विचार / लेख
-डॉ. आर.के. पालीवाल
महुआ मोइत्रा ने यह तो खुद स्वीकार किया है कि उद्योगपति हीरानंदानी से उनकी मित्रता थी और उन्होंने संसद के पोर्टल का अपना पासवर्ड उन्हें दिया था। निसंदेह उनका यह कृत्य नैतिकता से परे है। लेकिन सांसदों की नैतिकता क्या इसी तक सीमित है कि संसद के पोर्टल का पासवर्ड अपने किसी विश्वसनीय व्यक्ति को सौंपने से ही सासंद की सांसदी चली जाए! यह प्रश्न तब और अधिक प्रासंगिक हो जाता है जब केन्द्र सरकार के मंत्री के पुत्र के ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हों जब वे उद्योगपतियों से सैकड़ों करोड़ वसूलने की बातें कर रहे हों।
हालांकि जांच में ऐसे वीडियो फर्जी निकल सकते हैं लेकिन क्या संसद की नैतिकता देखने वाली कमेटी को ऐसे वीडियो पर मंत्री की उसी तरह की जांच नहीं करनी चाहिए जैसी महुआ मोइत्रा की हुई है। यही बात सत्ताधारी दल के सासंद बृजभूषण शरण सिंह की नैतिकता की नहीं होनी चाहिए जिन पर देश की प्रतिष्ठित महिला पहलवानों ने यौन प्रताडऩा के इतने गम्भीर आरोप लगाए थे कि सर्वोच्च न्यायालय को दिल्ली पुलिस को एफ आई आर के निर्देश देने पड़े। क्या सांसदों और विधायकों की नैतिकता उनके संसदीय व्यवहार तक ही सीमित है! यदि ऐसा ही है तब संसद की नैतिकता देखने वाली कमेटी ने सत्ताधारी दल के सासंद रमेश बिधूड़ी का वह अनैतिक आचरण क्यों नहीं देखा जिसने अपने साथी सासंद दानिश अली को बेहद अपमानजनक गालियों से नवाजा था।
ऐसा लगता है कि संसद की नैतिकता पर नजर रखने वाली समिती भी उसी तरह के आरोपों में घिरती जा रही है जिस तरह के आरोप केन्द्रीय जांच एजेंसियों पर लग रहे हैं कि वे केवल विपक्षी नेताओं पर ही कार्यवाही कर रही हैं और सरकार को समर्थन देने वाले नेताओं और उद्योगपतियों के मामलो में शांत रहती हैं। ऐसे आरोप दिल्ली पुलिस पर भी लगते रहे हैं कि उसका रवैया आम आदमी पार्टी से जुड़े नेताओं के प्रति अलग है और भारतीय जनता पार्टी से जुड़े बृजभूषण शरण सिंह आदि नेताओं के प्रति अलग है। महुआ मोइत्रा ने भी संसद की नैतिकता देखने वाली समिती के अध्यक्ष विनोद सोनकर के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं कि जांच के नाम पर वे उनसे ऐसे निजी प्रश्न पूछ रहे थे जो महिला की अस्मिता के खिलाफ हैं। संसद की यह समिती भी महुआ मोइत्रा के मामले में दो फाड़ हो गई है।
भाजपा और उसके सहयोगी सासंद महुआ मोइत्रा के निष्कासन से सहमत हैं और विपक्षी दलों के सासंद महुआ मोइत्रा के साथ हैं। संसदीय समिती का राजनैतिक विचारधारा के कारण दो फाड़ होना संसदीय लोकतंत्र की गरिमा के अनुरूप नहीं है। यह दर्शाता है कि भविष्य में इन समितियों के फैसले तथ्यों, तर्क और विवेक से होने के बजाय राजनीतिक विचार के चश्मे से हुआ करेंगे। यह राजनीतिक कटुता की पराकाष्ठा है और इसे नैतिक मूल्यों का नितांत ह्रास ही कहा जाएगा।
देश की संसद ऐसी संवैधानिक संस्था है जो देश के शासन को दिशा देने के लिए कानून बनाती है। यदि ऐसी सर्वोच्च संस्था के सदस्यों की नैतिकता पर नजर रखने वाली संसदीय समिती की नैतिकता पर कई सांसद प्रश्न चिन्ह खड़े करते हैं तो इससे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति क्या हो सकती है। अगले महीने संसद का शीत कालीन सत्र शुरु होने जा रहा है।
इस सत्र में महुआ मोइत्रा के निलंबन और संसद की एथिक्स कमेटी के व्यवहार पर लंबी चर्चा होने की संभावना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सर्व दलीय बैठक बुलाकर लोकसभा अध्यक्ष इस संवेदनशील मुद्दे पर कोई तर्कसंगत निर्णय लेने का प्रयास करेंगे। लोकसभा अध्यक्ष को इस मामले में जल्दबाजी में फैसला लेने से बचना चाहिए। महुवा मोइत्रा का सांसद के रुप में लंबा अनुभव नहीं है इसलिए उन्हें चेतावनी दी जा सकती है और भविष्य में सांसदों के लिए संसद के पोर्टल पर प्रश्न पूछने के लिए विस्तृत गाइडलाइन जारी की जानी चाहिए ताकि जाने अंजाने कोई सासंद ऐसी गलती न करे।