संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : असाधारण वक्ता महुआ अब असाधारण खतरे में..
25-Oct-2023 4:02 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  असाधारण वक्ता महुआ अब असाधारण खतरे में..

लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस की धुआंधार और धांसू बोलने वाली सांसद महुआ मोइत्रा इन दिनों एक अजीब सी मुसीबत में फंसी हुई हैं। उनके एक भूतपूर्व प्रेमी ने सीबीआई को यह शिकायत की है कि महुआ लोकसभा में अडानी के खिलाफ जितने सवाल करती थीं, उनके पीछे कारोबारी दुनिया में अडानी एक प्रतिद्वंद्वी, हीरानंदानी था। अब जब तक एक भूतपूर्व प्रेमी की यह बात कमजोर पड़ पाती, दुबई में बसे हुए इस हीरानंदानी ने खुद होकर वहां भारतीय कांउसलेट जाकर एक हलफनामा दिया कि अडानी के खिलाफ महुआ मोइत्रा को जानकारी देने का एक बड़ा काम उन्होंने भी किया, और वे महुआ की तरफ से लोकसभा में सीधे सवाल लगा सकें इसलिए महुआ ने संसद के अपने ईमेल बॉक्स को हीरानंदानी के हवाले कर दिया था, और वे भी कुछ सवाल बनाकर सीधे लोकसभा सचिवालय भेज देते थे। भाजपा के लिए इतने आरोप दशहरे पर महुआ का पुतला जलाने के लिए भी काफी थे, और उससे अधिक के लिए भी। पहली बार सांसद बनी यह तृणमूल नेता अडानी को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर भी असाधारण हमले कर रही थीं, और ऐसे में तमाम मोदीविरोधी, और अडानीविरोधी लोग महुआ के साथ हो गए थे। अब अगर यह सांसद इस दर्जे की लापरवाही या गलत काम की कुसूरवार साबित होती है, तो वह बहुत बड़ी बात होगी। भूतपूर्व प्रेमी और एक अलग वर्तमान कारोबारी, इन दोनों की शिकायत और हलफनामे में यह भी कहा गया है कि महुआ ने इस कारोबारी हीरानंदानी से अपने पर बहुत बड़े-बड़े खर्च करवाए थे। इसे संसद की एक कमेटी को दे दिया गया है जो यह जांच कर रही है कि क्या इसे सवाल पूछने के एवज में लिए गए अहसान, या ली गई रिश्वत की तरह देखा जाना चाहिए। ये दोनों ही बातें दो करीबी रह चुके लोगों के बागी तेवरों के साथ इस सांसद को बहुत कमजोर हालत में लाकर खड़ा कर रही है। 

अब तक महुआ मोइत्रा ने उन पर लगे हुए आरोपों को एक भूतपूर्व प्रेमी के जले दिल की आह करार दिया है, और कारोबारी हीरानंदानी को अपना दोस्त माना है। लेकिन इन दोनों ही लोगों ने लिखकर जो आरोप लगाए हैं उनके बारे में महुआ ने कुछ भी नहीं कहा है। उन्होंने जवाबी हमले में अडानी और दूसरे लोगों के खिलाफ लगे आरोपों की जांच पहले करने, और उसके बाद उन पर लगे आरोपों की जांच करने की बात कही है। चूंकि अपने खिलाफ लगे बहुत ठोस आरोपों पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है, कोई तथ्य पेश नहीं किए हैं, उनसे पहली नजर में ऐसा लगता है कि वे बहुत खोखली जमीन पर खड़ी हुई हैं, और अपने बचाव में कहने को उनके पास कुछ नहीं है, इसलिए वे हमलावर हो रही हैं। बहुत वक्त पहले किसी समझदार ने कहा था कि कई मौकों पर हमला ही सबसे असरदार बचाव होता है, महुआ आज वही कर रही है। खबरों पर अगर भरोसा करें, तो उनकी तृणमूल कांग्रेस ने भी उनके इस विवाद में उनके साथ खड़े होने से इंकार कर दिया है। धीरे-धीरे अगर ये आरोप सच साबित होते हैं, तो विपक्ष के मोडानी-विरोधी और मीडिया का मोडानी-विरोधी तबका भी महुआ का साथ छोडऩे को मजबूर हो जाएंगे। अडानी के अच्छे और बुरे काम देश की जांच एजेंसियों और अदालतों के प्रति जवाबदेह हैं, लेकिन संसद सदस्य संसद के प्रति जवाबदेह है। ऐसे में महुआ का जवाबी हमला खोखला है, और दूसरों की जांच के बाद उनकी जांच शुरू करने की उनकी मांग नाजायज है। 

