संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सिर्फ लड़कियों को दी गई सलाह को महिलाविरोधी मान लेना जायज नहीं है..
22-Oct-2023 3:46 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सिर्फ लड़कियों को दी गई  सलाह को महिलाविरोधी मान लेना जायज नहीं है..

कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपने एक ताजा फैसले में की गई टिप्पणी को लेकर देश के महिला अधिकारवादियों के बीच विरोध खड़ा करवा दिया है। दो पुरूष जजों की बेंच ने पॉक्सो के एक मामले में एक नाबालिग लडक़ी के सहमति से बनाए गए देह-संबंधों पर लड़कियों के लिए एक किस्म से नैतिकता की नसीहत दे डाली है। बड़ी अदालतों के बहुत से जज जब फैसले लिखते हैं तो उनमें कानून की न्यूनतम जरूरतों से परे जाकर अपने विचार खुलासे से लिखते हैं। इसमें कोई बुराई भी नहीं है, लेकिन इसमें की गई व्याख्या फैसले की गुणवत्ता से परे कभी-कभी विवाद खड़ा करती है। कुछ जज धर्म और जाति को लेकर मनुस्मृति की तारीफ पर उतर आते हैं, तो कुछ भारतीय संस्कृति में लडक़ी या महिला पर अतिरिक्त नैतिक दबाव बनाने लगते हैं। कलकत्ता हाईकोर्ट के इस फैसले ने जजों ने नाबालिग लडक़ी से उसकी सहमति से संबंध बनाने वाले उसके ही करीबी रिश्तेदार और बाद में बने पति को बरी कर दिया है। निचली अदालत ने इस नाबालिग लडक़ी के मामा को सहमति के देह-संबंधों पर भी लागू होने वाले पॉक्सो कानून के तहत  20 बरस की कैद सुनाई थी। इन संबंधों के चलते लडक़ी गर्भवती हो गई थी, बाद में उसकी शादी भी उसी मामा से हो गई, लेकिन मामला अदालत में जा चुका था, और वहां से उसे सजा हो गई। अब इस लडक़ी ने ही हाईकोर्ट में बयान दिया था कि वह अपने पति के बिना बीमार सास और छोटे बच्चे को लेकर अकेले घर नहीं चला पा रही है, इसलिए कैद भुगत रहे उसके पति को रिहा किया जाए। इन दोनों के इस बयान को भी हाईकोर्ट ने ठीक माना कि ये दोनों गांव में रहते थे, और इन्हें यह नहीं मालूम था कि नाबालिग देह-संबंध कोई जुर्म है। 

इस मामले में दोनों जजों ने यह सलाह दी है कि हर नाबालिग लडक़ी को अपनी सेक्स-भावनाओं को काबू में रखना चाहिए, और अपनी साख और अपने शरीर की हिफाजत करनी चाहिए। जजों ने फैसले में लिखा है कि नाबालिग लड़कियों को अपने अधिकारों और अपनी शरीर की रक्षा करनी चाहिए, अपनी गरिमा और आत्मसम्मान का ख्याल रखना चाहिए, और जेंडर बाधाओं को पार करते हुए अपने संपूर्ण विकास की कोशिश करनी चाहिए। जजों ने लिखा है कि समाज की नजरों में किसी नाबालिग लडक़ी के सेक्स के मजे को उसकी गरिमा खो देना मान लिया जाता है, इसलिए उसे अपना अधिक ख्याल रखना चाहिए। इसके साथ-साथ पुरूष नाबालिगों के लिए भी जजों ने कहा है कि उन्हें भी किसी लडक़ी या महिला का सम्मान करना सीखना चाहिए, उसके महत्व, गरिमा, और नीजता का ख्याल रखना चाहिए, और उसके शरीर पर उसके हक को समझना चाहिए। 

बहुत से महिला आंदोलनकारियों को यह बात खटक रही है, और कई लोग सोशल मीडिया पर यह लिख रहे हैं कि लड़कियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने के लिए अब जजों की ही जरूरत रह गई थी। 

हम इस फैसले को देखते हुए उनकी टिप्पणियों को सिर्फ आलोचना की नजर से नहीं देखेंगे, बल्कि भारतीय समाज में हकीकत के हिसाब से भी उन्हें तौलेंगे। यह सामाजिक हकीकत है कि लड़कियों के देह-संबंध उन्हीं के लिए अधिक खतरा रहते हैं। बराबरी का हक तो कानून की किताबों में लिखा गया है, लेकिन गर्भवती तो सिर्फ लड़कियां हो सकती हैं, बलात्कार अमूमन लड़कियों के साथ ही होता है, और देश में ब्लैकमेलिंग के मामले देखें तो उनमें से अधिकतर में लड़कियां ही अपनी तस्वीरों या वीडियो को लेकर ब्लैकमेल होती हैं। जब समाज का ढांचा ऐसा ही बना हुआ है, और जब कुदरत ने ही लड़कियों को गर्भवती होने की संभावना दी है जो कि किसी जबर्दस्ती के मामले में आशंका में भी तब्दील हो जाती है। इसलिए लडक़े और लड़कियों के शरीर और उन पर सामाजिक खतरों को अनदेखा करके सिर्फ इस बात को लेकर बागी नहीं होना चाहिए कि हाईकोर्ट जजों ने लड़कियों को ही यह नसीहत दी है। इस बात को कैसे अनदेखा किया जाए कि 21वीं सदी में भी समाज का नजरिया, उसके पैमाने लडक़ों और लड़कियों के लिए अलग-अलग हैं। 

कानून की किताबों में जेंडर की बराबरी जमीन पर नहीं उतरती है। आज भी हिन्दुस्तान में देह के धंधे में बिकने वाले बदनों में तकरीबन तमाम बदन लड़कियों और महिलाओं के ही हैं, तकरीबन तमाम बलात्कार उन्हीं से होते हैं, और सेक्स-अपराध के बाद गर्भवती होने का खतरा तो सौ फीसदी लड़कियों पर ही रहता है। इसलिए अगर लड़कियों को अधिक सावधान रहने की कोई सलाह दी जा रही है तो उसे लडक़ों को मनमानी करने के लाइसेंस सरीखा मान लेना ठीक नहीं है। हम इस तरह से चीजों को देखना नहीं चाहते कि किसी को दी गई सलाह उसका शोषण मान ली जाए, उस पर ज्यादती मान ली जाए। यह भारत के आज के समाज की सच्चाई को देखते हुए दी गई एक अच्छी सलाह है, और इसे शब्दों के साथ-साथ इसकी भावना और इसके पीछे की नीयत के साथ जोडक़र देखना चाहिए। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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