रही है। ऐसे कई वीडियो भी सामने आए हैं जिनमें राज्य की पुलिस फौज को चले जाने को कह रही है। हफ्ते भर में मणिपुर में हिंसा शुरू हुए डेढ़ सौ दिन हो जाएंगे, और ऐसे कोई संकेत नहीं हैं कि वहां हिंसक तनातनी में कोई भी कमी आई हो, या शांति की कोई संभावना बनी हो। फौज और सुरक्षाबलों की असाधारण मौजूदगी की वजह से नए टकराव कम हो रहे हैं, लेकिन आज भी इतने टकराव तो जारी हैं कि राजधानी इम्फाल में पुलिस के गिरफ्तार किए हुए लोगों को छुड़ाने के लिए महिलाओं की भीड़ लेकर लोगों ने थानों पर पत्थरों से हमले किए। यह कार्रवाई उन लोगों को छुड़ाने के लिए की जा रही थी जिन्हें पुलिस की वर्दी में अवैध हथियार लेकर चलते हुए गिरफ्तार किया गया था। और हालत यह है कि मणिपुर की अदालत ने ऐसे तनावभरे राज्य में पुलिसवर्दी में अवैध हथियार लेकर चलते लोगों को आनन-फानन जमानत भी दे दी। ऐसी खबरें हैं कि ये लोग वहां की सत्ता के करीबी और पसंदीदा मैतेई समुदाय के लोग थे और थाने को भीड़ के हमले से बचने के लिए आंसू गैस के गोले भी दागने पड़े, कुछ पुलिसवाले जख्मी भी हुए। ऐसा भी कहा जा रहा है कि पुलिस की वर्दी में हथियार लेकर चलने वाले ऐसे लोगों को वहां पर पुलिस कमांडो कहा जाता है, और वे कुकी आदिवासी समुदाय पर हमला करने वाली भीड़ का हिस्सा रहते हैं। 

इस बात को ठीक से समझने की जरूरत है कि मणिपुर में गैरआदिवासी, शहरी मैतेई समुदाय को आदिवासी-आरक्षित तबके में शामिल करने की हाईकोर्ट की एक सिफारिश के तुरंत बाद से वहां हिंसा शुरू हो गई थी, क्योंकि ऐसी कोई सिफारिश लागू होने पर आदिवासी-आरक्षित तबके के सारे हक मारे जाते। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी यह पाया कि हाईकोर्ट की सिफारिश सही नहीं थी, और उसे ऐसा करने का कोई हक भी नहीं था, यह उसके अधिकार क्षेत्र के बाहर की बात थी। लेकिन इसके तुरंत बाद से जो तनाव वहां चल रहा है उसमें एक बात साफ है कि कुकी आदिवासी तबका, जो कि ईसाई है, उसका कोई भी भरोसा राज्य की बीरेन सिंह सरकार पर नहीं है। कुकी नेता बार-बार यह बोल चुके हैं कि बीरेन सिंह के मुख्यमंत्री रहते हुए किसी तरह की शांति नहीं आ सकती। यह मामला आदिवासी और गैरआदिवासी से शुरू हुआ, लेकिन यह सवर्ण-हिन्दू और ईसाई-आदिवासी तबकों के बीच टकराव में तब्दील हो गया। मई के महीने में ही केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह तीन दिन मणिपुर रहकर लौटे, लेकिन उससे कोई समाधान नहीं निकल सका। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 75 से अधिक दिनों तक जुबान पर मणिपुर शब्द भी लेकर नहीं आए, और संसद के बाहर मीडिया के कैमरों पर उन्होंने पहली बार मणिपुर तब कहा जब सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को इस पर नोटिस जारी किया, और सत्र शुरू हो रहा था। 

ऐसे हालात वाले मणिपुर में ताजा खबर यह है कि वहां सेना को खास हिफाजत देने वाले एक कानून आफस्पा को चुनिंदा इलाकों में छह महीनों के लिए बढ़ा दिया गया है। लोगों को याद होगा कि हिन्दुस्तान के इतिहास में महिलाओं के नग्न प्रदर्शन की अकेली घटना मणिपुर में ही इसी एक कानून के खिलाफ बरसों से चली आ रही है, और कुछ महीने पहले मणिपुर के कई इलाकों से इसे हटा भी दिया गया था। लेकिन अभी ताजा तनाव को देखते हुए यह कानून राज्य के मैतेई बहुल इलाकों के 19 थाना-क्षेत्रों को छोडक़र बाकी जगहों पर लागू किया गया है। जबकि राज्य में मारे गए पौने दो सौ लोगों में से 80 फीसदी मौतें इन्हीं इलाकों में हुई हैं। जिन लोगों को इस कानून की जानकारी नहीं है उनके लिए यह बताना काम का होगा कि जिन इलाकों में यह लागू किया जाता है वहां पर भारतीय सेना के सैनिकों को बिना वारंट कहीं भी जांच करने और किसी को भी गिरफ्तार करने का हक मिल जाता है, इसके अलावा किसी भी सैनिक पर केन्द्र सरकार की मंजूरी के बिना कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती। एक किस्म से यह लोकतंत्र की साधारण संवैधानिक व्यवस्था से ऊपर एक असाधारण व्यवस्था रहती है जिसमें राज्य के नागरिकों और वहां की सरकार या पुलिस के सामान्य अधिकार निलंबित रहते हैं। वे किसी भी फौजी ज्यादती के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकते। अब हैरानी की बात यह है कि मणिपुर में जिस तरह तनाव पूरे राज्य में फैला हुआ है, उसमें सिर्फ मैतेई बहुल इलाकों में आफस्पा लागू न करना, और कुकी-आदिवासी बहुल इलाकों में इसे लागू करना एक हैरान करने वाली बात है। ऐसी खबरें हैं कि प्रदेश के बहुत सारे प्रतिबंधित संगठन जो कि म्यांमार से हथियार पा रहे हैं, उनमें अधिकतर लोग मैतेई समुदाय के हैं, और वे घाटी के उन्हीं इलाकों से काम कर रहे हैं जहां पर आफस्पा नहीं लगाया गया है। अभी आई खबर बताती है कि इन इम्फाल में भाजपा ऑफिस को आग लगा दी गई है, भाजपा अध्यक्ष के घर पर हमला किया गया है, एक डिप्टी कलेक्टर के घर पर गाडिय़ां जला दी गई हैं, लेकिन इन इलाकों को शांतिपूर्ण घोषित किया गया है, और आफस्पा कानून से बाहर रखा गया है।  मतलब यह कि चीन और म्यांमार से जुड़े हुए संगठन और उनके लोग जिस इलाके से काम कर रहे हैं, उसे फौजी ताकत वाले इस कानून से बाहर रखा गया है। यह फैसला बहुत हैरान करता है, और आने वाले वक्त में अधिक जानकार लोग इसका बेहतर विश्लेषण कर सकेंगे। 

फिलहाल जो बात बिना किसी विवाद के साफ दिखती है, वह यह कि डेढ़ सौ दिनों में भी मणिपुर के भाजपा मुख्यमंत्री कुछ भी नहीं सुधार पाए हैं, और जनता के एक बड़े तबके का उन पर कोई विश्वास नहीं है। केन्द्र सरकार अपने तमाम सुरक्षाबलों और अपनी फौज के साथ मिलकर भी वहां हिंसा रोक नहीं पा रही है। और भारत म्यांमार सरहद पर बसा हुआ, रणनीतिक महत्व का यह राज्य एक अभूतपूर्व हिंसा और तनाव झेल रहा है। देखना होगा कि आने वाले दिनों में इतिहास वहां क्या दर्ज करता है। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news