संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अमरीका में थोक में कत्ल, बाकी दुनिया के लिए एक अलग किस्म की नसीहत
26-Oct-2023 3:56 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अमरीका में थोक में कत्ल,  बाकी दुनिया के लिए एक  अलग किस्म की नसीहत

अमरीका में आज फिर एक बंदूकबाज ने सार्वजनिक जगह पर गोलीबारी करके 22 लोगों को मार डाला है, और 60 से अधिक लोग घायल हो गए हैं। अभी जब यह लिखा जा रहा है तब तक तस्वीरों में कैद यह हमलावर पकड़ में नहीं आया है, और इस शहर में लोगों को घरों में रहने कहा गया है। हर कुछ दिनों में अमरीका में इसी तरह बंदूक की हिंसा होती है, लेकिन उस पैमाने पर भी एक हमलावर के हाथों इतनी मौतें कुछ बड़ा आंकड़ा है। कुल 38 हजार आबादी का ल्यूइस्टन नाम का शहर वहां के मेन नाम के राज्य में है, और संदिग्ध हमलावर की तस्वीरों से वह एक गोरा दिखाई पड़ रहा है। लेकिन इससे अधिक जानकारी अभी सामने नहीं आई है। हमलावर ने 10 मिनट की दूरी की तीन जगहों, एक रेस्त्रां, और एक मनोरंजक खेल स्थल, और एक वॉलमार्ट इन तीन जगहों पर हमला किया है। हमलावर को सेना से जुड़ा हुआ हथियार-प्रशिक्षक बताया जा रहा है, जो कि कुछ अरसा पहले एक मानसिक चिकित्सालय में भर्ती था। पिछली बड़ी घटना मई 2022 में हुई थी जिसमें एक बंदूकधारी ने एक स्कूल में घुसकर गोलियां चलाई थीं, जिनमें 19 बच्चों, और 2 शिक्षकों की मौत हो गई थीं। 2022 और 2023 में हर बरस साढ़े 6 सौ या अधिक ऐसे हमले हुए हैं। 

आज का यह हमला नस्लवादी है या नहीं यह अभी साफ नहीं है, लेकिन अमरीका में ऐसे कई हमले नस्लवादी होते हैं, आमतौर पर काले लोगों, या अल्पसंख्यकों के खिलाफ होते हैं, या किसी भड़ास से भरे हुए लोग अपनी ही पिछली स्कूल या कॉलेज पर हमला करते हैं। हमलों के पीछे की कई किस्म की वजहें हैं, लेकिन लगातार ऐसे हमले होते हैं जिसे लेकर अमरीका के आज के राष्ट्रपति जो बाइडन फिक्रमंद रहते हैं, लेकिन वहां विपक्ष की रिपब्लिकन पार्टी नागरिकों के निजी हथियारों में किसी भी तरह की कमी के खिलाफ रहती है। दरअसल अमरीका में हथियार कारोबारियों का दबाव-समूह इतना मजबूत है कि वह किसी भी सरकार को हथियारों पर रोकथाम, या कटौती करने ही नहीं देता। सच तो यह है कि जहां-जहां रिपब्लिकन पार्टी के कार्यक्रम होते हैं, वहां सम्मेलन स्थल के आसपास हथियारों की प्रदर्शनी और बिक्री रखी जाती है क्योंकि पार्टी के कार्यक्रमों में दूर-दूर से आने वाले लोग आमतौर पर हथियारों के शौकीन रहते हैं। बाकी दुनिया के लिए इस नौबत की कल्पना करना मुश्किल है कि अमरीका में एक-एक नागरिक फौजी दर्जे के दर्जनों हथियार घर पर रख सकते हैं, और वहां की फिल्मों से लेकर उपन्यासों तक में बंदूक की संस्कृति को बढ़ावा दिया जाता है, और एक सबसे असरदार पुलिस के बावजूद अमरीकी नागरिक अपने को हमेशा खतरे में मानकर चलते हैं, और घरों में हथियार रखने को ही हिफाजत का अकेला तरीका मानते हैं। कुछ अमरीकियों का यह भी मानना रहता है कि हर नागरिक के पास हथियार रहने से देश में कभी भी कोई फौजी बगावत नहीं हो सकती क्योंकि फौजी बंदूकों से कई गुना अधिक नागरिक बंदूकें रहेंगी, और फौज ऐसा दुस्साहस नहीं कर सकेगी। 

