संपादकीय
कनाडा की संसद के स्पीकर को अभी इस्तीफा देना पड़ा। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की पिछले हफ्ते वहां पहुंचे थे, और उनके स्वागत में स्पीकर एंथनी रोटा ने अपने शहर से एक यूक्रेनी अप्रवासी को आमंत्रित किया था, और उसे संसद में सबके सामने द्वितीय विश्वयुद्ध के एक हीरो की तरह पेश किया। स्पीकर के इस फैसले पर कनाडा के प्रधानमंत्री सहित तमाम सांसदों ने खड़े होकर तालियां बजाई थीं, और बाद में स्पीकर को पता लगा कि उस युद्ध में यह आदमी हिटलर की नाजी फौजों से जुड़ा हुआ था। हिटलर की फौजों से जुड़े हुए किसी भी तरह के लोग आज पूरी दुनिया में अछूत बने हुए हैं, और उन्हें युद्ध अपराधों के इतिहास से जोडक़र देखा जाता है। इस बात को लेकर कनाडा में इतना बवाल हुआ कि प्रधानमंत्री ने माफी मांगी और स्पीकर ने इस्तीफा दिया।
दरअसल दुनिया में जितने विकसित और सभ्य लोकतंत्र हैं, उनमें लोकतांत्रिक परंपराएं मजबूत रहती हैं, और उन्हीं की बुनियाद पर लोकतंत्र खड़ा होता है। वहां पर किसी तरह की नैतिक चूक होने पर लोग तुरंत ही इस्तीफा देते हैं। हिन्दुस्तान की तरह नहीं होता कि दर्जन भर लड़कियों के बलात्कार का आरोपी अदालत के कटघरे में भी खड़ा है, और संसद की कुर्सी पर भी बैठा है। इस देश की संसद में तो अभी हाल में एक धर्म के खिलाफ जिस तरह की गंदी नफरती, हिंसक गालियां दी गई हैं, उन पर पूरी संसद को शर्मिंदा होना था, लेकिन ऐसे सांसद का बाल भी बांका नहीं हुआ, और उसे उसकी पार्टी, केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने राजस्थान चुनाव में एक जिले का प्रभारी भी बनाकर भेजा है जहां 11 फीसदी मुस्लिम आबादी हैं। जाहिर है कि ऐसे आदमी को जिसके वीडियो देश भर में घूम रहे हैं, वह अगर ऐसे जिले में चुनाव प्रभारी बनाया जा रहा है, तो यह वहां पर वोटों के ध्रुवीकरण की एक कोशिश अधिक दिखती है। अब यह तो संसद चलाने वाले लोगों के अपने विवेक पर रहता है कि अपनी संसद पर लग रही कालिख से उन्हें शर्मिंदगी होती है, या वे संसद के कैमरों के सामने मुस्कुराते बैठे रहते हैं। यह नौबत लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है, और आज जो कनाडा भारत के साथ खालिस्तानियों के मुद्दे पर टकराव लेकर चल रहा है, उस कनाडा की संसद में अपनी चूक पता लगते ही बिना किसी मांग के उसके स्पीकर ने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने बिना जानकारी गलती से एक ऐसे आदमी का सम्मान कर दिया था जो कि नस्लवादी फौज के साथ जुड़ा हुआ था। हिन्दुस्तान की संसद में हाल ही में जितनी घटिया नस्लवादी गालियां सुनी हैं, उससे तो किसी को भी शर्म आई हो, ऐसा नहीं लगता है।
लोकतंत्र सिर्फ नियमों से बंधा हुआ नहीं चलता, नियम तो चोरों के बचने के काम आते हैं, अदालतों में मुजरिम उनमें छेद ढूंढकर बचते हैं, लेकिन अगर लोकतांत्रिक संस्थाओं के बड़े-बड़े ओहदों पर बैठे हुए लोग पेशेवर गवाहों और मुजरिमों की तरह यह कोशिश करते रहें कि नियम-कानून से बचा कैसे जा सकता है, तो ऐसा लोकतंत्र कभी विकसित नहीं हो सकता। विकसित और सभ्य लोकतंत्रों का हाल तो यह है कि एक अनैतिक संबंध का आरोप सामने आते ही पश्चिम के कई देशों में लोग इस्तीफा दे देते हैं। जरा से दूसरे आरोप लगते हैं, और लोग सार्वजनिक माफी मांगते हुए ओहदे से हट जाते हैं। दूसरी तरफ हिन्दुस्तान है जहां बलात्कार में पकड़ाए गए लोग भी चौड़ी मुस्कुराहट चेहरे पर लिए हुए, सिर पर पगड़ी डटाए हुए शान से घूमते हैं, और यह भविष्यवाणी भी करते हैं कि उनके बिना हिन्दुस्तान में यह खेल पिछड़ जाएगा, और टीम कोई मैडल लेकर नहीं आएगी। यह परले दर्जे का घटिया लोकतंत्र हो गया है जहां लोगों को देश के लोगों के अधिकार की कोई फिक्र करने की जरूरत नहीं रह गई है, और महज अपने कानूनी बचाव की कोशिश ही उनके लिए सब कुछ हो गई है।
आज हालत यह है कि देश में जगह-जगह शर्मिंदगी की वारदातें हो रही हैं, लेकिन देश-प्रदेश में जो लोग इनके लिए जिम्मेदार हैं, उनके माथे पर शिकन भी नहीं है, वे पहले की तरह ही मंचों पर विराजमान हैं, मालाओं से लदे हुए हैं, और माईक पर देश के लिए प्रेरणा की बातें करते रहते हैं। दरअसल इस पूरे देश में नैतिक और लोकतांत्रिक मूल्यों को इतना पतन हो चुका है कि बड़े से बड़े मुजरिम भी महज चुनाव जीत पाने, और वोट दिलवाने की ताकत के दम पर सत्ता और संगठन में इज्जतदार और वजनदार बने रहते हैं। जाहिर है कि ऐसा देश कभी सुरक्षित नहीं रह सकता। आम लोगों के परिवार तभी तक हिफाजत में हैं, जब तक ऐसे किसी ताकतवर की नीयत उन पर नहीं डोलती। मुजरिमों को बचाने के लिए देश-प्रदेश की सरकारें जितनी मेहनत करती हैं, उतनी मेहनत अगर वे जनकल्याण के काम करने में करतीं, तो देश का नक्शा बदल गया रहता। लेकिन अपने चहेते और पसंदीदा मुजरिमों को बचाने में लगे हुए हिन्दुस्तान के तथाकथित नेता और अफसर देश को बर्बाद कर चुके हैं। इनमें संसद का हाल आज सबसे ही भयानक दिख रहा है जहां पर कोई व्यक्ति नफरत की ऐसी बातें कहकर, ऐसी हिंसक धमकियां देकर बचा हुआ है जिन पर उसे दुनिया में कड़ी सजा मिल चुकी होती। आज भी अगर हिन्दुस्तान का यह सांसद किसी पश्चिमी विकसित देश में जाने का वीजा मांगे, तो उसे पता लग जाएगा कि वह सभ्य दुनिया के लिए किस हद तक अछूत है। कनाडा की घटना की चर्चा हमने इसलिए की है कि हिन्दुस्तान में जिन लोगों में संसद में रहते हुए भी जरा सी भी शर्म नहीं रह गई है, वे लोग अपनी इस नौबत को देख लें, और इसके बाद कनाडा की संसद को देखकर उससे कुछ सबक ले लें।