विचार / लेख
डॉ. आर.के. पालीवाल
चुनावों से ऐन पहले सरकारों द्वारा विभिन्न वर्गों के खातों में रकम जमा करने और मुफ्त की सुविधाओं की योजनाएं शुरु करने के खिलाफ भट्टूलाल जैन की याचिका पर विचार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय की प्रधान न्यायाधीश की बैंच ने केन्द्र सरकार, केंद्रीय निर्वाचन आयोग और मध्य प्रदेश एवम राजस्थान सरकार को नोटिस जारी किया है।
मध्यप्रदेश और राजस्थान में इसी साल नवम्बर में चुनाव हैं और अगले साल लोकसभा के चुनाव हैं इसलिए केन्द्र और इन दो राज्यों की सरकार ने वोट लुभाने के लिए कई ऐसी योजनाएं शरू की हैं या उनकी घोषणा की है जिनमें कर दाताओं से उगाहे कर और कर्ज लेकर सरकार द्वारा विभिन्न वर्ग के लोगों को दनादन आर्थिक लाभ दिया जा रहा है। इस मुद्दे पर वैसे तो प्रधानमंत्री भी मुफ्त की रेवडिय़ां कहकर आप जैसे दलों की आलोचना करते हैं लेकिन मध्यप्रदेश में उनके दल की सरकार रेवडिय़ां बांटने के मामले में और भी ज्यादा आगे है। तमाम राजनीतिक दल एक दूसरे पर दोषारोपण करते हैं लेकिन खुद भी वही सब कर रहे हैं। इधर कुछ वर्षों से यह रोग बढ़ता ही जा रहा है। मुफ्त की चीजों में नए नए आइटम जुड़ रहे हैं। फ्री राशन और फ्री बिजली एवं पानी के बाद शादी में सोना, नकद रुपए, फ्री वाईफाई, मोबाइल, लैपटॉप, साइकिल, स्कूटी, आदि से महिलाओं, विद्यार्थियों और अन्य वर्ग के लोगों को लुभाया जा रहा है। इधर मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने पत्रकारों के लिए भी कई घोषणाएं की हैं ताकि मीडिया से जुड़े लोगों को भी लालच से प्रभावित किया जा सके।चुनावी वर्ष में चुनाव के नोटिफिकेशन के पहले आचार संहिता नहीं होती। सत्ता लोलुप राजनीतिक दल बेरोकटोक इसी का लाभ उठाते हैं ताकि लालच में फंसकर लोग उन्हें ही सत्ता सौंपे।
चुनाव पूर्व रियाउतो में विभिन्न राजनीतिक दलों की सरकारों में कड़ी प्रतिस्पर्धा भी होती है। राजस्थान सरकार द्वारा गैस सिलेंडर सस्ता किए जाने पर केन्द्र सरकार ने भी पहली बार रसोई गैस की कीमत एक झटके में दौ सौ रुपए कम की है और काफी समय से अक्सर बढऩे वाले डीजल-पेट्रोल के दाम स्थिर रखे हैं। सर्वोच्च न्यायालय के सामने लंबित याचिका में यह आग्रह है कि सरकारों द्वारा करदाताओं के धन को वोटों के लिए लालच देकर खर्च करना बंद होना चाहिए।यह लोकतंत्र और स्वस्थ समाज निर्माण के लिए बहुत जरूरी है।सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार,केंद्रीय चुनाव आयोग एवम मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार इस मुद्दे पर क्या राय जाहिर करते हैं इस पर भी सर्वोच्च न्यायालय का अंतिम निर्णय निर्भर करेगा। केंद्र सरकार और राजस्थान सरकारों के जवाब से क्रमश: भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी का मत भी मालूम चल जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय को इस मामले में अन्य राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों को भी अपने विचार दाखिल करने की छूट देनी चाहिए।
करदाताओं के संगठनों को भी इस मुद्दे पर लंबित याचिका से जुडऩे की कोशिश करनी चाहिए। दुर्भाग्य से हमारे देश में व्यापारियों के तो कई संगठन हैं लेकिन आयकर दाताओं और जी एस टी देने वाले का कोई मजबूत संगठन नहीं है। यही कारण है कि बड़ा वोट बैंक होने के बावजूद इस महत्त्वपूर्ण वर्ग की कोई सुनवाई नहीं होती। संवेदनशील मीडिया को देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस और इण्डिया गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों से भी इस मामले में उनकी राय मालूम करनी चाहिए। देश के तमाम प्रबुद्धजनों को भी सोशल मीडिया सहित हर उपलब्ध प्लेटफार्म पर ऐसा वातावरण तैयार करना चाहिए जिससे मुफ्त का लालच देकर सत्ता हासिल करने वाले राजनीतिक दलों को यह मालूम पड़े कि उनकी इस चाल को जनता पहचान रही है और इसके खिलाफ एक राष्ट्रीय जन आंदोलन खड़ा हो रहा है।