संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : धर्म के टकराव कहीं भी हों, उनके यहां भी असर का खतरा
30-Oct-2023 4:16 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : धर्म के टकराव कहीं भी हों, उनके यहां भी असर का खतरा

फोटो : सोशल मीडिया

केरल में कल येहोवा विटनेस ईसाई समुदाय के एक सभा भवन में एक धमाका हुआ जिसमें तीन महिलाओं की मौत हो गई, और 50 से अधिक लोग जख्मी हुए हैं। इस बीच इतवार की सुबह प्रार्थना के वक्त धमाके करने वाले एक व्यक्ति ने सामने आकर उसकी जिम्मेदारी ली है, और कहा है कि इस समुदाय (या सम्प्रदाय) की शिक्षाएं देशविरोधी हैं, इसलिए उसने ऐसा किया है। उसने यह भी कहा कि 16 बरस पहले वह इस चर्चा से जुड़ा हुआ था, लेकिन 6 बरस पहले उसने चर्च को चेतावनी दी थी कि वह देशविरोधी काम करता है, और उसने ये हमले किए। इस चर्च के लोगों का कहना है कि वह किसी भी धार्मिक या राजनीतिक आंदोलन में नहीं रहता, न विरोध करता, न समर्थन करता, और इस हमले के एक दिन पहले शनिवार को इजराइल और गाजा के बीच चल रहे संघर्ष पर उसने एक प्रार्थना सभा आयोजित की थी, जिसके अगले दिन यह हमला हुआ। केरल के बहुत से परिवारों में कोई सदस्य किसी और चर्च में है, और कोई दूसरे सदस्य येहोवा विटनेस नाम के इस छोटे समूह से जुड़े हुए हैं। हमलावर ने एक वीडियो में कहा है कि यह चर्च बच्चों को राष्ट्रगान से रोकता है, उनके बड़े होने पर उन्हें वोट न देने, सेना में न जाने, या सरकारी नौकरी न करने की नसीहत उन्हें दी जाती है। उसका यह भी कहना है कि यह चर्च लोगों को अपने से परे रहने पर तबाह हो जाने की बात कहता है। 

इस चर्च से परे, और इस हमलावर से परे, जो बात परेशान करने वाली है, वह यह है कि हिन्दुस्तान में धर्म का एक और चेहरा इस तरह हिंसक और जानलेवा हो रहा है, और धर्म के हिमायती, या उसके विरोधी इस तरह आतंकी हमले कर रहे हैं। यह सिलसिला बहुत खतरनाक इसलिए है कि हिन्दुस्तान में धर्म की दखल बहुत अधिक है, और आज देश में किसी भी दूसरे राजनीतिक या सामाजिक मुद्दे से ऊपर धर्म हावी हो जाता है। धर्मों के बीच इस देश में टकराव भी खड़ा किया जा रहा है, एक-दूसरे के खिलाफ नफरत भी फैलाई जा रही है, और भारतीय लोकतांत्रिक संस्थाएं, संवैधानिक संस्थाएं लोगों के बीच धर्म के आधार पर बड़ा भेदभाव कर रही है। एक तरफ इस देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात हो रही है, दूसरी तरफ एक वक्त के अखंड भारत कहे जाने वाले नक्शे को फिर जिंदा करने की बात होती है, देश के हर चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश होती है जो कि बढ़ते-बढ़ते साम्प्रदायिकता-आधारित ध्रुवीकरण में तब्दील हो जाती है। नतीजा यह है कि धर्म इस देश की कानून व्यवस्था को भी कुचलने जितना ताकतवर हो गया है, और हिन्दुस्तान के अंतरराष्ट्रीय संबंधों को भी नुकसान पहुंचाने लायक। इन सबके बीच यह भी है कि देश में कुछ ताकतें धर्म को चुनाव जीतने का एक सबसे बड़ा हथियार मान रही हैं, और इसका इस्तेमाल बढ़ते ही चल रहा है। कहने के लिए एक फर्जी लाईन गढ़ी और कही जाती है कि हर धर्म शांति सिखाता है, और आज धर्मों की जो शक्ल जमीन पर दिखती है, वह इसके ठीक खिलाफ है। 

केरल के ईसाईयों के बीच एक छोटे समुदाय पर जैसा हिंसक हमला हुआ है, वह एक अकेले हमलावर की ताकत भी बताता है कि किस तरह छोटी सी जगह पर जुटने वाले बहुत से धर्मालुओं पर कैसे आसानी से हमला किया जा सकता है। अगर यह केरल में हो रहा है, तो दूसरे प्रदेशों में भी हो सकता है, और अगर ईसाईयों पर हो रहा है तो दूसरे धर्मों के लोगों पर भी हो सकता है। फिर एक और बात यह भी है कि दुनिया के दूसरे देशों में अगर किसी धर्म पर हमला होता है, तो उसकी एक प्रतिक्रिया भी बाकी देशों में होती है, और केरल में यह जांच चल रही है कि शनिवार को इजराइल-गाजा संघर्ष पर चर्च में हुई सभा के अगले ही दिन हुए इस हमले से क्या ऐसे लोगों का लेना-देना हो सकता है जो कि इजराइल या फिलीस्तीन को लेकर विचलित हैं। ऐसी नौबतें और भी आ सकती हैं, और हिन्दुस्तान के कई लोग इस बात को लेकर भी विचलित हो सकते हैं कि दो दिन पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा में जब गाजा पर हमले रोकने या युद्धविराम करने की बात आई, तो हिन्दुस्तान ने उस पर मतदान करने से मना कर दिया, और वहां से चले गया। इसके बाद फिलीस्तीनी संगठन हमास की निंदा का संशोधन जब जोड़ा गया, तो हिन्दुस्तान ने सिर्फ उस संशोधन पर समर्थन का वोट दिया। दुनिया भर के मुस्लिम फिलीस्तीन के मुद्दे से जुड़े हुए हैं, और हिन्दुस्तान गांधी और नेहरू के वक्त से लेकर अटल बिहारी बाजपेयी के विदेश मंत्री रहने तक भारत की फिलीस्तीन नीति को साफ-साफ कहते आए हैं कि फिलीस्तीन को एक मुल्क रहने का हक है। अब हिन्दुस्तानी प्रधानमंत्री ने देश की घोषित विदेश नीति से परे जाकर जिस तरह इजराइल के साथ एकजुटता दिखाई है, उसने हिन्दुस्तान के विपक्ष को, मीडिया के लोगों को, और इस देश के मुस्लिमों को हक्का-बक्का कर दिया है। केरल की इस ताजा वारदात के पीछे कोई साम्प्रदायिकता हो न हो, यह बात तो साफ है कि देश में किसी धर्म के लोगों का अधिक विचलित होना यहां की आंतरिक शांति और सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है, जैसा कि कल केरल में सामने आया है। इसलिए भारत की सरकार और बाकी तमाम ताकतों को भी दुनिया में हो रहे धार्मिक टकराव, या ऐसे टकराव जिनसे धार्मिक टकराव उपज रहा हो, उन सबको बारीकी से देखना होगा, और भारत की प्रतिक्रिया उन पर ऐसी रखनी होगी कि इस देश में नफरत और तनाव न फैले। यहां पर आकर देश और प्रदेश की सरकारों की धर्मनिरपेक्षता, या साम्प्रदायिकता, इनसे एक बड़ा फर्क पड़ेगा। केरल से हमने बात शुरू की है, लेकिन केरल पर बात खत्म नहीं हो रही है, इससे एक सबक शुरू हो रहा है, और उस सबक का एक तर्कपूर्ण नतीजे तक जाना जरूरी है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news