देश की संसद देश की सबसे बड़ी पंचायत है, और इसके नीति-सिद्धांतों के खिलाफ अगर कोई सांसद सोच-समझकर काम करते हैं, तो उसे एक बड़ा जुर्म मानना चाहिए। लोगों के याद होगा कि कई बरस पहले कुछ सांसद सवाल पूछने के एवज में रिश्वत लेते स्टिंग ऑपरेशन में पकड़ाए थे। उन सबकी संसद सदस्यता खत्म कर दी गई थी, लेकिन उनके खिलाफ देश की अदालत कुछ नहीं कर पाई थी क्योंकि संसद को अदालती दखल से बाहर रखा गया है। अब कई बरस बाद उस मामले का भूत सुप्रीम कोर्ट में खड़ा हुआ है और अदालत में अभी यह बहस चल ही रही है। इस बीच महुआ का यह मामला सामने आने के पहले ही केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में अपना जवाब रखा है कि संसद और विधानसभा के सदस्यों को अदालती कार्रवाई से जिन संसदीय मामलों में हिफाजत हासिल है, उनमें भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत होने वाली कार्रवाई शामिल नहीं है। अभी इसी महीने पहले हफ्ते में सात जजों की एक संविधानपीठ के सामने केन्द्र सरकार ने कहा कि संसद और विधानसभा का विशेषाधिकार सांसदों और विधायकों को सदन के बाहर रिश्वत लेने पर कोई हिफाजत नहीं देता। हमारे नियमित पाठकों को याद होगा कि हम लगातार सांसदों के रिश्वत लेने के खिलाफ लिखते आए हैं, और यह वकालत करते रहे हैं कि उन्हें आपराधिक अदालती कार्रवाई से कोई छूट नहीं मिलनी चाहिए। 2005 में लोकसभा की एक विशेष कमेटी ने सवाल पूछने के लिए रिश्वत लेने वाले सांसदों की सदस्यता खत्म कर दी थी, लेकिन उन पर कोई आपराधिक मुकदमा नहीं चल पाया था। हम उस समय से लगातार इस बात की मांग करते आ रहे थे, और अब जाकर सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार यह रूख सामने रख रही है। 

महुआ मोइत्रा ने अपने असाधारण प्रभावशाली संसदीय प्रदर्शन के बावजूद अपने आपको एक ऐसी मुसीबत में डाल लिया है कि उसकी पुख्ता जांच के सिवाय उन्हें कोई रियायत नहीं मिल सकती। हमारा ख्याल है कि हर सांसद और विधायक को इस बात के लिए तैयार भी रहना चाहिए, क्योंकि यह लोकतंत्र उनके सवालों के लिए पूरे देश को जवाबदेह बनाकर रखता है। ऐसे सवालिया लोगों को खुद भी जवाबदेह होना चाहिए, कम से कम ऐसे आचरण के लिए जिसमें संसदीय विशेषाधिकार को तोहफों और उपकार के एवज में बेच देने के आरोप हों। यहां पर महुआ मोइत्रा का योगदान, या उनके लगाए गए आरोप महत्वहीन हो जाते हैं, और उनकी यह मांग बेतुकी है कि पहले उनके लगाए आरोपों की जांच हो, और फिर उनके खिलाफ आरोपों की जांच हो। जांच इस तरह रेलगाड़ी की डिब्बों की तरह आगे-पीछे नहीं चलती।

ऐसा लगता है कि महुआ मोइत्रा से या तो एक चूक हुई है, या उन्होंने गलत काम किया है, और इन दोनों ही किस्म की बातों के लिए वे संसद की कड़ी जांच की हकदार हैं। इससे बाकी तमाम लोगों को एक बात सीखने मिलती है कि जब देश के सबसे ताकतवर लोगों पर कोई हमला करना हो, तो अपने खुद के कामकाज साफ-सुथरे रखने चाहिए। दूसरी नसीहत यह मिलती है कि आज के दोस्त जब कल दुश्मन बनते हैं, तो वे नए दुश्मनों के मुकाबले कई गुना अधिक खतरनाक रहते हैं। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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