अमरीका में बंदूक खरीदने वालों और रखने वालों की दिमागी हालत को जांचने का भी कोई चलन नहीं है, नतीजा यह होता है कि मानसिक रूप से कमजोर या बीमार लोग भी कई-कई हथियार रखते हैं, और किसी धर्म, जाति, रंग की नफरत के चलते, या किसी निजी भड़ास को निकालने के लिए लोगों को थोक में मारने से नहीं हिचकते। एक सर्वे बताता है कि अमरीका की आबादी 33 करोड़ है, और वहां 40 करोड़ पिस्तौल-बंदूक हैं। अमरीका में 60 हजार से अधिक पिस्तौल-बंदूक दुकानदार हैं, और वहां हर बरस दसियों हजार करोड़ रूपए के हथियार बिकते हैं। ऐसे ही कारोबार को बढ़ावा देने वाली गन-लॉबी राजनीतिक प्रभाव खरीदती है, और इसलिए डेमोक्रेटिक पार्टी की तमाम कोशिशों के बावजूद संसद से कभी हथियारों में कमी की बात मंजूर नहीं हो पाती। यह नौबत अकेले अमरीका के साथ है, क्योंकि दुनिया में शायद ही किसी और देश में आबादी से इतनी अधिक बंदूकें हों। 2017 के एक सर्वे के मुताबिक यह देखा गया कि प्रति सौ व्यक्तियों पर कितनी बंदूकें हैं, तो उनमें अमरीका में 120 से अधिक बंदूकें निकलीं। दूसरी तरफ हिन्दुस्तान में सौ लोगों पर 5.3 बंदूकों का औसत है। दुनिया में 110 देश ऐसे भी हैं जहां हिन्दुस्तान से भी कम अनुपात में बंदूकें हैं। पांच देश तो ऐसे हैं जहां नागरिकों के पास कोई बंदूक नहीं हैं, जिनमें इंडोनेशिया भी है। एक अनुमान यह भी है कि पूरी दुनिया में निजी हथियारों में से अधिकतर का इस्तेमाल खुद को या जीवनसाथी को मारने में होता है। ऐसे में दुनिया भर में बढ़ते चल रहे पारिवारिक तनाव देखें तो बंदूकों की मौजूदगी खतरे को कई गुना बढ़ाने वाली हो सकती है, शायद होती होगी। 

दुनिया की जिन देशों में अमरीका की तरह बंदूकें नहीं हैं, उन्हें अपने नागरिकों के बीच खतरे भी उतने अधिक नहीं हैं। लेकिन कुछ दूसरे किस्म के खतरे जरूर हैं जो कि भारत जैसे देश में भी लगातार सामने आते हैं। यहां पर शराब या किसी दूसरे नशे में लोग अपने परिवार के सबसे करीबी लोगों को मार डालते हैं, कई मामलों में गरीबी, कर्ज में डूबकर भी ऐसी नौबत आती है कि लोग पूरे के पूरे परिवार को हत्या और आत्महत्या से खत्म कर देते हैं। अमरीका के मामले के लेकर यहां सीधे-सीधे कुछ सीखने की जरूरत नहीं है, लेकिन निजी हिंसा का मामला जरूर सीखने लायक है कि किस तरह की मानसिक तनाव से गुजर रहे, धर्म, जाति, या रंग की नफरत से भरे हुए लोग किस तरह की हिंसा कर सकते हैं। अभी चार दिन पहले ही हमने इसी जगह लिखा था कि किस तरह महाराष्ट्र के विदर्भ में एक बहू ने ससुराल के लोगों के तानों से थककर धीमे असर करने वाले एक जहर का जुगाड़ किया, और पति सहित पांच-छह लोगों को मार डाला। शराब के लिए पैसे न देने वाले मां-बाप को मारने की खबर हमें आसपास से ही तकरीबन रोजाना सुनने मिलती है। हर समाज को यह सोचना चाहिए कि निजी हिंसा की वजहों को किस तरह घटाया जा सकता है, जिससे कि हत्या या आत्महत्या सबमें कमी आए। जो बात हिन्दुस्तान के काम की हो सकती है वह यह है कि समाज के भीतर किसी भी तरह की नफरत को, किसी धर्म या जाति से दहशत को बढ़ावा नहीं देना चाहिए, क्योंकि आज नहीं तो कल एक सामूहिक या सार्वजनिक हिंसा में भी तब्दील हो सकती है। और यह भी जरूरी नहीं है कि तनाव या नफरत से भरे हुए लोग कानूनी हथियारों से ही हिंसा करें, हिन्दुस्तान में धड़ल्ले से गैरकानूनी हथियार भी मौजूद हैं, और जब परिवार के भीतर ही कोई जहर से थोक में हत्याएं करने पर उतारू हो जाए, तो उसका क्या अंत हो सकता है? जहर से तो किसी भी सार्वजनिक या बड़े कार्यक्रम में भी एक साथ बड़ी संख्या में लोगों को मारा जा सकता है। कोई बुलेटप्रूफ जैकेट, या कितनी भी संख्या में पुलिस ऐसी निजी हिंसा को नहीं रोक सकती जिसमें लोग आत्मघाती अंदाज में कई लोगों को मारने पर उतारू हो जाते हैं, इससे बचाव का अकेला तरीका उन शांत देशों को देखकर कुछ सीखना है कि जनता को किस तरह खुशमिजाज रखा जाए, किस तरह सार्वजनिक तनाव खत्म किया जाए, और किस तरह परिवार के भीतर के तनाव घटाए जाएं। भारत जैसे चुनावी लोकतंत्र में ऐसी अमूर्त सलाह सत्ता और समाज का ध्यान नहीं खींच सकती, लेकिन समाज के जागरूक तबकों को इस पर चर्चा जरूर करनी चाहिए, और समाज की सोच को सकारात्मक बनाने का काम करना चाहिए। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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