सेहत-फिटनेस
कोरोना वायरस महामारी के बाद भारत में युवाओं में हार्ट अटैक के मामले बढ़ जाने के बाद भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इस विषय पर एक शोध किया है. आखिर हार्ट अटैक के मामले क्यों बढ़ रहे हैं.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इस मामले पर एक शोध किया है और कहा कि कोरोना के टीके से युवाओं में अचानक मौत का खतरा नहीं बढ़ा है, बल्कि टीके से खतरा कम हुआ है.
भारत में हार्ट अटैक से युवाओं की मौत के मामले हाल के दिनों में बढ़े हैं. कई मामले ऐसे सामने आए जिनमें लोग डांस करते हुए, गरबा खेलते हुए, गाना गाते हुए या फिर जिम में कसरत करते हुए हार्ट अटैक के शिकार हो गए.
देश में हार्ट अटैक से हुई अचानक मौतों के बाद आईसीएमआर ने एक स्टडी की थी. आईसीएमआर ने अपने शोध में कहा कि कोविड की वजह से अस्पताल में लंबे समय तक भर्ती रहना, ज्यादा मेहनत वाले काम करना या ज्यादा शराब पीना अचानक मौत के कुछ कारक हैं.
क्या कहता है शोध
आईसीएमआर के शोध में यह भी कहा गया है कि जिन लोगों को संक्रमण का गंभीर सामना करना पड़ा है, उन्हें कम से कम एक या दो साल तक अत्यधिक परिश्रम नहीं करना चाहिए. हालांकि यह शोध अभी तक कहीं प्रकाशित नहीं हुआ है. आईसीएमआर की रिपोर्ट की मानें तो, कोविड-19 के बाद दिल के मरीजों में 14 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है.
आईसीएमआर ने अपने शोध के लिए भारत में 18-45 आयु वर्ग के स्वस्थ वयस्कों के बीच अचानक मौतों की जांच की. इस शोध से यह भी पता चला कि कोविड-19 वैक्सीन से अचानक मौत का खतरा नहीं बढ़ा है.
लोगों को क्यों हो रहे ज्यादा हार्ट अटैक
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने बीते दिनों एक बयान में कहा, "आईसीएमआर ने एक स्टडी जारी की है. स्टडी कहती है कि जिन्हें गंभीर कोविड हुआ, संक्रमण को ज्यादा वक्त ना हुआ हो...उन्हें ज्यादा शारीरिक मेहनत नहीं करनी चाहिए, तेज दौड़ने, हैवी वर्कआउट से बचना चाहिए. ये सावधानी एक से दो साल के लिए बरतनी है."
स्वास्थ्य मंत्री का यह बयान इस बार गरबा में बहुत ज्यादा मौतों के बाद आया है. अकेले गुजरात में नवरात्रि के जश्न के दौरान 473 लोगों की हार्ट अटैक के कारण मौत की शिकायतें अस्पतालों को मिली.
हेल्थ एक्सपर्ट कहते हैं कि अगर स्वास्थ्य मंत्री कह रहे हैं कि लोगों को ज्यादा मेहनत वाला काम या कठोर परिश्रम नहीं करना चाहिए तो उसके लिए सरकार ही एक पॉलिसी बनाए और बताए कि जिन लोगों का ऐसा पेशा है तो उनके लिए सरकार की क्या नीतियां हैं.
लंदन में सीनियर फिजिशियन और मेदांता अस्पताल में काम कर चुके डॉ. शुभांक सिंह डीडब्ल्यू से कहते हैं, "सरकार को ऐसा तंत्र बनाना चाहिए...जिसको भी गंभीर कोविड हुआ और उसके पास इसके सबूत हैं, तो सरकार कोई ऐसा तंत्र बनाए जिससे उन्हें दो साल तक नौकरी में आराम की सुविधा मिल सके."
डॉ. शुभांक सिंह कहते हैं कि जिस पेशे में भारी वजन उठाना पड़ता है, वैसे लोगों के लिए सरकार को जरूर कुछ नीति पेश करनी चाहिए ताकि उन्हें काम में आराम मिल सके.
लक्षण को ना करें नजरअंदाज
साथ ही डॉ. शुभांक सिंह कहते हैं कि जिन लोगों को गंभीर कोविड हुआ था या फिर वे लोग जो ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे या उन्हें रेमडेसिविर दिया गया था तो उन्हें लाइफस्टाइल में बदलाव लाना पड़ेगा और उन्हें रेगुलर चेकअप कराना चाहिए.
वो कहते हैं कि जिसको मॉडरेट कोविड हुआ था, वे साल में एक बार तो जरूर कॉर्डियोलॉजिस्ट से चेकअप कराएं और जिन्हें गंभीर कोविड हुआ था वह साल में दो बार कॉर्डियोलॉजिस्ट से चेकअप कराएं.
डॉ. शुभांक सिंह का कहना है कि कई बार लोग शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं जैसे कि एक-दो सीढ़ियां चढ़ने पर सांस फूल जाना, जल्दी सांस फूलना, छाती में बार-बार दर्द होना या पैरों में सूजन आ जाना, अगर ये लक्षण दिखते हैं तो इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और चेकअप करा लेना चाहिए.
कई कार्डियोलॉजिस्ट कहते हैं कि कोविड संक्रमण की वजह से कुछ लोगों में मायोकार्डिटिस हो गया है. यह वायरस के संक्रमण की वजह से होता है. इसमें दिल की मांसपेशी यानी मायोकार्डिटिस में सूजन आ जाती है. इससे दिल कमजोर हो जाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड का संक्रमण दिल को नुकसान पहुंचाता है, जिसकी वजह से अचानक हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है. (dw.com)